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नरसिंहपुर के रोशन की खास मशीन ने दिलाया राष्ट्रपति सम्मान, जानिए क्या है इसकी खासियत

नरसिंहपुर के किसान ने एक ऐसी मशीन बनाई है जिसने उसे देश-विदेश में पहचान दिला दी है. जहां इस किसान को राष्ट्रपति अवॉर्ड से सम्मानित किया गया है तो वहीं उसकी बनाई गई मशीन की विदेशों में डिमांड बढ़ती जा रही है.

नरसिंहपुर के किसान का आविष्कार
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Published : Apr 1, 2019, 5:00 PM IST

नरसिंहपुर। इंजीनियर बनने का था सपना, लेकिन परीक्षा में मिली असफलता ने किया खेती करने को मजबूर. पुश्तैनी जमीन पर गन्ने की खेती तो की, लेकिन लागत ज्यादा थी और पैसे कम. फिर उन्होंने कुछ जुगाड़ लगाने की ठानी. जुगाड़ भी ऐसा जिसने उन्हें राष्ट्रपति सम्मान का हकदार बना दिया.

नरसिंहपुर के किसान का आविष्कार

हम बात कर रहे हैं नरसिंहपुर के किसान रोशन लाल विश्वकर्मा की. रोशन लाल के पास गन्ने की खेती करने के लिए पूंजी नहीं थी, लेकिन कुछ कर दिखाने के उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई. उन्होंने एक ऐसी मशीन का अविष्कार किया, जिसकी डिमांड आज देश-विदेश में है.

इन तस्वीरों में जो मशीन आप देख रहे हैं इसका नाम वटक्षेपर है. रोशन लाल बताते हैं कि इस मशीन से गन्ने का बड यानी उसकी आंख या बीज बड़ी आसानी से निकाले जा सकते हैं. इसके बाद इन बीजों को खेती के लिए उपयोग में लाया जा सकता है. वटक्षेपर से एक दिन में 220 गन्नों के बीज निकाले जा सकते हैं. खास बात यह है कि इस मशीन को बनाने में सिर्फ 1200 रुपए की लागत आती है.

रोशन लाल के खेत का एक हिस्सा कारखाने में तब्दील हो गया है. उन्हें नाबार्ड सहित राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सम्मानित होने मौका मिला है. मशीन बनाने के शौक ने रोशन लाल को देश-विदेश में पहचान दिलाई है. वे प्रदेश के किसानों के लिए एक मिसाल हैं.

नरसिंहपुर। इंजीनियर बनने का था सपना, लेकिन परीक्षा में मिली असफलता ने किया खेती करने को मजबूर. पुश्तैनी जमीन पर गन्ने की खेती तो की, लेकिन लागत ज्यादा थी और पैसे कम. फिर उन्होंने कुछ जुगाड़ लगाने की ठानी. जुगाड़ भी ऐसा जिसने उन्हें राष्ट्रपति सम्मान का हकदार बना दिया.

नरसिंहपुर के किसान का आविष्कार

हम बात कर रहे हैं नरसिंहपुर के किसान रोशन लाल विश्वकर्मा की. रोशन लाल के पास गन्ने की खेती करने के लिए पूंजी नहीं थी, लेकिन कुछ कर दिखाने के उनके जज्बे में कोई कमी नहीं आई. उन्होंने एक ऐसी मशीन का अविष्कार किया, जिसकी डिमांड आज देश-विदेश में है.

इन तस्वीरों में जो मशीन आप देख रहे हैं इसका नाम वटक्षेपर है. रोशन लाल बताते हैं कि इस मशीन से गन्ने का बड यानी उसकी आंख या बीज बड़ी आसानी से निकाले जा सकते हैं. इसके बाद इन बीजों को खेती के लिए उपयोग में लाया जा सकता है. वटक्षेपर से एक दिन में 220 गन्नों के बीज निकाले जा सकते हैं. खास बात यह है कि इस मशीन को बनाने में सिर्फ 1200 रुपए की लागत आती है.

रोशन लाल के खेत का एक हिस्सा कारखाने में तब्दील हो गया है. उन्हें नाबार्ड सहित राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सम्मानित होने मौका मिला है. मशीन बनाने के शौक ने रोशन लाल को देश-विदेश में पहचान दिलाई है. वे प्रदेश के किसानों के लिए एक मिसाल हैं.

Intro:नरसिंहपुर। भारत रत्न एपीजे अब्दुल कलाम के सपनो के भारत को गढ़ता एक किसान नरसिंहपुर जिले के दूरस्थ ग्राम मेघ में बसता है, एक छोटे से गाँव से निकलकर राष्ट्रपिता से सम्मान लेने वाले किसान रोशन विश्वकर्मा की कहानी, जिनके बनाये कृषि उपकरण आज अमेरिका और यूरोप के देश खरीद रहे है, मूलत किसान पृष्ठभूमि के विश्वकर्मा आज कृषि वैज्ञानिक के रूप में अपनी पहचान बना चुके है। इनके मशीन बनाने के शौक ने इन्हें दुनियाभर में पहचान दिलाई है।


Body:रोशन लाल विश्वकर्मा बताते है कि वह बचपन मे इजीनियर बनना चाहते थे पर पेसो की कमी के कारण उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका, जब उन्होंने अपनी पुश्तेनी भूमि पर खेती करने की सोची तो गन्ना के खेती में लागत कम लगाने के लिए उन्होंने कुछ जुगत करने की ठानी, उनकी जुगत के चक्कर मे उन्होने नई खोज कर डाली जिस यन्त्र पर आज उनका पेटेंट है।

वटक्षेपर नाम की यह मशीन उनके लिए शौहरत लेकर आई, यह मशीन गन्ने की आंख निकलने का काम बड़ी आसानी से करती है एक दिन में 220 गन्नों की आंखें(बीज) निकलने का काम किया जाता है उनको इसे बनाने में 1200 रुपये की लागत आती है इस मशीन के कारण उन्हें नाबार्ड सहित राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से सम्मानित होने का भी मौका मिला है।




Conclusion:उनकी इस उपलब्धि पर उनके पिता धनीराम विश्वकर्मा ओर बेटे राजेन्द्र इसे किसानों की उपलब्धि बताते है, विश्वकर्मा के खेत मे ही अब एक हिस्सा मशीनों के कारखाने के रुप मे तब्दील हो गया है।

बाइट रोशन लाल विश्वकर्मा राष्ट्रपति अवार्डी किसान
पिता घनिराम विश्वकर्मा
पुत्र राजेन्द्र कुमार विश्वकर्मा
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