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869 कुपोषित बच्चों में 532 बेटियां, आज भी लैंगिक समानता समाज को स्वीकार नहीं?

मुरैना जिले को कुपोषण मुक्त बनाने के लिए तमाम प्रयास किए जा रहे हैं. इसके बावजदू जिले में इसी साल अप्रैल मई जून में कुपोषित 869 बच्चों में 532 सिर्फ बेटियां हैं.

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Published : Jul 3, 2019, 9:14 PM IST

मुरैना। बेटियों को बचाओ, बेटियों को नहीं सताओ क्योंकि 'बेटी है तो कल है, बेटी नहीं तो कुल नहीं'. सरकार की कोशिश है कि बेटियों को भी बेटों जैसा मान-सम्मान मिले, इसके लिए केंद्र सरकार ने जोर-शोर से 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की थी, जिसके नारे भी नारी का उद्धार करने में नाकाम रहे और आज भी बेटियों की स्थिति वही ढाक के तीन पात जैसी है. मुरैना जिले में इसी साल अप्रैल मई जून में कुपोषित 869 बच्चों में 532 सिर्फ बेटियां हैं. जो बेटियों की स्थिति बताने के लिए काफी हैं.

आज भी लैंगिक समानता समाज को स्वीकार नहीं?


प्रदेश को कुपोषण मुक्त बनाने के लिये प्रदेश सरकार ने दस्तक अभियान की शुरूआत की थी. जिसके तहत चिह्नित बच्चों में बेटों से ज्यादा बेटियों की संख्या है. जिसका खुलासा दस्तक अभियान और एनआरसी में पिछले तीन माह में भर्ती कुपोषित बच्चों की रिपोर्ट करती है. जो आज भी बेटे-बेटियों के बीच भेदभाव की तस्दीक करती है.

कुपोषित बच्चों के आंकड़ों पर नजर डालें तो

  • अप्रैल में NRC में 296 कुपोषित बच्चे भर्ती किए गये, जिनमें 194 लड़कियां थी.
  • मई माह में 331 कुपोषित बच्चे एनआरसी में भर्ती हुए, जिनमें 177 लड़कियां थीं
  • जून माह में 242 कुपोषित बच्चे NRC में भर्ती किए गए, जिनमें 161 बेटियां थीं.

कलेक्टर प्रियंका दास का मानना है कि दस्तक अभियान सफल हो रहा है. पहले महिलाएं बच्चों को एनआरसी में भर्ती नहीं करती थीं, पर अब समय बदला है और बच्चों को कुपोषष से बचाने के लिए मां-बाप जागरूक हुए हैं. प्रदेश को छोड़कर सिर्फ मुरैना जिले की बात करें तो यहां दस्तक अभियान को दस्त शुरू हो चुकी है. यहां 70 हजार बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, अभी एक लाख 30 हजार बच्चों का परीक्षण बाकी है, जबकि कुपोषित बच्चों में बेटों की अपेक्षा बेटियों की इतनी अधिक संख्या इस बात का प्रमाण है कि आज भी समाज बेटियों को उस नजर से नहीं देखता, जिस नजर से बेटों को देखता है. लेकिन समय के साथ इस सोच को बदलना बहुत जरूरी है, नहीं तो एक वक्त ऐसा आयेगा, जब बेटे तो होंगे, पर बहू के लिए तरस जायेंगे.

मुरैना। बेटियों को बचाओ, बेटियों को नहीं सताओ क्योंकि 'बेटी है तो कल है, बेटी नहीं तो कुल नहीं'. सरकार की कोशिश है कि बेटियों को भी बेटों जैसा मान-सम्मान मिले, इसके लिए केंद्र सरकार ने जोर-शोर से 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की थी, जिसके नारे भी नारी का उद्धार करने में नाकाम रहे और आज भी बेटियों की स्थिति वही ढाक के तीन पात जैसी है. मुरैना जिले में इसी साल अप्रैल मई जून में कुपोषित 869 बच्चों में 532 सिर्फ बेटियां हैं. जो बेटियों की स्थिति बताने के लिए काफी हैं.

आज भी लैंगिक समानता समाज को स्वीकार नहीं?


