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मुरैना का पॉलिटिकल ट्रायंगल, क्या उपचुनाव में कांग्रेस-बीजेपी-बसपा के बीच होगा 'दंगल' ? - MP by election 2020

मध्यप्रदेश की मुरैना विधानसभा सीट पर जब भी चुनाव होते हैं, तो ये सुर्खियों में आ जाती है. क्योंकि यहां मुकाबला महज बीजेपी-कांग्रेस के बीच न होकर त्रिकोणीय होता है.

Political Triangle of Morena
मुरैना का पॉलिटिकल ट्रायंगल
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Published : Oct 15, 2020, 7:30 PM IST

मुरैना। उपचुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद से ही प्रदेश में सियासी बिगुल बज चुका है. सत्ता के रण में तमाम राजनीतिक दलों के उम्मीदवार उतर चुके हैं. 28 विधानसभा सीटों में मुरैना सीट भी शामिल हैं, जहां उपचुनाव होना है. इस सीट से बीजेपी ने रघुराज कंषाना को प्रत्याशी बनाया है. जबकि कांग्रेस ने राकेश मावई पर दांव लगाया है. इसके अलावा बीएसपी ने रामप्रकाश राजौरिया को मैदान में उतारा है. मुरैना विधानसभा में कहने को तो बीजेपी का दबदबा रहा है, लेकिन कांग्रेस भी पीछे नहीं है, और बीएसपी ने चुनौती पेश की है. आइए जानते हैं इस विधानसभा क्षेत्र का सियासी इतिहास...

मुरैना का पॉलिटिकल ट्रायंगल

बीजेपी का दबदबा

मुरैना विधानसभा में 1962 से अभी तक 13 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. इनमें सात बार भाजपा और उसकी विचारधारा वाली पार्टी चुनाव जीती है, वहीं कांग्रेस का चार,बीएसपी और प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी का एक-एक बार इस सीट पर कब्जा रहा है.

सनपार्टीजीतने वाले प्रत्याशी
1962 प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी जबर सिंह
1967 भारतीय जनसंघ जबर सिंह
1972कांग्रेस हरीराम सर्राफ
1977 जनता पार्टीजबर सिंह
1980कांग्रेसमहाराज सिंह मावई
1985बीजेपीजाहर सिंह
1990बीजेपीसेवाराम गुप्ता
1993कांग्रेससोवरन सिंह मावई
1998 बीजेपीसेवाराम गुप्ता
2003बीजेपीरुस्तम सिंह
2008बीएसपीपरसुराम मुदगल
2013बीजेपीरुस्तम सिंह
2018कांग्रेसरघुराज कंषाना

किस जाति का कितना है वोट प्रतिशत ?

विधानसभा क्रमांक 05 मुरैना में 2 लाख 54 हजार 671 मतदाता हैं. जिसमें सबसे ज्यादा वोट गुर्जर समाज के हैं, गुर्जर समाज के 55 हजार वोट, दलित 45 हजार, वैश्य वर्ग 35 हजार, ब्राह्मण 25 हजार, राजपूत 10 हजार , कुशवाह 12 हजार , मुस्लिम 12 हजार, राठौर 15 हजार, बाकि दूसरे जातियों के मतदाता हैं.

कास्ट फैक्टर अहम

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुरैना विधानसभा सीट पर कास्ट फैक्टर सबसे अहम होता है. यही वजह ही राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों के चयन में इस बात खास ख्याल रखा है. बीजेपी ने रघुराज सिंह कंषाना को उम्मीदरवार घोषित किया है, वहीं कांग्रेस ने राकेश मावई पर दांव लगाया है. वहीं बीएसपी ने ब्राह्मण नेता माने जाने वाले राम प्रकाश राजौरिया को मैदान में उतारा है.

