नरसिंहपुर। मध्यप्रदेश सरकार भले ही बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं देने के बड़े-बड़े दावे करती हो लेकिन जमीनी हकीकत इसके बिल्कुल विपरीत है. मध्यप्रदेश आज भी डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा है. प्रदेश में चिकित्सा विशेषज्ञ के 3195 पद स्वीकृत हैं. पर महज 1210 पद ही भरे है. इनमें से भी केवल 1063 विशेषज्ञ है. बाकि विशेषज्ञ ही नहीं है. जिसके चलते प्रदेश की स्वास्थ सेवाएं खुद वेंटिलेटर पर है.
सरकारी अस्पतालों में मरीजों की भरभार है लेकिन डॉक्टर नहीं है. इसका खमियाजा बेबस मरीजों को उठाना पड़ रहा है. सरकारी अस्पतालों में डाक्टरों के उपलब्ध रहने का समय सुबह 9 से शाम 4 बजे तक निर्धारित किया गया है. लेकिन यहां डॉक्टर नदारद रहते है.
अस्पताल में पहले से भर्ती मरीजों का हाल भी बेहाल है. यहां जो पिछले 1 हफ्ते से अस्पतालों में नर्स और वार्ड बॉय के भरोसे ही इलाज कराने को मजबूर है. मरीज बताते हैं कि भर्ती होने के बावजूद भी कई दिन हो गए डॉक्टर देखने नहीं आए है सिर्फ नर्स आती हैं और दवा देकर चली जाती हैं. उनसे पूछो तो वह कहती हैं कि डॉक्टर साहब अस्पताल में ही नहीं है तो आएंगे कहां से.
कुछ मरीज तो ऐसे हैं जो एचआईवी से पीड़ित हैं जिन्हें सघन जांच की जरूरत है लेकिन उन्हें भी डॉक्टर नसीब नहीं है. इतना ही नहीं अस्पताल की हालत तो नर्क से भी बदतर है. फटे बदबूदार बिस्तर और संक्रमण के बीच मरीज अपना इलाज कराने को मजबूर है और तो और अस्पताल के कई एक्यूमेंट निर्जीव पड़े हुए हैं. ब्लड बैंक में रखी कई महीनों से लाखों की सीबीसी मशीन खराब पड़ी हुई है और मजबूरन लैब टेक्नीशियन मरीजों को बाहर से टेस्ट कराने की सलाह दे रहे है. ऐसा नहीं है कि उन्होंने शिकायत नहीं की लगातार शिकायतों के बाद भी सुनने वाला कोई नहीं है.
अस्पताल कबाड़ में तब्दील
हैरानी की बात ये है कि दो साल जिला अस्पताल को दो साल पहले ट्रामा सेंटर की सौगात मिली हुई है और जिले में एक करोड़ सत्तर लाख कि चलित एंबुलेंस सुविधा मिली हुई है. जिसमें ऑपरेशन से लेकर वेंटिलेटर सहित तमाम अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस है लेकिन डॉक्टर की कमी के चलते वह भी कबाड़ में बदलने लगी है.
सीएमएचओ डॉक्टर अनीता अग्रवाल बताती है कि जिला अस्पताल में 31मेडिकल ऑफिसर के पद है. जिसमें से केवल जिला अस्पताल में चार डाक्टर ही वर्तमान में पदस्थ है. जिला अस्पताल में एक भी फिजिशियन ड्रमोटोलाजिस्ट, कड़ियोलाजिस्ट और लगभग 500 डिलेवरी होने के बाद भी गायनोकोलॉजिस्ट नहीं है और मजबूरन फिजिएमो द्वारा डिलेवरी कराई जाती है. यहां तक की इतने बड़े हॉस्पिटल में केवल एक ही सर्जन मौजूद है.
जिले में स्वास्थ्य सेवाओं का यह हाल है तो प्रदेश में क्या स्थिति होगी बावजूद इसके सरकार बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं के दावे करती नजर तो आती है लेकिन डॉक्टरों की कमी से जूझ रहा अस्पताल और अस्पताल की ये बयां करती हालात इस बात की तस्दीक कर रही है कि सरकार को दावे नहीं बल्कि अमल करने की जरूरत है.