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महिला दिवसः इनकी जिद ने बदली गांव की तस्वीर, मिट गया बदनामी का दाग - तस्वीर

कहावत है कि अगर ठान लो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है. इसे उमरिया पुरा गांव की महिलाओं ने साबित कर दिखाया है. जिस गांव में बेटियों को अभिशाप माना जाता था. वहां महिलाओं की जिद ने पूरे गांव की तस्वीर बदल दी है.

इनकी जिद ने बदली गांव की तस्वीर, मिट गया बदनामी का दाग
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Published : Mar 8, 2019, 12:06 AM IST

मुरैना। कहावत है कि अगर ठान लो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है. इसे उमरिया पुरा गांव की महिलाओं ने साबित कर दिखाया है. जिस गांव में बेटियों को अभिशाप माना जाता था. वहां महिलाओं की जिद ने पूरे गांव की तस्वीर बदल दी है.

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इनकी जिद ने बदली गांव की तस्वीर, मिट गया बदनामी का दाग

मुरैना से 25 किमी दूर स्थित ये गांव कभी शराबियों का गढ़ माना जाना था. जहां आए दिन मारपीट जैसी घटनाओं के मामले सामने आते रहते थे. वहीं 6 साल पहले सामाजिक कार्यकर्ता आशा सिकरवार ने गांव की महिलाओं को जागरूक किया और उन्हें बदलाव का सुझाव दिया. जिसके बाद महिलाओं ने अपना संगठन बनाकर दूध का कारोबार शुरु किया और बच्चों को स्कूल भेजना शुरु किया.

इनकी जिद ने बदली गांव की तस्वीर, मिट गया बदनामी का दाग

बता दें, शराबी पति से परेशान महिलाओं ने अपने पतियों को थाने में बंद करवाया और उसके बाद शराब कारोबारियों की गाड़ियां तोड़ दी. शराब के अड्डे उजाड़े. इस दौरान गांव के लोगों को शराब की लत छोड़ने के लिए अनेकों उपाय किये, जिसके बाद इस गांव में बदलाव की बयार चली और अब इस गांव की अलग पहचान बन गयी है.

मुरैना। कहावत है कि अगर ठान लो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है. इसे उमरिया पुरा गांव की महिलाओं ने साबित कर दिखाया है. जिस गांव में बेटियों को अभिशाप माना जाता था. वहां महिलाओं की जिद ने पूरे गांव की तस्वीर बदल दी है.

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इनकी जिद ने बदली गांव की तस्वीर, मिट गया बदनामी का दाग

मुरैना से 25 किमी दूर स्थित ये गांव कभी शराबियों का गढ़ माना जाना था. जहां आए दिन मारपीट जैसी घटनाओं के मामले सामने आते रहते थे. वहीं 6 साल पहले सामाजिक कार्यकर्ता आशा सिकरवार ने गांव की महिलाओं को जागरूक किया और उन्हें बदलाव का सुझाव दिया. जिसके बाद महिलाओं ने अपना संगठन बनाकर दूध का कारोबार शुरु किया और बच्चों को स्कूल भेजना शुरु किया.

इनकी जिद ने बदली गांव की तस्वीर, मिट गया बदनामी का दाग

बता दें, शराबी पति से परेशान महिलाओं ने अपने पतियों को थाने में बंद करवाया और उसके बाद शराब कारोबारियों की गाड़ियां तोड़ दी. शराब के अड्डे उजाड़े. इस दौरान गांव के लोगों को शराब की लत छोड़ने के लिए अनेकों उपाय किये, जिसके बाद इस गांव में बदलाव की बयार चली और अब इस गांव की अलग पहचान बन गयी है.

Intro:एंकर - पूरे देश में महिला सशक्तिकरण करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।महिला दिवस पर आपको कई ऐसी महिलाओं के बारे में पढ़ने और सुनने को मिलेगा जिन्होंने अपनी जिद और हौसले से अपने लोगों की जिंदगी बदली होगी। इसी कड़ी में आज हम आपको चंबल अंचल के एक छोटे से गांव की महिलाओं से मिलवाएंगे जिन्होंने जिद की और अपने साथ पूरे गांव की तस्वीर को ही बदल कर रख दिया। यह उस समय बड़ी बात होती है जब यह इलाका चंबल का हो जहां पर कभी बेटियों का अभिशाप माना जाता था।

वीओ1 - यह है मुरैना जिले का उमरिया पुरा गांव मुरैना से 25 किलोमीटर दूर पडने वाला यह गांव कभी शराब और शराबियों का अड्डा माना जाता था। आए दिन शराब पीकर महिलाओं के साथ मारपीट की घटना तो जैसे आम बात थी।6 साल पहले सामाजिक कार्यकर्ता आशा सिकरवार से महिलाओं को समझाने और उन्हें जागरूक करने का सिलसिला शुरु हुआ। धीरे धीरे इस प्रयास का असर हुआ और पूरे गांव को ना सिर्फ शराब से मुक्ति मिली बल्कि पाई पाई को मोहताज महिलाओं ने ही अपना संगठन बना कर दूध का कारोबार शुरू कर दिया।

बाईट3 - आशा सिकरवार - समाजसेवी


Body:वीओ2 - शराबी पतियों से परेशान महिलाओं ने पहले तो पतियों को थाने में बंद कराना शुरू किया। फिर उसके बाद शराब कारोबारियों की गाड़ियां भी तोड़ी तब जाकर यह पूरे गांव को शराब से मुक्ति मिली। फिर महिलाओं ने मिलकर गांव में दूध का कारोबार शुरू किया जिसके चलते आज पैसा भी आ रहा है।बच्चे पढ़ रहे हैं और उनके शराबी पति भी अब सुधर कर उनके काम में सहयोग कर रहे।

बाईट1 - नारायणी कुशवाह - महिला
बाईट2 - राजकुमारी - महिला

वीओ3 - कहावत है कि अगर ठान लो तो कुछ भी नामुमकिन नहीं है।उमरिया पुरा की इन महिलाओं ने यह साबित कर दिया चंबल अंचल की तस्वीर बदल रही है। उमरिया पूरा एक उदाहरण है उन गांव की सभी महिलाओं के लिए जो इस तरह से पीड़ित है।


Conclusion:
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