पन्ना। राष्ट्रपिता महात्मा गाधी अंत्योदय की बात करते थे, उनका मानना था कि जब तक देश के आखिरी व्यक्ति तक विकास का प्रकाश नहीं पहुंचेगा, देश विकसित नहीं होगा. हलांकि महात्मा गाधी का मान रखते हुए आजादी के बाद से ही सरकारों ने इसके लिए कई योजनाएं बनाई, लेकिन सरकारी तंत्र, और लाचार सिस्टम के कारण आज तक देश में अंतिम छोर के व्यक्ति का उदय नहीं हो पाया. वो आज भी सरकार की योजनाओं का फायदा लेने के लिए लाचार सिस्टम के आगे भटकते रहता है, और अपने उन्ही हालातों में जीने को मजबूर है. ऐसा ही कुछ हो रहा है. पन्ना के रानी मोहल्ले में रहने वाले दीपक सेन और उसकी मासूम बहन के साथ.
मजबूरी ने थमा दिया मासूम को उस्तरा और कैची
दीपक और उसकी बहन के सर से दो साल पहले पिता का साया उठ गया, तो इसी साल मां ने भी इन्हें बेसहारा छोड़ दुनिया को अलविदा कह दिया. मां बाबा का साया छिनने के बाद दीपक ने किसी तरह खुद को संभाला और अपनी बहन की परवरिश के लिए सरकार के इस सिस्टम के आगे दर-ब-दर भटकता रहा. आखिरकार सिस्टम का शिकार दीपक को इन सब से कुछ हासिल नहीं हुआ तो बहन की परवरिश करने के लिए उसने अपने पिता का उस्तरा उठा लिया, और किसी तरह सेविंग कटिंग करके उपनी बहन को पढ़ाने लगा.
कमजोर हाथों के साथ ढो रहा जिम्मेदारी
दीपक के पास न तो पीएम आवास का घर है, और न ही राशन कार्ड. इन्हें सरकार की किसी भी योजना का लाभ नहीं मिला है. अपनी आर्थिक तंगी और माता पिता के इलाज के लिए कर्ज से परेशान दीपक अपने अधजले कमजोर हाथों से अब छत्रसाल पार्क के सामने एक टूटे फूटे टप्पर में एक कुर्सी डालकर लोगों की कटिंग कर अपना और अपनी बहन का खर्च उठा रहा है. दीपक सेन के जिन हाथों में कलम व किताब होनी चाहिए थी अब उन हाथों में उस्तरा और कैची हैं.
संबल योजना से कट गया नाम
दीपक ने संबल योजना के तहत अपनी मां की मृत्यु होने के उपरांत मिलने वाली अनुग्रह राशि 4 लाख और अंत्योष्टि सहायता राशि की मांग नगरपालिका से लेकर कलेक्टर व खनिज ब्रजेन्द्र प्रताप सिंह के यहां आवेदन देकर की है, लेकिन मध्यप्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान की महत्वाकांक्षी योजना, संबल योजना के तहत इन अनाथ भाई-बहन को कोई सहायता नहीं मिल पाई है. इतना ही नहीं दीपक की मां का संबल योजना कार्ड होने के बावजूद भी नगरपालिका के भ्रष्ट तंत्र ने पोर्टल से नाम काट दिया है.
परिवार के लोग करते हैं मदद
परिवार के चाचा-चाची कभी कभार थोड़ी बहुत खाने-पीने की मदद कर देते हैं, लेकिन दिक्कतें अभी भी कम होने का नाम इसलिए नहीं ले रही हैं, क्योंकि माता-पिता की दवाई के लिए जिससे वो कर्ज लिया, वे कर्जदार कर्ज वापस करने का दबाव भी बना रहे हैं. लेकिन फिर भी दीपक ने अपनी हिम्मत नहीं हारी. हाथों से कमजोर होने के बाद भी बोझ उठाने के लिए मजबूर है.
कलेक्टर ने की मदद की बात
ऐसे में कलेक्टर से लेकर खनिज मंत्री तक शिकायत करने के बाद भी दीपक को सरकार और सरकारी सिस्टम से एक भी योजना का लाभ नहीं मिल रहा है. दीपक और उसकी बहन ने प्रधानमंत्री कार्यालय तक मदद की गुहार लगाई, लेकिन उन्हें कोई मद नहीं मिल पाई. हालांकि जब मीडिया ने इस मामले में कलेक्टर संजय कुमार मिश्रा से बात की तो नगरपालिका से मामले की जानकारी लेकर अनाथ भाई-बहन को हर संभव मदद करने की बात कही है.
अब सवाल यह खड़ा हो रहा है कि जब इस प्रकार के गरीब अनाथ लोगों को सरकार की योजनाएं नहीं मिल पा रही है, तो भला योजनाएं व योजनाओं को क्रियान्वयन करने वालों की जिम्मेदारी क्या है. सरकार की योजनाएं क्या कागजों तक तक ही सीमित है. अब जब मामले में कलेक्टर ने मीडिया के सामने मदद की बात कही है, ऐसे में अब देखना होगा, कि इन बच्चों को कब तक सरकार की ओर से मदद मिल पाती है.