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दिवाली : ओरछा में उल्लू के आकार में बना है अनोखा लक्ष्मी मंदिर, सूना पड़ा गर्भगृह का सिंहासन

निमाड़ी के ओरछा में एक अनोखा लक्ष्मी मंदिर मौजूद है, जो उल्लू के आकार में बना है. दिवाली के दिन इस सिद्ध मंदिर में दीपक जलाकर मां लक्ष्मी की पूजा करने से वह प्रसन्न होती है, लेकिन 1983 में मंदिर में स्थापित मूर्तियों को चोरों ने चुरा लिया था. तब से आज तक मंदिर के गर्भगृह का सिंहासन सूना पड़ा है. मंदिर के महत्व को जानकर बुंदेलखंड से आने वाले श्रद्धालु मंदिर की चौखट पर माथा टेककर बिना मां लक्ष्मी के दर्शन किए लौट जाते हैं.

Laxmi Temple
लक्ष्मी मंदिर
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Published : Nov 14, 2020, 1:31 PM IST

Updated : Nov 14, 2020, 1:43 PM IST

निमाड़ी। कभी बुंदेलखंड की राजधानी रही ओरछा रियासत आज मध्यप्रदेश का सबसे छोटे जिले निवाड़ी का तहसील है. यहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है. जामुनी और बेतवा नदी के किनारे बसा यह ऐतिहासिक स्थल अपने अंदर कई सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजे हुए है. जिसे देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी सैलानी आते हैं.

अनोखा लक्ष्मी मंदिर
ओरछा स्थित जहांगीर महल, राजा महल स्टैंड, परवीन महल, चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर खास हैं. इसमें 17वीं सदी की शुरुआत में बना लक्ष्मीनारायण मंदिर अपने आप में खास है. यह मंदिर 1622 ई. में वीरसिंह देव ने बनवाया था. यह मंदिर ओरछा गांव के पश्चिम में एक पहाड़ी पर बना है. यह मंदिर पिछले 37 सालों से मूर्ति विहीन है. इस मंदिर में सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के चित्र बने हुए हैं. चित्रों के चटकीले रंग इतने जीवंत लगते हैं. जैसे वह हाल ही में बने हो. मंदिर में झांसी की लड़ाई के दृश्य और भगवान कृष्ण की आकृतियां बनी है.
इतिहासकार ने दी जानकारी

श्राप से बचने के लिए बनवाया गया था मंदिर
इतिहासकार राकेश अयाची बताते हैं कि पुराने समय में ओरछा में व्यास लोग रहा करते थे. जनश्रुति के अनुसार इन व्यासों को सोने बनाने की तकनीक का ज्ञान हो गया था. जिसके कारण इन्हें अपने धन का मद हो गया था. उसी मद से चूर होकर इन्होंने लक्ष्मी जी की मूर्ति को लक्ष्मी ताल झांसी में विसर्जित कर दिया. जिसके कारण माता लक्ष्मी ओरछा बुंदेला राजधानी से नाराज हो गई. जिसके बाद तत्कालीन राजा वीर सिंह बुंदेला ने माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया.

जानकारों ने इस मंदिर को अपने अपने तरीके से बताया है. कई जानकार इसको तांत्रिक मंदिर भी मानते हैं, जो की पूरी तरह श्री यंत्र के आकार में निर्मित है. जिसमें सामने से देखने पर उल्लू की चोंच स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. क्योंकि लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू होता है. इसी वजह से इस मंदिर को उसी तरह की स्थापत्य कला में बनाया गया है. यह मंदिर पूर्व की तरफ मुंह न करके पूर्वोत्तर की तरफ किए हुए हैं. जिसे वास्तुकला में ईशान कोण कहते हैं, मंदिर को बनाने में तंत्र एवं वास्तु का पूरा ध्यान रखा गया है.

Unique Lakshmi Temple
अनोखा लक्ष्मी मंदिर
बुंदेलखंड सहित पूरे देश में यह इकलौता मंदिर है. जिसका निर्माण तत्कालीन विद्वानों द्वारा श्रीयंत्र के आकार में उल्लू की चोंच को दर्शाते हुए किया गया है. इसके अलावा 17वीं सदी में बने इस मंदिर की मान्यता है कि दिवाली के दिन इस सिद्ध मंदिर में दीपक जलाकर मां लक्ष्मी की पूजा करने से वह प्रसन्न होती हैं. 1983 में मंदिर में स्थापित मूर्तियों को चोरों ने चुरा लिया था. तब से आज तक मंदिर के गर्भगृह का सिंहासन सूना पड़ा है. मंदिर के महत्व को जानकर बुंदेलखंड से आने वाले श्रद्धालु मंदिर की चौखट पर माथा टेककर बिना मां लक्ष्मी के दर्शन किए निराश लौट जाते हैं.

