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सूने पड़े हैं दर्जनों गांव, राष्ट्रपति के 'दत्तक पुत्र' छोड़कर अपना गांव कर रहे हैं पलायन

मुरैना जिले में रोजगार के साधन नहीं हैं, लोग पलायन कर रहे हैं, आदिवासी महिलाओं को सरकारी योजाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है. कई बार वे शिकायत कर चुकी हैं लेकिन हालात जस के तस हैं.

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Published : Mar 31, 2019, 2:46 PM IST

आदिवासी महिलाएं

मुरैना। चुनाव के दौरान विपक्ष को मात देने और आदिवासी वोटर्स को साधने के लिए नेता एक से बढ़कर लुभावने वादे करते हैं, लेकिन चुनाव गुजरते ही वो उन्हें दूध से मक्खी की तरह निकालकर दूर कर देते हैं. जब-जब चुनाव हुये हैं खुद को आदिवासियों का हमदर्द बताने इन नेताओं ने एक से बढ़कर एक चुनावी घोषणाएं की. लेकिन चुनाव जीतते ही खुद सत्ता सुख में लग गए और आदिवासिों को हाशिये पर डाल दिया. मुरैना में आज भी आदिवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

आदिवासियों को नहीं मिल रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

सरकारी योजनाएं की किरण अभी तक उन तक नहीं पहुंची है. मुरैना के आदिवासी बाहुल्य पहाड़गढ़ में हालात बेहद बुरे हैं. रोजगार नहीं होने के चलते लोग दूसरे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. लिहाजा दर्जनों गांव सूने पड़े हैं. भले ही प्रदेश को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए सरकार योजनाओं का ढिंढोरा पीट रही हो. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. प्रधानमंत्री आवास योजना के अलावा आदिवासियों महिलाओं को कुपोषण योजना के तहत मिलने वाली राशि तक नहीं मिलती.


सरकारी ऑफिसों के चक्कर लगाते-लगाते थक जाने के बाद अब आदिवासियों ने आदिम जाति कल्याण विभाग सहित कलेक्टर से मदद की गुहार लगाई है. उन्हें एक बार फिर आश्वसान देकर वापस लौटा तो दिया गया है. अब देखना होगा कि शासन प्रशासन का कोई नुमाइंदा आदिवासियों के पास पहुंचकर उका दुख दर्द खत्म करता है या फिर आश्वासन एक बार फिर झुनझुना साबित होगा.

मुरैना। चुनाव के दौरान विपक्ष को मात देने और आदिवासी वोटर्स को साधने के लिए नेता एक से बढ़कर लुभावने वादे करते हैं, लेकिन चुनाव गुजरते ही वो उन्हें दूध से मक्खी की तरह निकालकर दूर कर देते हैं. जब-जब चुनाव हुये हैं खुद को आदिवासियों का हमदर्द बताने इन नेताओं ने एक से बढ़कर एक चुनावी घोषणाएं की. लेकिन चुनाव जीतते ही खुद सत्ता सुख में लग गए और आदिवासिों को हाशिये पर डाल दिया. मुरैना में आज भी आदिवासी मूलभूत सुविधाओं के लिए तरस रहे हैं.

आदिवासियों को नहीं मिल रहा सरकारी योजनाओं का लाभ

सरकारी योजनाएं की किरण अभी तक उन तक नहीं पहुंची है. मुरैना के आदिवासी बाहुल्य पहाड़गढ़ में हालात बेहद बुरे हैं. रोजगार नहीं होने के चलते लोग दूसरे शहरों की ओर पलायन कर रहे हैं. लिहाजा दर्जनों गांव सूने पड़े हैं. भले ही प्रदेश को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए सरकार योजनाओं का ढिंढोरा पीट रही हो. लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है. प्रधानमंत्री आवास योजना के अलावा आदिवासियों महिलाओं को कुपोषण योजना के तहत मिलने वाली राशि तक नहीं मिलती.


सरकारी ऑफिसों के चक्कर लगाते-लगाते थक जाने के बाद अब आदिवासियों ने आदिम जाति कल्याण विभाग सहित कलेक्टर से मदद की गुहार लगाई है. उन्हें एक बार फिर आश्वसान देकर वापस लौटा तो दिया गया है. अब देखना होगा कि शासन प्रशासन का कोई नुमाइंदा आदिवासियों के पास पहुंचकर उका दुख दर्द खत्म करता है या फिर आश्वासन एक बार फिर झुनझुना साबित होगा.

Intro:सरकार की ज्यादातर योजनाएं गांव , गरीब के विकास को ध्यान मे रख कर बनाई जाती है , लेकिन उनका लाभ गांव और गरीब को कितना मिलता है , ये किसी से छिपा नही है । जिला के आदिबासी बाहुल्य जनपद पहाड़गढ़ में सरकार की योजनाओं का कितना भी प्रशासन ने खर्च किया हो लेकिन आदिवासी आज भी अपनी मूलभूत जरूरतों के लिए किसी न किसी पर निर्भर है या फिर पलायन करने को मजबूर है ।


Body:आदिबासी बाहुल्य जनपद पहाड़गढ़ के एक दर्जन गांव ऐसे है जहाँ लोगो को न पीने के पानी की पर्याप्त व्यवस्था है , न रोजी रोटी कमाने के लिये दो हाथ के लिए काम , औऱ तो और सरकार की योजनाओं तक का लाभ निशक्त, बिधवा, निराश्रित और फिर गरीब तक को नही मिल रहा । जिसकी शिकायत लेकर कलेक्टर कार्यालय आये आधा दर्जन गांव के दो दर्जन लोगों को अधिकारियों ने सिर्फ अस्वाशन देकर लोटा दिया ।


Conclusion:आदिबासी बाहुल्य गांव मरा, बहराइ , निचली बहराइ सहित आस पास के गांव में पीने के पानी के हेंडपंम तो है , लेकिन खराब है।लोग अन्य ग्रामीणों से खरीद कर पानी लेते है । इन गांव में रहने वाले लोगो को मनरेगा से कम भी नही मिलता , जबकि मनरेगा के काम मशीनों के कराए जा रहे है । गांव के लोग दूसरे शहरों में जाकर मजदूरी कर रहे है ।और अधिकारी तथा जनप्रतिनिधि इन समस्याओं को अनदेखा कर भ्र्ष्टाचार को आश्रय दे रहे है । जिसकी शिकायत कलेक्टर कार्यालय आये एक दर्जन लोगों ने आदिम जाति कल्याण विभाग सहित कलेक्टर से की है । कहने को इन्हें आश्वस्त किया गया है कि जल्द से जल आपकी समस्याओं का निराकरण किया जाएगा ।
बाईट -1 शांति बाई - ग्राम मरा , पहाड़गढ़ मुरैना
बाईट- 2 शिब्बू - ग्राम बहराइ
बाईट - 3 कमल बाई आदिवासी
बाईट - 4 सुरेश सुमेर सिंह - सामाजिक कार्यकर्ता , एकता परिषद
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