प्रदेश को कुपोषण मुक्त बनाने के लिये प्रदेश सरकार ने दस्तक अभियान की शुरूआत की थी. जिसके तहत चिह्नित बच्चों में बेटों से ज्यादा बेटियों की संख्या है. जिसका खुलासा दस्तक अभियान और एनआरसी में पिछले तीन माह में भर्ती कुपोषित बच्चों की रिपोर्ट करती है. जो आज भी बेटे-बेटियों के बीच भेदभाव की तस्दीक करती है.

कुपोषित बच्चों के आंकड़ों पर नजर डालें तो

  • अप्रैल में NRC में 296 कुपोषित बच्चे भर्ती किए गये, जिनमें 194 लड़कियां थी.
  • मई माह में 331 कुपोषित बच्चे एनआरसी में भर्ती हुए, जिनमें 177 लड़कियां थीं
  • जून माह में 242 कुपोषित बच्चे NRC में भर्ती किए गए, जिनमें 161 बेटियां थीं.

कलेक्टर प्रियंका दास का मानना है कि दस्तक अभियान सफल हो रहा है. पहले महिलाएं बच्चों को एनआरसी में भर्ती नहीं करती थीं, पर अब समय बदला है और बच्चों को कुपोषष से बचाने के लिए मां-बाप जागरूक हुए हैं. प्रदेश को छोड़कर सिर्फ मुरैना जिले की बात करें तो यहां दस्तक अभियान को दस्त शुरू हो चुकी है. यहां 70 हजार बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, अभी एक लाख 30 हजार बच्चों का परीक्षण बाकी है, जबकि कुपोषित बच्चों में बेटों की अपेक्षा बेटियों की इतनी अधिक संख्या इस बात का प्रमाण है कि आज भी समाज बेटियों को उस नजर से नहीं देखता, जिस नजर से बेटों को देखता है. लेकिन समय के साथ इस सोच को बदलना बहुत जरूरी है, नहीं तो एक वक्त ऐसा आयेगा, जब बेटे तो होंगे, पर बहू के लिए तरस जायेंगे.

Intro:रकार भले ही बेटियो को शिक्षा के क्षेत्र में , रोजगार के क्षेत्र में या फिर राजनीतिक क्षेत्र में समानता की बात करती हो , पर बेटो की तुलना में समाज आज भी बेटियो को भेदभाव पूर्ण मानसिकता से देखता है । दस्तक अभियान के तहत चिन्हित कुपोषित बच्चों की संख्या में बेटो की तुलना में बेटियो की संख्या अधिक है , ये दस्तक अभियान के आंकड़े ही नही बल्कि एन आर सी में पिछले 3 माह में भर्ती बच्चों के आंकड़े बताते है , जो समाज के माथे पर कलंक का टीका लगते है ।






Body:पिछले अप्रेल माह में एन आर सी में भर्ती हुए बच्चों की संख्या पर नजर डाले तो कुल 296 बच्चे कुपोषित होने पर भर्ती कराये गए , जिनमें से 194 बेटियां थी । मई माह में कुपोषण के शिकार कुल 331 बच्चे एन आर सी केंद्रों में भर्ती हुए जिनमे से 177 लडकिया कुपोषण का शिकार थी । जून माह की बात करे तो 242 बच्चे एन आर सी में भर्ती किये गए , जिनमे से 161 बेटियां कुपोषित पाई गई ।





Conclusion:
सरकार द्वारा चलाये जा रहे दस्तक अभियान में 70 हजार बच्चो के स्वास्थ्य परीक्षण में किया गया जिनमे से 210 बच्चे कुपोषित निकले अभी अभियान चल रहा है 1लाख 30 हजार बच्चों के स्वस्थ्य का परीक्षण और होना है , इन 210 बच्चों में 135 बेटियां कुपोषित है । जो कही ना कहीं बेटों की अपेक्षा बेटियो के प्रति भेदभाव का प्रमाण है , ऐसे में कुपोषण के साथ साथ समाज मे व्याप्त भेदभाव पूर्ण कुण्डित मानसिकता को एक और जंग की तरह लड़कर जीतने के लिए समाज और सरकार को एक अभियान चलाना होगा ।
बाईट 1- आशा सिकरवार - सामाजिक कार्यकर्ता
बाईट 2 - श्रीमती प्रियंका दास - कलेक्टर मुरैना
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