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कोरोना काल में मजदूरों से किए वादे भूली सरकार, न पंजीयन हुए और न मिला रोजगार - मजदूरों का पंजीयन

सरकार भले ही प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तर पर रोजगार देने के दावे कर रही है, लेकिन हकीकत ये है कि स्थानीय स्तर पर उदासीनता और लापरवाही के चलते मजदूरों का न तो पंजीयन हो पाया और न ही रोजगार मिल पाया है.

Migrant laborers wandering rate for employment
रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे प्रवासी मजदूर
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Published : Aug 2, 2020, 1:16 AM IST

मुरैना। कोरोना संक्रमण के चलते किए गए लॉकडाउन ने करोड़ों लोगो को बेरोजगार कर दिया. उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया और उन्हें मजबूरन लौटकर अपने घर और गांव आना पड़ा. ऐसे में सरकार ने इन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार देने का वादा किया. लेकिन स्थानीय स्तर पर प्रशासन की लापरवाही और उदासीनता के चलते न तो मजदूरों के पंजीयन हो सके और न ही उन्हें रोजगार ही उपलब्ध कराया गया. ऐसे में मजदूर दोबारा शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर हैं.

Migrant laborers wandering rate for employment
रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे प्रवासी मजदूर
जिला पंचायत के CEO डॉ तरुण भटनागर की मानें तो कोरोना संक्रमण काल के दौरान जिले में 70 हजार से अधिक प्रवासी मजदूर लौटकर आए थे. जिनमें अधिकतर के पास जॉब कार्ड भी नहीं थे. ऐसे मजदूरों के न केवल पंजीयन कराए गए बल्कि उन्हें जॉब कार्ड भी उपलब्ध कराए गए. साथ ही मनरेगा के तहत नियमित रोजगार भी उपलब्ध कराया गया. सीईओ के अनुसार वर्तमान में लगभग 54 हजार मजदूर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं. वहीं 17 हजार से अधिक कुशल मजदूरों के पंजीयन कराए गए हैं. जिसके तहत वे जिस क्षेत्र में वह काम करते हैं या तकनीकी ज्ञान रखते हैं, उन्हें संबंधित क्षेत्रों में स्थानीय उद्योग इकाइयों के माध्यम से रोजगार देने की व्यवस्था भी की जा रही है. यही नहीं जिला प्रशासन के नेतृत्व में जल्द ही रोजगार मेले का आयोजन भी किया जाएगा ताकि उन्हें संबंधित क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर रोजगार की उपलब्धता हो सके.तमाम सरकारी दावों के बाद भी जमीनी हकीकत कुछ और है. जिले में प्रवासी मजदूरों को कहीं भी रोजगार मिलने की बात तो दूर पंजीयन तक भी ग्राम पंचायतों के माध्यम से नहीं हो सके. करीब 1 सैकड़ा से अधिक ऐसे मजदूर जो विभिन्न राज्यों में काम करते थे, वे कोरोना काल में लौटकर आए लेकिन उन्हें आज तक स्थानीय ग्राम पंचायत के माध्यम से पंजीकृत तक नहीं किया गया. मजदूर लगातार संबंधित क्षेत्र के जनपद सीईओ, एसडीएम से लेकर जिला पंचायत सीईओ , कलेक्टर तक से शिकायत कर रोजगार की मांग कर रहे हैं लेकिन प्रशासन द्वारा उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया है.

मुरैना। कोरोना संक्रमण के चलते किए गए लॉकडाउन ने करोड़ों लोगो को बेरोजगार कर दिया. उनके सामने आर्थिक संकट खड़ा हो गया और उन्हें मजबूरन लौटकर अपने घर और गांव आना पड़ा. ऐसे में सरकार ने इन्हें स्थानीय स्तर पर रोजगार देने का वादा किया. लेकिन स्थानीय स्तर पर प्रशासन की लापरवाही और उदासीनता के चलते न तो मजदूरों के पंजीयन हो सके और न ही उन्हें रोजगार ही उपलब्ध कराया गया. ऐसे में मजदूर दोबारा शहरों की तरफ पलायन करने को मजबूर हैं.

Migrant laborers wandering rate for employment
रोजगार के लिए दर-दर भटक रहे प्रवासी मजदूर
जिला पंचायत के CEO डॉ तरुण भटनागर की मानें तो कोरोना संक्रमण काल के दौरान जिले में 70 हजार से अधिक प्रवासी मजदूर लौटकर आए थे. जिनमें अधिकतर के पास जॉब कार्ड भी नहीं थे. ऐसे मजदूरों के न केवल पंजीयन कराए गए बल्कि उन्हें जॉब कार्ड भी उपलब्ध कराए गए. साथ ही मनरेगा के तहत नियमित रोजगार भी उपलब्ध कराया गया. सीईओ के अनुसार वर्तमान में लगभग 54 हजार मजदूर रोजगार प्राप्त कर रहे हैं. वहीं 17 हजार से अधिक कुशल मजदूरों के पंजीयन कराए गए हैं. जिसके तहत वे जिस क्षेत्र में वह काम करते हैं या तकनीकी ज्ञान रखते हैं, उन्हें संबंधित क्षेत्रों में स्थानीय उद्योग इकाइयों के माध्यम से रोजगार देने की व्यवस्था भी की जा रही है. यही नहीं जिला प्रशासन के नेतृत्व में जल्द ही रोजगार मेले का आयोजन भी किया जाएगा ताकि उन्हें संबंधित क्षेत्रों में स्थानीय स्तर पर रोजगार की उपलब्धता हो सके.तमाम सरकारी दावों के बाद भी जमीनी हकीकत कुछ और है. जिले में प्रवासी मजदूरों को कहीं भी रोजगार मिलने की बात तो दूर पंजीयन तक भी ग्राम पंचायतों के माध्यम से नहीं हो सके. करीब 1 सैकड़ा से अधिक ऐसे मजदूर जो विभिन्न राज्यों में काम करते थे, वे कोरोना काल में लौटकर आए लेकिन उन्हें आज तक स्थानीय ग्राम पंचायत के माध्यम से पंजीकृत तक नहीं किया गया. मजदूर लगातार संबंधित क्षेत्र के जनपद सीईओ, एसडीएम से लेकर जिला पंचायत सीईओ , कलेक्टर तक से शिकायत कर रोजगार की मांग कर रहे हैं लेकिन प्रशासन द्वारा उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया गया है.
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