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आजादी के सात दशक बाद भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर आदिवासी, लगाई मदद की गुहार

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Published : Aug 15, 2020, 2:58 PM IST

Updated : Aug 15, 2020, 3:12 PM IST

नीमच जिले के बीलवास गांव के ग्रामीण मूलभूत सुविधाओं के अभाव में नारकीय जीवन जीने को विवश हैं. गांव में कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिनको अपने सरपंच-सचिव तक का नाम नहीं पता है, कुछ ने तो पंचायत तक नहीं देखा है.

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आजादी के बाद भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर ग्रामीण

नीमच। जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर बीलवास गांव आजादी के 74 साल बाद भी विकास की बाट जोह रहा है. मनासा तहसील के भदाना पंचायत के अन्तर्गत आने वाले गांव बिलवास में करीब 300 से ज्यादा मतदाता हैं, लेकिन 200 घरों वाला ये गांव दशकों से मूलभूत सुविधाओं के अभाव में नारकीय जीवन जीने को विवश है. गांव में कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिनको अपने सरपंच-सचिव तक का नाम नहीं पता है, यहां तक की इन्होंने पंचायत तक नहीं देखी. ग्रामीण आदिवासी सरपंच-सचिव और अधिकारियों के छलावे से तंग आ गए हैं. इनके पास न खाने को अनाज, न मकान, न पानी, न घर में बिजली, न शौचालय, न राशन कार्ड और मजदूरी के अलावा कोई दूसरा रोजगार भी नहीं है.

आजादी के बाद भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर ग्रामीण

नारकीय जीवन जी रहे ग्रामीण आदिवासी

गांव के भील आदिवासियों ने बताया की गर्मी में करीब पांच किलोमीटर दूर से पीने के लिए पानी लाना पड़ता है और गांव में 6 हैंडपंप हैं, जो बंद पड़े हैं, दो सरकारी कुएं बनाए गए हैं, जो बरसात में भी सूखे पड़े रहते हैं. एक टंकी बनवाई गई है वो भी बंद पड़ी है. बिजली की लाइन तो है, लेकिन पोल से घर तक आप खुद लाइन डालकर ले जाओ, कभी-कभार तो हालात ऐसे हो जाते हैं कि बिजली विभाग के कर्मचारी कई महीनों तक लाइट सही करने नहीं आते.

शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं

ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कुछ साल पहले गांव की लाइट 6 महीने से बंद पड़ी थी, लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की. ग्रामीणों ने बताया की आंगनबाड़ी भवन है और वो भी जर्जर हालत में है, जहां बैठने से भी बच्चों को डर लगता है. जिसके गिरने से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है.

गांव तक नहीं पहुंची प्रधानमंत्री आवास योजना

ऐसे हालात में गांव के लोग पत्तों से झोपड़ियां बनाकर बरसाती प्लास्टिक डालकर रह रहे हैं तो कहीं लोगों ने पत्थर से घर की छत टिका रखी है, जो कभी भी गिर सकती है. जिससे बड़ा हादसा हो सकता है. बारिश में लोगों के घरों में पानी भर जाता है तो पूरी रात जागकर गुजारनी पड़ती है. इन लोगों को न ही प्रधानमंत्री आवास का लाभ मिल पाया है और न ही शौचालय का, न नल जल योजना का.

गरीबों के राशन में भ्रष्टाचार

राशन के लिए पांच किलोमीटर दूर जाना जाना पड़ता है, वहां पर भी कई आदिवासी लोगों का राशन भ्रष्टाचार के चलते सोसाइटी कर्मचारी डकार जाते हैं और इन्हें डरा धमकाकर भगा दिया जाता है. राजू पटेल ग्राम वसूली सदस्य ने इन भील आदिवासियों की तरफ से शासन से मांग की है कि इन लोगों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाएं, ताकि ये अपना जीवन खुशहाली से जी सकें.

नीमच। जिला मुख्यालय से करीब 70 किलोमीटर दूर बीलवास गांव आजादी के 74 साल बाद भी विकास की बाट जोह रहा है. मनासा तहसील के भदाना पंचायत के अन्तर्गत आने वाले गांव बिलवास में करीब 300 से ज्यादा मतदाता हैं, लेकिन 200 घरों वाला ये गांव दशकों से मूलभूत सुविधाओं के अभाव में नारकीय जीवन जीने को विवश है. गांव में कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिनको अपने सरपंच-सचिव तक का नाम नहीं पता है, यहां तक की इन्होंने पंचायत तक नहीं देखी. ग्रामीण आदिवासी सरपंच-सचिव और अधिकारियों के छलावे से तंग आ गए हैं. इनके पास न खाने को अनाज, न मकान, न पानी, न घर में बिजली, न शौचालय, न राशन कार्ड और मजदूरी के अलावा कोई दूसरा रोजगार भी नहीं है.

आजादी के बाद भी नारकीय जीवन जीने को मजबूर ग्रामीण

नारकीय जीवन जी रहे ग्रामीण आदिवासी

गांव के भील आदिवासियों ने बताया की गर्मी में करीब पांच किलोमीटर दूर से पीने के लिए पानी लाना पड़ता है और गांव में 6 हैंडपंप हैं, जो बंद पड़े हैं, दो सरकारी कुएं बनाए गए हैं, जो बरसात में भी सूखे पड़े रहते हैं. एक टंकी बनवाई गई है वो भी बंद पड़ी है. बिजली की लाइन तो है, लेकिन पोल से घर तक आप खुद लाइन डालकर ले जाओ, कभी-कभार तो हालात ऐसे हो जाते हैं कि बिजली विभाग के कर्मचारी कई महीनों तक लाइट सही करने नहीं आते.

शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं

ग्रामीणों ने बताया कि पिछले कुछ साल पहले गांव की लाइट 6 महीने से बंद पड़ी थी, लेकिन किसी ने सुनवाई नहीं की. ग्रामीणों ने बताया की आंगनबाड़ी भवन है और वो भी जर्जर हालत में है, जहां बैठने से भी बच्चों को डर लगता है. जिसके गिरने से कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है.

गांव तक नहीं पहुंची प्रधानमंत्री आवास योजना

ऐसे हालात में गांव के लोग पत्तों से झोपड़ियां बनाकर बरसाती प्लास्टिक डालकर रह रहे हैं तो कहीं लोगों ने पत्थर से घर की छत टिका रखी है, जो कभी भी गिर सकती है. जिससे बड़ा हादसा हो सकता है. बारिश में लोगों के घरों में पानी भर जाता है तो पूरी रात जागकर गुजारनी पड़ती है. इन लोगों को न ही प्रधानमंत्री आवास का लाभ मिल पाया है और न ही शौचालय का, न नल जल योजना का.

गरीबों के राशन में भ्रष्टाचार

राशन के लिए पांच किलोमीटर दूर जाना जाना पड़ता है, वहां पर भी कई आदिवासी लोगों का राशन भ्रष्टाचार के चलते सोसाइटी कर्मचारी डकार जाते हैं और इन्हें डरा धमकाकर भगा दिया जाता है. राजू पटेल ग्राम वसूली सदस्य ने इन भील आदिवासियों की तरफ से शासन से मांग की है कि इन लोगों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जाएं, ताकि ये अपना जीवन खुशहाली से जी सकें.

Last Updated : Aug 15, 2020, 3:12 PM IST
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