निमाड़ी। कभी बुंदेलखंड की राजधानी रही ओरछा रियासत आज मध्यप्रदेश का सबसे छोटे जिले निवाड़ी का तहसील है. यहां भगवान राम को राजा के रूप में पूजा जाता है. जामुनी और बेतवा नदी के किनारे बसा यह ऐतिहासिक स्थल अपने अंदर कई सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजे हुए है. जिसे देखने के लिए देश ही नहीं विदेश से भी सैलानी आते हैं.

अनोखा लक्ष्मी मंदिर
ओरछा स्थित जहांगीर महल, राजा महल स्टैंड, परवीन महल, चतुर्भुज मंदिर, लक्ष्मीनारायण मंदिर खास हैं. इसमें 17वीं सदी की शुरुआत में बना लक्ष्मीनारायण मंदिर अपने आप में खास है. यह मंदिर 1622 ई. में वीरसिंह देव ने बनवाया था. यह मंदिर ओरछा गांव के पश्चिम में एक पहाड़ी पर बना है. यह मंदिर पिछले 37 सालों से मूर्ति विहीन है. इस मंदिर में सत्रहवीं और उन्नीसवीं शताब्दी के चित्र बने हुए हैं. चित्रों के चटकीले रंग इतने जीवंत लगते हैं. जैसे वह हाल ही में बने हो. मंदिर में झांसी की लड़ाई के दृश्य और भगवान कृष्ण की आकृतियां बनी है.
इतिहासकार ने दी जानकारी

श्राप से बचने के लिए बनवाया गया था मंदिर
इतिहासकार राकेश अयाची बताते हैं कि पुराने समय में ओरछा में व्यास लोग रहा करते थे. जनश्रुति के अनुसार इन व्यासों को सोने बनाने की तकनीक का ज्ञान हो गया था. जिसके कारण इन्हें अपने धन का मद हो गया था. उसी मद से चूर होकर इन्होंने लक्ष्मी जी की मूर्ति को लक्ष्मी ताल झांसी में विसर्जित कर दिया. जिसके कारण माता लक्ष्मी ओरछा बुंदेला राजधानी से नाराज हो गई. जिसके बाद तत्कालीन राजा वीर सिंह बुंदेला ने माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया.

जानकारों ने इस मंदिर को अपने अपने तरीके से बताया है. कई जानकार इसको तांत्रिक मंदिर भी मानते हैं, जो की पूरी तरह श्री यंत्र के आकार में निर्मित है. जिसमें सामने से देखने पर उल्लू की चोंच स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. क्योंकि लक्ष्मी जी का वाहन उल्लू होता है. इसी वजह से इस मंदिर को उसी तरह की स्थापत्य कला में बनाया गया है. यह मंदिर पूर्व की तरफ मुंह न करके पूर्वोत्तर की तरफ किए हुए हैं. जिसे वास्तुकला में ईशान कोण कहते हैं, मंदिर को बनाने में तंत्र एवं वास्तु का पूरा ध्यान रखा गया है.

Unique Lakshmi Temple
अनोखा लक्ष्मी मंदिर
बुंदेलखंड सहित पूरे देश में यह इकलौता मंदिर है. जिसका निर्माण तत्कालीन विद्वानों द्वारा श्रीयंत्र के आकार में उल्लू की चोंच को दर्शाते हुए किया गया है. इसके अलावा 17वीं सदी में बने इस मंदिर की मान्यता है कि दिवाली के दिन इस सिद्ध मंदिर में दीपक जलाकर मां लक्ष्मी की पूजा करने से वह प्रसन्न होती हैं. 1983 में मंदिर में स्थापित मूर्तियों को चोरों ने चुरा लिया था. तब से आज तक मंदिर के गर्भगृह का सिंहासन सूना पड़ा है. मंदिर के महत्व को जानकर बुंदेलखंड से आने वाले श्रद्धालु मंदिर की चौखट पर माथा टेककर बिना मां लक्ष्मी के दर्शन किए निराश लौट जाते हैं.
Last Updated : Nov 14, 2020, 1:43 PM IST
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