पन्ना। कोरोना वायरस के कहर को रोकने के लिए लागू किए गए 21 दिनों के देशव्यापी लॉकडाउन के चलते दिहाड़ी पर जीवन-यापन करने वाले गरीब, श्रमिक, आदिवासी एवं कमजोर वर्गों की हालत अब बिगड़ने लगी है. सरकारी मदद से वंचित परिवारों को खाने के लाले पड़ रहे है.
लकड़ी बेंचकर या मजदूरी करके गुजर बसर करने वाले गरीबों ने कोरोना के खिलाफ जारी जंग में किसी तरह अभावों के बीच लॉकडाउन का आधा समय तो काट लिया, लेकिन शीघ्र मदद न मिली तो कई गरीब परिवारों को कोरोना से भी खतरनाक भूख का वायरस से जूझना पड़ सकता है.
बता दें कि अजयगढ़ तहसील पिष्टा गांव में सड़क किनारे डेरा डालकर रह रहे जड़ी-बूटी बेंचने वाले आदिवासी परिवारों की हालत इन दिनों लॉकडाउन के चलते खराब है. विमुक्त-घुमक्कड़ जनजातियों में शामिल जड़ी-बूटी विक्रेताओं की यह हालत इसलिए भी है, क्योंकि वे चलते-फिरते एक शहर से दूसरे शहर में दुर्लभ जंगली जड़ी-बूटियां बेंचकर अपना जीवन यापन करते हैं.
इनके पास न तो राशन कार्ड है और ना ही लाॅकडाउन घोषित होने के बाद अब तक कोई मदद मिली है। इनके पास जो भी थोड़ा बहुत राशन उपलब्ध था वह अब पूरी तरह खत्म होने को है, कई जरूरी वस्तुओं का तो पहले से ही अभाव बना है. नाम मात्र की जो भी जमा पूंजी थी वह भी खर्च हो चुकी है.
लिहाजा दिन-प्रतिदिन आदिवासी परिवारों की मुश्किलें और चुनौतियां बढ़ती जा रहीं हैं. लाॅकडाउन के कारण आवाजाही पर रोक होने और कामधंधा पूरी तरह ठप्प होने से अब इन्हें खाने-पीने की चिंता सता रही है. इनका कहना है कि, अगर जल्द मदद न मिली तो भूख का वायरस मार डालेगा.