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लॉकडाउन ने मजदूरों की बिगाड़ी दशा-दिशा, कोई नहीं ले रहा सुध

लॉकडाउन के चलते मजदूरों की दशा और दिशा दोनों की बिगड़ गई है, इनके पास रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है, लेकिन इनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. अब तक न कोई जनप्रतिनिधि पहुंचा और न ही सरपंच पहुंचा है.

Lockdown worsens the condition of rural laborers, no one reaches to improve
लॉकडाउन ने ग्रामीण मजदूरों की बिगाड़ी दशा
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Published : Apr 21, 2020, 6:17 PM IST

आगर-मालवा। पिछले एक माह से कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते रोज कमाने खाने वाले ऐसे सैंकड़ो मजदूर एक माह से घर बैठे हैं, जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. शहरी क्षेत्र में तो सामाजिक, राजनीतिक संगठनों और प्रशासन द्वारा जरूरतमंदों तक खाद्यान्न सामग्री पहुंचाई गई, लेकिन गांवों में रहने वाले मजदूर वर्ग के एक बड़े तबके को अछूता छोड़ दिया. अब ये लोग आस लगाए बैठे थे कि उनके जनप्रतिनिधि उनकी सुध लेने आएंगे, लेकिन जनप्रतिनिधि भी मजदूरों की सुध लेने नहीं पहुंचे.

ग्रामीणों में व्याप्त हुआ आक्रोश

जिला मुख्यालय से महज 10 किमी दूर स्थित ग्राम पंचायत झलारा के मझरा बड़गोन नदी का डेरा की आबादी महज 200 के आस-पास है, लेकिन बंजारा समाज के इस डेरे के सभी लोग मजदूरी पर आश्रित है. कोई वाहन चलाता है तो कोई निर्माण कार्यों से जुड़े हुए कार्यों में मजदूरी करता है. लॉकडाउन ने इनकी मजदूरी तो छिनी साथ ही युवाओं के लिए अगली चुनौती भी तैयार कर दी. अधिकांश युवा ड्राइवरी करते हैं और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पूरी तरह बंद होने से इन युवाओं के समक्ष आने वाले दिन भी चुनौती भरे ही रहेंगे. कहीं से कोई मदद न मिलने से ग्रामीणों में खासा आक्रोश है.

कोई नहीं पहुंचा सुध लेने

प्रशासनिक स्तर पर कंट्रोल रूम बनाया गया और व्यवस्थाएं जुटाई गई, लेकिन ये व्यवस्थाएं भी महज शहरी क्षेत्र तक ही सिमटती हुई दिखाई दे रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में गिने चुने सामाजिक कार्यकर्ता ही लोगों की मदद करने के लिए आगे आए. कुछ जनप्रतिनिधि भी गांवों तक पहुंचे, लेकिन वो भी इतने लंबे समय तक ग्रामीणों की मदद नहीं कर पाए. गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले मजदूरों को तीन-तीन महीने का राशन तो दे दिया गया, लेकिन अन्य आवश्यक सामग्री के लिए उनकी कोई सुध नहीं ली गई. जैसे ही मजदूरी बंद हुई तो इनके सामने खाने-पीने की समस्या आ गई और देखते ही देखते ये समस्या विकट होने लगी.

जीवन यापन करने की समस्या

गांव में सभी गरीबी रेखा से निचे जीवन यापन करते है. गांव के युवा से लेकर बड़े और महिलाएं मजदूरी का कार्य करते है. अधिकांश युवा वर्ग ड्रायवरी से जुड़ा हुआ है, महिलाएं निर्माण कार्यों और क्रेशर मशीनों पर मजदूरी का कार्य करते है. गांव में अन्य कोई आजीविका का साधन नही है, मजदूरी ही एक मात्र इनकी आजीविका है. जिनका सुध लेने के लिए न तो कोई अधिकारी पहुंचे और न ही सरपंच, जिसके बाद ये लोग मुसीबत में जीवन जी रहे है.

आगर-मालवा। पिछले एक माह से कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते रोज कमाने खाने वाले ऐसे सैंकड़ो मजदूर एक माह से घर बैठे हैं, जिनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है. शहरी क्षेत्र में तो सामाजिक, राजनीतिक संगठनों और प्रशासन द्वारा जरूरतमंदों तक खाद्यान्न सामग्री पहुंचाई गई, लेकिन गांवों में रहने वाले मजदूर वर्ग के एक बड़े तबके को अछूता छोड़ दिया. अब ये लोग आस लगाए बैठे थे कि उनके जनप्रतिनिधि उनकी सुध लेने आएंगे, लेकिन जनप्रतिनिधि भी मजदूरों की सुध लेने नहीं पहुंचे.

ग्रामीणों में व्याप्त हुआ आक्रोश

जिला मुख्यालय से महज 10 किमी दूर स्थित ग्राम पंचायत झलारा के मझरा बड़गोन नदी का डेरा की आबादी महज 200 के आस-पास है, लेकिन बंजारा समाज के इस डेरे के सभी लोग मजदूरी पर आश्रित है. कोई वाहन चलाता है तो कोई निर्माण कार्यों से जुड़े हुए कार्यों में मजदूरी करता है. लॉकडाउन ने इनकी मजदूरी तो छिनी साथ ही युवाओं के लिए अगली चुनौती भी तैयार कर दी. अधिकांश युवा ड्राइवरी करते हैं और सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था पूरी तरह बंद होने से इन युवाओं के समक्ष आने वाले दिन भी चुनौती भरे ही रहेंगे. कहीं से कोई मदद न मिलने से ग्रामीणों में खासा आक्रोश है.

कोई नहीं पहुंचा सुध लेने

प्रशासनिक स्तर पर कंट्रोल रूम बनाया गया और व्यवस्थाएं जुटाई गई, लेकिन ये व्यवस्थाएं भी महज शहरी क्षेत्र तक ही सिमटती हुई दिखाई दे रही है. ग्रामीण क्षेत्रों में गिने चुने सामाजिक कार्यकर्ता ही लोगों की मदद करने के लिए आगे आए. कुछ जनप्रतिनिधि भी गांवों तक पहुंचे, लेकिन वो भी इतने लंबे समय तक ग्रामीणों की मदद नहीं कर पाए. गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले मजदूरों को तीन-तीन महीने का राशन तो दे दिया गया, लेकिन अन्य आवश्यक सामग्री के लिए उनकी कोई सुध नहीं ली गई. जैसे ही मजदूरी बंद हुई तो इनके सामने खाने-पीने की समस्या आ गई और देखते ही देखते ये समस्या विकट होने लगी.

जीवन यापन करने की समस्या

गांव में सभी गरीबी रेखा से निचे जीवन यापन करते है. गांव के युवा से लेकर बड़े और महिलाएं मजदूरी का कार्य करते है. अधिकांश युवा वर्ग ड्रायवरी से जुड़ा हुआ है, महिलाएं निर्माण कार्यों और क्रेशर मशीनों पर मजदूरी का कार्य करते है. गांव में अन्य कोई आजीविका का साधन नही है, मजदूरी ही एक मात्र इनकी आजीविका है. जिनका सुध लेने के लिए न तो कोई अधिकारी पहुंचे और न ही सरपंच, जिसके बाद ये लोग मुसीबत में जीवन जी रहे है.

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