निवाड़ी। मध्य प्रदेश में राजनीतिक पार्टियां चुनावी साल होने के कारण बूथ से लेकर जिला और प्रदेश स्तर पर बैठकों का आयोजन कर मतदाताओं को रिझाने के लिए तमाम तरह के उपाय कर रहे हैं. कार्यकर्ताओं और नेताओं को जनता के बीच भेज रहे हैं. इस चुनावी साल में हम आपको एमपी की सीटों का विश्लेषण बता रहे हैं. बात अगर निवाड़ी जिले की करें तो, निवाड़ी में 2 विधानसभा सीटे आती हैं, वह है निवाड़ी और पृथ्वीपुर. निवाड़ी सीट पर 2013 से भाजपा अपना कब्जा जमाए हुए है. इसके पहले 2008 में समाजवादी पार्टी से मीरा दीपक यादव ने जीत हासिल की थी जो कि पूरे मध्यप्रदेश में समाजवादी पार्टी की इकलौती सीट थी. यहां 2013 से भाजपा से अनिल जैन विधायक हैं.
निवाड़ी विधानसभा सीट का विशेष स्थान: विधानसभा क्रमांक 46 निवाड़ी कृषि, खनिज, धार्मिक और पर्यटन के लिए जाना जाता है. यहां खनिज से शासन को अच्छा खासा राजस्व प्राप्त होता है. ओरछा एक धार्मिक नगरी के साथ ही पर्यटन नगरी भी है. जहां देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक श्री राम राजा सरकार के दर्शन करने आते हैं. हाल ही में पिछले दो माह में श्रद्धालुओं ने अपने आराध्य रामराजा सरकार को नजदीक से निहारने के लिए 16 लाख रुपए से अधिक की राशि खर्च की है. ऐतिहासिक नगरी होने के कारण यहां स्थित किले और अन्य स्थानों पर कई फिल्मों और सीरियलों की शूटिंग की गई है. वर्तमान में ओरछा नगरी बॉलीवुड की भी पसंद बनती जा रही है. यहां कई फिल्मों और सीरियलों की शूटिंग की गई है.
निवाड़ी विधानसभा क्षेत्र के सियासी हालात: निवाड़ी विधानसभा का क्षेत्र पहले काफी बड़ा हुआ करता था. 2008 में निवाड़ी विधानसभा क्षेत्र से कुछ हिस्सा निकालकर एक नई पृथ्वीपुर विधानसभा बना दी गई. 2008 में हुए विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी से मीरा यादव ने विजय प्राप्त की. 2013 में चुनावी सभा के दौरान मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निवाड़ी को जिला बनाने का वादा कर इस सीट को पहली बार भाजपा के पाले में खींच लिया. 2018 के चुनाव से ठीक पहले निवाड़ी को जिला बनाने की घोषणा कर लगातार दूसरी बार इस विधानसभा पर अनिल जैन काबिज हुए.
सत्ता संगठन का तालमेल करेगा खेल: निवाड़ी विधानसभा क्षेत्र में सरकार और संगठन के तालमेल ना होने की चर्चाएं अब आम हो गई हैं. इनकी बातें गली-गली में हो रहीं हैं. पार्टी के कार्यकर्ता के लिए बड़ी बात होती है, जब किसी पार्टी की सरकार हो और सरकार और प्रशासन के नुमाइंदे अपने संगठन के कार्यकर्ताओं तो ठीक, जिला के पदाधिकारियों को भी कोई खास तवज्जो नहीं दें. ऐसे में सरकार और संगठन का तालमेल ना होने की स्थिति में इस बार चुनाव की स्थिति कुछ भी हो सकती है.
संभावित दावेदार: भाजपा से निवाड़ी विधानसभा में भाजपा से वर्तमान विधायक अनिल जैन के अलावा जिलाध्यक्ष अखिलेश अयाची, सांसद प्रतिनिधि राजेश पटेरिया, प्रमोद कुशवाहा, रोशनी यादव, नंदराम कुशवाहा पशुधन एवं कुक्कुट निगम, अमित राय अपनी दावेदारी कर रहे हैं. जबकि कांग्रेस से गरौठा (उत्तरप्रदेश) से पूर्व विधायक बृजेन्द्र कुमार (डमडम) व्यास, नारायण रिछारिया, रजनीश पटेरिया, अभिषेक दुबे, राजदीप राठौर, अनूप बडोनिया सहित अन्य कई दावेदार अपनी दावेदारी प्रस्तुत कर रहे हैं. वहीं बहुजन समाज पार्टी से अवधेश सिंह राठौर संभावित प्रत्याशी हैं. समाजवादी पार्टी से भी पूर्व विधायक मीरा दीपक यादव चुनावी मैदान में आ चुकी हैं.
साल 2008 का चुनावी परिणाम: साल 2008 में निवाड़ी विधानसभा क्षेत्र में समाजवादी पार्टी से मीरा दीपक यादव को 34745 वोट मिले थे. दूसरे नंबर पर भाजपा से अनिल जैन 19571, तीसरे नंबर पर बसपा से गणेश प्रसाद कुशवाहा को 14907 वोट मिले थे.
साल 2013 का चुनावी परिणाम: वहीं 2013 में भाजपा ने एक बार फिर अनिल जैन को प्रत्याशी के तौर पर उतारा. जहां उन्हें 60395, समाज वादी पार्टी से मीरा दीपक यादव को 33186 और बसपा से शालिग्राम को 18151 मत हासिल हुए थे.
साल 2018 का चुनावी परिणाम: साल 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने तीसरी बार अनिल जैन को टिकट दिया था. इस बार भी अनिल जैन ने जीत हासिल की थी. अनिल जैन को 49738, समाज वादी पार्टी से मीरा दीपक यादव को 40901 और बसपा से गणेश प्रसाद कुशवाहा को 21444 मत हासिल हुए थे.
कांटे का होगा मुकाबला: इस बार चुनाव में मतदाताओं के अनुसार कांटे की टक्कर होने वाली है. जिसमें भाजपा, कांग्रेस, बसपा और समाजवादी पार्टी के चारों प्रत्याशी जहां दमदार हैं, वहीं दूसरी ओर भाजपा को सत्ता संगठन की खींचतान का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है. जिसका फायदा किसी अन्य पार्टी को मिलेगा.
पिछले कुछ वर्षों में विधानसभा क्षेत्र में भाजपा की आपसी खींचतान का मामला आम जनता के बीच भी पहुंचा है. यहां जनप्रतिनिधियों व संगठन के बीच आपसी तालमेल ना बैठा पाना इस सीट को खोने का मुख्य कारण रहेगा. स्थानीय विधायक व सांसद का सभी कार्यक्रमों में एक साथ मौजूद ना होना हमेशा चर्चा का विषय बना रहा.