पन्ना। गहरीघाट वन परिक्षेत्र अंतर्गत झालर घास मैदान में भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों द्वारा एक रेड हेडेड वल्चर की सफलता पूर्वक रेडियो टैगिंग की गई. गिद्धों के बारे में कहा जाता है कि ये बहुत लंबी-लंबी दूरियां तय करते हैं, इसलिए रेडियो टैगिंग के सहारे गिद्धों के प्रवास के मार्ग की जानकारी मिल सकेगी, जिससे भविष्य में उनका प्रबंधन ठीक प्रकार से हो सकेगी.
टाइगर रिजर्व में पाई जाती हैं 7 प्रजातियां
बता दें कि, पन्ना टाइगर रिजर्व में गिद्धों की 7 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनमें से 4 प्रजातियां पन्ना बाघ अभयारण्य की निवासी हैं, जबकि शेष तीन प्रजातियां प्रवासी हैं. गिद्धों का प्रवास मार्ग हमेशा से ही वन्यजीव प्रेमियों के लिए उत्सुकता का विषय रहा है. गिद्ध न केवल एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश, बल्कि एक देश से दूसरे देश प्रवास करते हैं.
25 गिद्धों को टैग करने की योजना
अध्ययन के तहत 25 गिद्धों को टैग करने की योजना है. विशषज्ञों द्वारा कोशिश की जा रही है कि, सभी प्रजातियों को टैग किया जा सके. जीपीएस टैग के माध्यम से विभिन्न प्रजाति के गिद्धों के रहने, प्रवास सहित रास्ते की जानकारी प्राप्त की जा सकेगी, जो गिद्धों के प्रबंधन और उनके संरक्षण के लिए लाभकारी साबित होगा.
गिद्धों की कैप्चरिंग के लिए डब्ल्यूआईआई द्वारा दक्षिण अफ्रीका और बाॅम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (बीएनएचएस) ने जो विधि विकसित की है, उसके तहत झालर घास मैदान में 15 मीटर, 5 मीटर और 3 मीटर आकार का पिंजरा बनाया गया है, जिसमें ताजे मांस के टुकड़े डाले जाते हैं, जिन्हें खाने के लिए गिद्ध पिंजरे के अंदर आ जाते हैं. पिंजरे में कैद हो चुके गिद्धों की रेडियो टैगिंग की जाती है, जिसके बाद फिर से खुले आकाश में गिद्धों को छोड़ा जाता है.