बीजेपी-कांग्रेस के लिए बीएसपी 'खतरा'

बसपा प्रत्याशी रामप्रकाश राजौरिया 2013 के विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे थे और बीजेपी प्रत्याशी रुस्तम सिंह से सिर्फ 1,700 मतों से हारे थे. ये मुरैना विधानसभा सीट का इतिहास रहा है, कि बसपा भाजपा और कांग्रेस दोनों का गणित बिगड़ती आ रही है. चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से टक्कर बहुजन समाज पार्टी के साथ ही होती है, चाहे कांग्रेस से हो या बीजेपी से.

बीजेपी प्रत्याशी की राह आसान नहीं

कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले मुरैना के पूर्व विधायक रघुराज कंषाना की राह आसान नहीं है. क्योंकि मुरैना विधानसभा सीट पर 1967 के बाद से अभी तक कोई भी विधायक लगातार नहीं चुना गया. इसके अलावा कांग्रेस लगातार सिंधिया खेमे के उम्मीदवारों पर मेंडेड बेचने का आरोप लगा रही है. इसके अलावा रघुराज सिंह कंषाना और कांग्रेस प्रत्याशी राकेश मावई गुर्जर समाज के बड़े नेता हैं. ऐसे में मत विभाजन की स्थिति बन सकती है. जिसका फायदा बीएसपी को मिल सकता है.

बीजेपी इन मुद्दों पर उठा रही सवाल

बीजेपी चुनाव में कमलनाथ सरकार की वादा खिलाफी को मुद्दा बना रही है. चाहे वो किसानों की कर्ज माफी हो या फिर रोजगार का मुद्दा. इसके अलावा चंबल अंचल के मुख्यालय मुरैना के बानमौर औद्योगिक क्षेत्र और सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र में कोई भी नई फक्ट्री न लगना. इसके अलावा बीजेपी मुरैना में किए गए विकास कार्यों को जनता के बीच पहुंचाने का काम कर रही है. जिनमें 12 सौ करोड़ से बनने वाले सीवर प्रोजेक्ट, 125 करोड़ से बनने वाले प्रधानमंत्री आवास कॉलोनी, मुरैना शहर के लिए चंबल नदी से पीने के लिए पानी लाने की 358 करोड़ की लागत वाली जल आवर्धन योजना और 8 हजार करोड़ की लागत से बनने वाली चंबल एक्सप्रेस वे शामिल है.

कांग्रेस ने बीजेपी को घेरा

अंचल में सिंधिया के प्रभाव को रोकने के लिए कांग्रेस, सिंधिया राजवंश के इतिहास को दोहराने वाली करतूत जनता तक पहुंचाने का काम कर रही है. साथ ही सिंधिया पर भूमाफिया होने का आरोप लगा रही है. इसके अलावा 35 करोड़ रुपये लेकर जनता द्वारा दिये दिए गए जनादेश को बेचने का आरोप लगा रही है.

बसपा का 'सोशल इंजीनियरिंग कार्ड'

राजनीतिक दलों में विकास की राजनीति से कहीं ज्यादा मायने रखते हैं चुनाव के ठीक पहले बनने वाले जाति समीकरण. यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को इस्तेमाल कर दलित और सवर्ण वोट को एकजुट कर चुनाव में कड़ी टक्कर देती आई है.

इस वजह से बसपा की खिसकी जमीन

प्रमोशन में आरक्षण और नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे पर दलित संगठनों द्वारा के आंदोलनों के बाद बसपा का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला उतना सफल होता दिखाई नहीं देता. क्योंकि दलित वोट बैंक बसपा के खाते से खिसक कर कांग्रेस के पाले में पहुंच गया है.

'तितरफा' मुकाबला

मौजूदा समीकरणों को देखकर मुरैना विधानसभा में रोचक स्थिति बन गई है. मुकाबला एक तरफा न होकर तीन तरफा है. तीनों ही दलों के प्रत्याशी के बीच कड़ी टक्कर के आसार हैं. अब 10 नवंबर को ही पता चलेगा की इस ट्रायंगल पॉलिटिक्स का विनर कौन होता है.

