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पहाड़गढ़ के घने जंगल में स्थित गुफा में है ये शिव मंदिर, जानिए क्या है इसकी खासियत

मुरैना जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर पहाड़गढ़ के जंगलों में बरईकोट में प्राचीन महादेव मंदिर है. इस प्रचीन शिवलिंग पर 24 घंटे पानी की अविरल धारा प्रभावित होती है, जिसका आज तक कोई पता नहीं चला है. गुफा में घुटनों तक पानी भरा हमेशा रहता है, जो कि गर्मियों के दिनों में भी बर्फ के तरह ठंडा रहता है.

Shivling in dense forest
घने जंगल में शिवलिंग
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Published : Jul 5, 2020, 6:46 PM IST

Updated : Jul 5, 2020, 9:02 PM IST

मुरैना। यू तो चंबल का इतिहास सदियों पुराना है, महाभारत कालीन और उससे भी पुरानी कई ऐतिहासिक धरोहर और इमारतें हैं. जोकि बिना प्रचार-प्रसार के दुनिया की नजरों में कैद हुई है, ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर है बरई कोट महादेव मंदिर है. मुरैना जिले के पहाड़गढ़ के जंगल में स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कच्चे रास्तों का सहरा लेना पड़ता है. ये मंदिर घने जंगल में होने की वजह से यहां पर केवल दिन में ही लोग जाते हैं, इतिहास की लिखी गई मान्यता की अगर मानें तो इस मंदिर की गुफा में पांडवों ने अज्ञातवास काटा था.

घने जंगल में स्थित शिव मंदिर

दरअसल मुरैना जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर पहाड़गढ़ के जंगलों में बरईकोट में प्राचीन महादेव मंदिर है. इस प्रचीन शिवलिंग पर 24 घंटे पानी की अविरल धारा प्रभावित होती है, जिसका आज तक कोई पता नहीं चला है. गुफा में घुटनों तक पानी भरा हमेशा रहता है,जोकि गर्मियों के दिनों में भी बर्फ के तरह ठंडा रहता है, जिसमें होकर ही भक्तों को शिवलिंग तक पहुंचना होता है.

हालांकि मंदिर घने जंगल में होने और ज्यादा प्रचार प्रसार न होने से यहां तक कम ही लोग पहुंचते हैं.पुरातत्व विभाग अब इस मंदिर को लेकर कई तरह की योजना बना रहा है लाजमी है कि पर्यटन को लेकर मुरैना में बहुत संभावनाएं हैं. बरई कोट महादेव मंदिर के इतिहास के बात करें तो ये सदियों पुराना है. मान्यता के अनुसार इसकी स्थापना राजा विक्रमादित्य ने कराई थी. कुछ लोगों के अनुसार इसे पांडवों ने स्थापित किया था, पर यहां पर कई ऐसे चिन्ह जरूर मौजूद हैं जो महाभारत काल से जोड़कर देखे जा सकते हैं.

वहीं पुरातत्व विभाग भी इन मंदिरों को लेकर योजना बना रहा है. पर्यटन को लेकर मुरैना में बहुत संभावनाएं हैं, लेकिन चंबल के दुष्प्रचार की वजह से ये क्षेत्र अब तक पर्यटन में अधिक नहीं बढ़ पाया है. वहीं पास में ईश्वरामहादेव मंदिर समेत कई पुरातत्व धरोहर उस क्षेत्र में है. पुरातत्व अधिकारियों की मानें तो उन्होंने वहां के लिए प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा है, जिस पर जल्द ही कोई फैसला लिए जाने की संभावना है.

मुरैना। यू तो चंबल का इतिहास सदियों पुराना है, महाभारत कालीन और उससे भी पुरानी कई ऐतिहासिक धरोहर और इमारतें हैं. जोकि बिना प्रचार-प्रसार के दुनिया की नजरों में कैद हुई है, ऐसा ही एक प्राचीन मंदिर है बरई कोट महादेव मंदिर है. मुरैना जिले के पहाड़गढ़ के जंगल में स्थित इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कच्चे रास्तों का सहरा लेना पड़ता है. ये मंदिर घने जंगल में होने की वजह से यहां पर केवल दिन में ही लोग जाते हैं, इतिहास की लिखी गई मान्यता की अगर मानें तो इस मंदिर की गुफा में पांडवों ने अज्ञातवास काटा था.

घने जंगल में स्थित शिव मंदिर

दरअसल मुरैना जिला मुख्यालय से लगभग 60 किलोमीटर दूर पहाड़गढ़ के जंगलों में बरईकोट में प्राचीन महादेव मंदिर है. इस प्रचीन शिवलिंग पर 24 घंटे पानी की अविरल धारा प्रभावित होती है, जिसका आज तक कोई पता नहीं चला है. गुफा में घुटनों तक पानी भरा हमेशा रहता है,जोकि गर्मियों के दिनों में भी बर्फ के तरह ठंडा रहता है, जिसमें होकर ही भक्तों को शिवलिंग तक पहुंचना होता है.

हालांकि मंदिर घने जंगल में होने और ज्यादा प्रचार प्रसार न होने से यहां तक कम ही लोग पहुंचते हैं.पुरातत्व विभाग अब इस मंदिर को लेकर कई तरह की योजना बना रहा है लाजमी है कि पर्यटन को लेकर मुरैना में बहुत संभावनाएं हैं. बरई कोट महादेव मंदिर के इतिहास के बात करें तो ये सदियों पुराना है. मान्यता के अनुसार इसकी स्थापना राजा विक्रमादित्य ने कराई थी. कुछ लोगों के अनुसार इसे पांडवों ने स्थापित किया था, पर यहां पर कई ऐसे चिन्ह जरूर मौजूद हैं जो महाभारत काल से जोड़कर देखे जा सकते हैं.

वहीं पुरातत्व विभाग भी इन मंदिरों को लेकर योजना बना रहा है. पर्यटन को लेकर मुरैना में बहुत संभावनाएं हैं, लेकिन चंबल के दुष्प्रचार की वजह से ये क्षेत्र अब तक पर्यटन में अधिक नहीं बढ़ पाया है. वहीं पास में ईश्वरामहादेव मंदिर समेत कई पुरातत्व धरोहर उस क्षेत्र में है. पुरातत्व अधिकारियों की मानें तो उन्होंने वहां के लिए प्रस्ताव बनाकर शासन को भेजा है, जिस पर जल्द ही कोई फैसला लिए जाने की संभावना है.

Last Updated : Jul 5, 2020, 9:02 PM IST
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