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बच्ची के जन्म के बाद मां ने तोड़ा दम, नर्सों ने दिया 'बिटिया' को नया जीवन

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Published : May 17, 2021, 10:31 AM IST

जौरा अस्पताल में एक माह पहले बच्ची को जन्म देने के बाद इन्फेक्शन से मां की मौत हो गई. जिसके बादडॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ ने उसकी गंभीरता से देखभाल की. नर्सिंग स्टाफ ने एक महीने तक मशीन में रखकर ऑक्सीजन दी. बच्ची के स्वस्थ होने पर उसके पिता को सुपुर्द कर दिया. पिता भी बच्ची को पाकर बेहद खुश हुआ.

नर्सों ने दिया बच्ची को नया जीवन
नर्सों ने दिया बच्ची को नया जीवन

मुरैना। जौरा अस्पताल में एक माह पहले बच्ची को जन्म देने के बाद इन्फेक्शन से मां की मौत हो गई. उस समय नवजात बच्ची को क्रिटिकल कंडीशन में जिला अस्पताल के एसएनसीयू (सिक न्यू वार्न केयर यूनिट) में रखा गया. जहां डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ ने उसकी गंभीरता से देखभाल की. नर्सिंग स्टाफ ने एक महीने तक मशीन में रखकर ऑक्सीजन दी. उसके बाद स्टाफ ने बच्ची को हाथों में खूब खिलाया, दुलारा और मां का भरपूर प्यार दिया. स्वस्थ्य होने पर उसके पिता को सुपुर्द कर दिया. पिता भी बच्ची को पाकर बेहद खुश हुआ.

इन्फेक्शन से हुई थी तबीयत खराब
दरअसल, जौरा तहसील के गुर्जा गांव निवासी राजकुमारी ने 14 मार्च की सुबह अस्पताल में नवजात बच्ची को जन्म दिया. इन्फेक्शन के चलते महिला की तबीयत खराब होने पर उसे जिला अस्पताल रेफर किया गया था. गंभीर हालात होने पर डॉक्टरों ने उसको ग्वालियर रेफर कर दिया. बच्ची का वजन भी एक किलो था, जबकि जन्म के समय नवजात बच्चे का वजन ढाई किलो से ऊपर होना चाहिए. बच्ची की गंभीर हालात को देखते हुए उसे जिला अस्पताल की एसएनसीयू यूनिट में भर्ती कराया गया.

15 दिन बाद बच्ची की मां की मौत
उधर, 15 दिन बाद मासूम बच्ची की मां की ग्वालियर अस्प्ताल में इलाज के दौरान मौत हो गई. इसके बाद पिता एसएनसीयू पहुंचा लेकिन वहां डॉक्टरों ने बच्ची की गंभीर हालत होने की वजह से देने से मना कर दिया और कहा कि तुम्हे परेशान होने की जरूरत नहीं हैं. बच्ची की अब हमारी जिम्मेदारी है. उसके बाद पिता गांव चला गया. एसएनसीयू वार्ड में पदस्थ डॉ. राकेश शर्मा, विकाश शर्मा, बनवारी गोयल, अंशुल तोमर सहित नर्सिंग स्टाफ ने बच्ची का इलाज किया और बच्ची का नाम लाडो भी रख दिया.।

बच्ची का रखा गया पूरा ध्यान
डॉ. राकेश शर्मा ने बताया कि भर्ती के समय नवजात बच्ची का वजन एक किलो था, ऐसी स्थिति में बच्चे के फेंफड़े, हर्ट सहित अन्य आंतरिंग अंग पूरी तरह विकसित नहीं होते हैं. इसलिए उसको एक महीने तक मशीन में रखकर ऑक्सीजन और दवा दी गई. एक महीने बाद बच्ची मशीन से बाहर आ गई है. डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के हाथों में रहकर उसको दवा के साथ डिब्बे के पावडर का दूध भी दिया गया. अब मासूम बच्ची पूरी तरह स्वस्थ्य से और उसका वजन भी डेढ़ किलो हो गया है, जिसके बाद बच्ची को 10 मई को उसके पिता रामवीर जाटव को सौंप दिया.

बच्ची को नहीं होने दी मां की कमी
डॉ.राकेश शर्मा ने बताया कि बच्ची की मां भले ही इस दुनियां में नहीं रही, लेकिन एसएनसीयू में बच्ची को मां की कमी नहीं होने दी. उसका ठीक उसी तरह ध्यान रखा गया जिस तरह एक नवजात बच्चे की उसकी मां ख्याल रखती है. लाडो की देखभाल के लिए अलग से स्टाफ की ड्यूटी लगा दी गई थी. कोई नहलाता, कोई दवा देता तो कोई दूध पिलाता था. जब भी कोई स्टाफ फ्री होता तो बच्ची को जरूर गोद में लेकर खिलाता था. बच्ची को पाने के बाद पिता रामवीर जाटव ने दोनों हाथ जोडकर डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ का धन्यवाद दिया.