मुरैना। उपचुनाव की तारीखों के ऐलान के बाद से ही प्रदेश में सियासी बिगुल बज चुका है. सत्ता के रण में तमाम राजनीतिक दलों के उम्मीदवार उतर चुके हैं. 28 विधानसभा सीटों में मुरैना सीट भी शामिल हैं, जहां उपचुनाव होना है. इस सीट से बीजेपी ने रघुराज कंषाना को प्रत्याशी बनाया है. जबकि कांग्रेस ने राकेश मावई पर दांव लगाया है. इसके अलावा बीएसपी ने रामप्रकाश राजौरिया को मैदान में उतारा है. मुरैना विधानसभा में कहने को तो बीजेपी का दबदबा रहा है, लेकिन कांग्रेस भी पीछे नहीं है, और बीएसपी ने चुनौती पेश की है. आइए जानते हैं इस विधानसभा क्षेत्र का सियासी इतिहास...

मुरैना का पॉलिटिकल ट्रायंगल

बीजेपी का दबदबा

मुरैना विधानसभा में 1962 से अभी तक 13 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं. इनमें सात बार भाजपा और उसकी विचारधारा वाली पार्टी चुनाव जीती है, वहीं कांग्रेस का चार,बीएसपी और प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी का एक-एक बार इस सीट पर कब्जा रहा है.

सनपार्टीजीतने वाले प्रत्याशी
1962 प्रजातांत्रिक सोशलिस्ट पार्टी जबर सिंह
1967 भारतीय जनसंघ जबर सिंह
1972कांग्रेस हरीराम सर्राफ
1977 जनता पार्टीजबर सिंह
1980कांग्रेसमहाराज सिंह मावई
1985बीजेपीजाहर सिंह
1990बीजेपीसेवाराम गुप्ता
1993कांग्रेससोवरन सिंह मावई
1998 बीजेपीसेवाराम गुप्ता
2003बीजेपीरुस्तम सिंह
2008बीएसपीपरसुराम मुदगल
2013बीजेपीरुस्तम सिंह
2018कांग्रेसरघुराज कंषाना

किस जाति का कितना है वोट प्रतिशत ?

विधानसभा क्रमांक 05 मुरैना में 2 लाख 54 हजार 671 मतदाता हैं. जिसमें सबसे ज्यादा वोट गुर्जर समाज के हैं, गुर्जर समाज के 55 हजार वोट, दलित 45 हजार, वैश्य वर्ग 35 हजार, ब्राह्मण 25 हजार, राजपूत 10 हजार , कुशवाह 12 हजार , मुस्लिम 12 हजार, राठौर 15 हजार, बाकि दूसरे जातियों के मतदाता हैं.

कास्ट फैक्टर अहम

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मुरैना विधानसभा सीट पर कास्ट फैक्टर सबसे अहम होता है. यही वजह ही राजनीतिक दलों ने प्रत्याशियों के चयन में इस बात खास ख्याल रखा है. बीजेपी ने रघुराज सिंह कंषाना को उम्मीदरवार घोषित किया है, वहीं कांग्रेस ने राकेश मावई पर दांव लगाया है. वहीं बीएसपी ने ब्राह्मण नेता माने जाने वाले राम प्रकाश राजौरिया को मैदान में उतारा है.

बीजेपी-कांग्रेस के लिए बीएसपी 'खतरा'

बसपा प्रत्याशी रामप्रकाश राजौरिया 2013 के विधानसभा चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे थे और बीजेपी प्रत्याशी रुस्तम सिंह से सिर्फ 1,700 मतों से हारे थे. ये मुरैना विधानसभा सीट का इतिहास रहा है, कि बसपा भाजपा और कांग्रेस दोनों का गणित बिगड़ती आ रही है. चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से टक्कर बहुजन समाज पार्टी के साथ ही होती है, चाहे कांग्रेस से हो या बीजेपी से.

