मुरैना। बेटियों को बचाओ, बेटियों को नहीं सताओ क्योंकि 'बेटी है तो कल है, बेटी नहीं तो कुल नहीं'. सरकार की कोशिश है कि बेटियों को भी बेटों जैसा मान-सम्मान मिले, इसके लिए केंद्र सरकार ने जोर-शोर से 'बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ' अभियान की शुरुआत की थी, जिसके नारे भी नारी का उद्धार करने में नाकाम रहे और आज भी बेटियों की स्थिति वही ढाक के तीन पात जैसी है. मुरैना जिले में इसी साल अप्रैल मई जून में कुपोषित 869 बच्चों में 532 सिर्फ बेटियां हैं. जो बेटियों की स्थिति बताने के लिए काफी हैं.
प्रदेश को कुपोषण मुक्त बनाने के लिये प्रदेश सरकार ने दस्तक अभियान की शुरूआत की थी. जिसके तहत चिह्नित बच्चों में बेटों से ज्यादा बेटियों की संख्या है. जिसका खुलासा दस्तक अभियान और एनआरसी में पिछले तीन माह में भर्ती कुपोषित बच्चों की रिपोर्ट करती है. जो आज भी बेटे-बेटियों के बीच भेदभाव की तस्दीक करती है.
कुपोषित बच्चों के आंकड़ों पर नजर डालें तो
- अप्रैल में NRC में 296 कुपोषित बच्चे भर्ती किए गये, जिनमें 194 लड़कियां थी.
- मई माह में 331 कुपोषित बच्चे एनआरसी में भर्ती हुए, जिनमें 177 लड़कियां थीं
- जून माह में 242 कुपोषित बच्चे NRC में भर्ती किए गए, जिनमें 161 बेटियां थीं.
कलेक्टर प्रियंका दास का मानना है कि दस्तक अभियान सफल हो रहा है. पहले महिलाएं बच्चों को एनआरसी में भर्ती नहीं करती थीं, पर अब समय बदला है और बच्चों को कुपोषष से बचाने के लिए मां-बाप जागरूक हुए हैं. प्रदेश को छोड़कर सिर्फ मुरैना जिले की बात करें तो यहां दस्तक अभियान को दस्त शुरू हो चुकी है. यहां 70 हजार बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण किया गया था, अभी एक लाख 30 हजार बच्चों का परीक्षण बाकी है, जबकि कुपोषित बच्चों में बेटों की अपेक्षा बेटियों की इतनी अधिक संख्या इस बात का प्रमाण है कि आज भी समाज बेटियों को उस नजर से नहीं देखता, जिस नजर से बेटों को देखता है. लेकिन समय के साथ इस सोच को बदलना बहुत जरूरी है, नहीं तो एक वक्त ऐसा आयेगा, जब बेटे तो होंगे, पर बहू के लिए तरस जायेंगे.