मुरैना। जौरा अस्पताल में एक माह पहले बच्ची को जन्म देने के बाद इन्फेक्शन से मां की मौत हो गई. उस समय नवजात बच्ची को क्रिटिकल कंडीशन में जिला अस्पताल के एसएनसीयू (सिक न्यू वार्न केयर यूनिट) में रखा गया. जहां डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ ने उसकी गंभीरता से देखभाल की. नर्सिंग स्टाफ ने एक महीने तक मशीन में रखकर ऑक्सीजन दी. उसके बाद स्टाफ ने बच्ची को हाथों में खूब खिलाया, दुलारा और मां का भरपूर प्यार दिया. स्वस्थ्य होने पर उसके पिता को सुपुर्द कर दिया. पिता भी बच्ची को पाकर बेहद खुश हुआ.

इन्फेक्शन से हुई थी तबीयत खराब
दरअसल, जौरा तहसील के गुर्जा गांव निवासी राजकुमारी ने 14 मार्च की सुबह अस्पताल में नवजात बच्ची को जन्म दिया. इन्फेक्शन के चलते महिला की तबीयत खराब होने पर उसे जिला अस्पताल रेफर किया गया था. गंभीर हालात होने पर डॉक्टरों ने उसको ग्वालियर रेफर कर दिया. बच्ची का वजन भी एक किलो था, जबकि जन्म के समय नवजात बच्चे का वजन ढाई किलो से ऊपर होना चाहिए. बच्ची की गंभीर हालात को देखते हुए उसे जिला अस्पताल की एसएनसीयू यूनिट में भर्ती कराया गया.

15 दिन बाद बच्ची की मां की मौत
उधर, 15 दिन बाद मासूम बच्ची की मां की ग्वालियर अस्प्ताल में इलाज के दौरान मौत हो गई. इसके बाद पिता एसएनसीयू पहुंचा लेकिन वहां डॉक्टरों ने बच्ची की गंभीर हालत होने की वजह से देने से मना कर दिया और कहा कि तुम्हे परेशान होने की जरूरत नहीं हैं. बच्ची की अब हमारी जिम्मेदारी है. उसके बाद पिता गांव चला गया. एसएनसीयू वार्ड में पदस्थ डॉ. राकेश शर्मा, विकाश शर्मा, बनवारी गोयल, अंशुल तोमर सहित नर्सिंग स्टाफ ने बच्ची का इलाज किया और बच्ची का नाम लाडो भी रख दिया.।

बच्ची का रखा गया पूरा ध्यान
डॉ. राकेश शर्मा ने बताया कि भर्ती के समय नवजात बच्ची का वजन एक किलो था, ऐसी स्थिति में बच्चे के फेंफड़े, हर्ट सहित अन्य आंतरिंग अंग पूरी तरह विकसित नहीं होते हैं. इसलिए उसको एक महीने तक मशीन में रखकर ऑक्सीजन और दवा दी गई. एक महीने बाद बच्ची मशीन से बाहर आ गई है. डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ के हाथों में रहकर उसको दवा के साथ डिब्बे के पावडर का दूध भी दिया गया. अब मासूम बच्ची पूरी तरह स्वस्थ्य से और उसका वजन भी डेढ़ किलो हो गया है, जिसके बाद बच्ची को 10 मई को उसके पिता रामवीर जाटव को सौंप दिया.

बच्ची को नहीं होने दी मां की कमी
डॉ.राकेश शर्मा ने बताया कि बच्ची की मां भले ही इस दुनियां में नहीं रही, लेकिन एसएनसीयू में बच्ची को मां की कमी नहीं होने दी. उसका ठीक उसी तरह ध्यान रखा गया जिस तरह एक नवजात बच्चे की उसकी मां ख्याल रखती है. लाडो की देखभाल के लिए अलग से स्टाफ की ड्यूटी लगा दी गई थी. कोई नहलाता, कोई दवा देता तो कोई दूध पिलाता था. जब भी कोई स्टाफ फ्री होता तो बच्ची को जरूर गोद में लेकर खिलाता था. बच्ची को पाने के बाद पिता रामवीर जाटव ने दोनों हाथ जोडकर डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ का धन्यवाद दिया.

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