बीजेपी प्रत्याशी की राह आसान नहीं

कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थामने वाले मुरैना के पूर्व विधायक रघुराज कंषाना की राह आसान नहीं है. क्योंकि मुरैना विधानसभा सीट पर 1967 के बाद से अभी तक कोई भी विधायक लगातार नहीं चुना गया. इसके अलावा कांग्रेस लगातार सिंधिया खेमे के उम्मीदवारों पर मेंडेड बेचने का आरोप लगा रही है. इसके अलावा रघुराज सिंह कंषाना और कांग्रेस प्रत्याशी राकेश मावई गुर्जर समाज के बड़े नेता हैं. ऐसे में मत विभाजन की स्थिति बन सकती है. जिसका फायदा बीएसपी को मिल सकता है.

बीजेपी इन मुद्दों पर उठा रही सवाल

बीजेपी चुनाव में कमलनाथ सरकार की वादा खिलाफी को मुद्दा बना रही है. चाहे वो किसानों की कर्ज माफी हो या फिर रोजगार का मुद्दा. इसके अलावा चंबल अंचल के मुख्यालय मुरैना के बानमौर औद्योगिक क्षेत्र और सीतापुर औद्योगिक क्षेत्र में कोई भी नई फक्ट्री न लगना. इसके अलावा बीजेपी मुरैना में किए गए विकास कार्यों को जनता के बीच पहुंचाने का काम कर रही है. जिनमें 12 सौ करोड़ से बनने वाले सीवर प्रोजेक्ट, 125 करोड़ से बनने वाले प्रधानमंत्री आवास कॉलोनी, मुरैना शहर के लिए चंबल नदी से पीने के लिए पानी लाने की 358 करोड़ की लागत वाली जल आवर्धन योजना और 8 हजार करोड़ की लागत से बनने वाली चंबल एक्सप्रेस वे शामिल है.

कांग्रेस ने बीजेपी को घेरा

अंचल में सिंधिया के प्रभाव को रोकने के लिए कांग्रेस, सिंधिया राजवंश के इतिहास को दोहराने वाली करतूत जनता तक पहुंचाने का काम कर रही है. साथ ही सिंधिया पर भूमाफिया होने का आरोप लगा रही है. इसके अलावा 35 करोड़ रुपये लेकर जनता द्वारा दिये दिए गए जनादेश को बेचने का आरोप लगा रही है.

बसपा का 'सोशल इंजीनियरिंग कार्ड'

राजनीतिक दलों में विकास की राजनीति से कहीं ज्यादा मायने रखते हैं चुनाव के ठीक पहले बनने वाले जाति समीकरण. यही वजह है कि बहुजन समाज पार्टी सोशल इंजीनियरिंग के फार्मूले को इस्तेमाल कर दलित और सवर्ण वोट को एकजुट कर चुनाव में कड़ी टक्कर देती आई है.

इस वजह से बसपा की खिसकी जमीन

प्रमोशन में आरक्षण और नौकरियों में आर्थिक आधार पर आरक्षण के मुद्दे पर दलित संगठनों द्वारा के आंदोलनों के बाद बसपा का सोशल इंजीनियरिंग का फार्मूला उतना सफल होता दिखाई नहीं देता. क्योंकि दलित वोट बैंक बसपा के खाते से खिसक कर कांग्रेस के पाले में पहुंच गया है.

'तितरफा' मुकाबला

मौजूदा समीकरणों को देखकर मुरैना विधानसभा में रोचक स्थिति बन गई है. मुकाबला एक तरफा न होकर तीन तरफा है. तीनों ही दलों के प्रत्याशी के बीच कड़ी टक्कर के आसार हैं. अब 10 नवंबर को ही पता चलेगा की इस ट्रायंगल पॉलिटिक्स का विनर कौन होता है.

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