मुरैना। भारतीय सेना के शौर्य और पराक्रम की गाथाओं के किस्से देश का हर एक नागरिक जानता है और पहचानता है, क्योंकि इन वीर जवानों की बहादुरी के किस्से जन-जन की जुबां पर 21 साल बाद भी ऐसे रखे हैं जैसे 21 दिन पहले की बात हो. भारत ने 26 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में विजय हासिल की थी. कारगिल युद्ध में भारत की जीत के बाद से हर साल 26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस मनाया जाता है. यह दिन कारगिल युद्ध में शहीद हुए जवानों के सम्मान के लिए मनाया जाता है. कारगिल युद्ध जिसे ऑपरेशन विजय के नाम से भी जाना जाता है.
कारगिल योद्धा ओमप्रकाश सिंह
दरअसल अब हम आपको बताने जा रहे हैं, उस वीर के बारे में, जिसने कारगिल की लड़ाई में शामिल होकर वतन के लिए अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इस वीर का नाम है ओमप्रकाश सिंह, मुरैना के चंबल नदी किनारे बसे हरचंदवसई गांव में जन्में ओमप्रकाश सिंह 1979 में भारतीय थल सेना की सेकंड राजपूताना राइफल्स में सैनिक के रूप में नौकरी की शुरुआत की और सन 2000 में वो सेना से रिटायर्ड हुए, इस दौरान उन्होंने भारत-पाक और भारत चीन के बीच होने वाले तीन युद्ध में अपनी अहम भूमिका निभाई है.
16 हजार फीट की ऊंचाई पर पहुंचे थे ओमप्रकाश
12 जून 1999 को राज सेक्टर की तीन पिंपल पोस्ट पर 16 हजार फीट से अधिक ऊंचाई तक दिन-रात चढ़ते हुए रॉकेट लॉन्चर और गोलियों की बौछारों से अपने और अपने साथियों को बचाते हुए पहुंचे और दुश्मन की सेना को परास्त कर अपनी सभी पोस्ट खाली कराते हुए वहां तिरंगा लहराकर विजय की सूचना अपनी सेना के अधिकारियों को दी.
कारगिल युद्ध माना जाता है ऐतिहासिक युद्ध
सन् 1999 में पाकिस्तानी सेना के साथ हुए कारगिल युद्ध भारतीय सेना के लिए इसलिए ऐतिहासिक युद्ध माना जाता है, क्योंकि यहां युद्ध जमीन से जमीन पर नहीं हवा से हवा में नहीं बल्कि जमीन से आसमान पर बैठे दुश्मनों को मारने के लिए लड़ा गया था, भारतीय सेना जमीन पर थी और दुश्मन की सेना जमीन की सतह से 16 हजार फीट से अधिक ऊंचाई पर कारगिल की चोटियों पर बंकरोंमें छुपकर पूरी सुरक्षा के साथ भारतीय सेना पर आक्रमण कर रही थी.
3 दिन और 3 रात में भारत ने लहराया था तिरंगा
कारगिल क्षेत्र की द्रास सेक्टर में राजपूताना राइफल्स की सेकंड रेजीमेंट को तैनात किया गया. यह सेकंड राजपूताना राइफल्स 1 जून को अपने हेड क्वार्टर से रवाना हुई और 10 जून को द्रास सेक्टर पहुंची. जहां दुश्मन की सेना जो 16000 फीट ऊपर तीन पिंपल्स पोस्टों पर मोर्चा लेकर बैठी थी, दुश्मनों पर आक्रमण करना न केवल मुश्किल काम था, बल्कि एक असंभव सी कल्पना थी. क्योंकि इतनी ऊंचाई से अगर कोई पत्थर भी मारे तो नीचे के जवान को यमलोक का रास्ता नजर आ रहा था. बावजूद इसके भारतीय सैनिकों ने अपनी युद्ध कौशल और पराक्रम के साथ-साथ अपनी रणनीति का उपयोग करते हुए दिन-रात इधर-उधर के रास्तों से चलते हुए 3 दिन और 3 रात में फ्री पिंपल्स की पोस्टों पर 16 हजार फीट की ऊंचाई तय करके पाकिस्तानी सेना को परास्त कर तिरंगे का परचम लहराया.
पाकिस्तान के कई सैनिकों को किया था ढेर
ब्रास सेक्टर की तीन पिंपल्स पोस्ट पर विजय हासिल करने में भारतीय सेना के सेकंड राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट के दो ऑफिसर, दो जूनियर ऑफिसर और 8 जवान वीरगति को प्राप्त हो गए, लेकिन साकिन राजपूताना राइफल्स ने पाकिस्तानी सेना के आधा सैकड़ा से अधिक सैनिकों को वहीं ढेर कर दिया, और पाकिस्तानी सेनाओं को तबाह करते हुए उन पर विजय हासिल की.
जरूरत पड़ी आज भी लड़ सकते हैं कारगिल जैसे युद्ध
कारगिल युद्ध के सैनिक ओमप्रकाश सिंह का मानना है कि वे 3 दिन जीवन के ऐसे क्षण थे, जिन्हें कभी नहीं भुलाया जा सकता है. हालांकि सेना में ऐसी विषम परिस्थितियों से लड़ने का और युद्ध कौशल के गुण सिखाए जाते हैं, इसके बावजूद वह परिस्थितियां 21 वर्ष बाद भी जहन में ज्यों की त्यों ताजा रखी है. कागरिल युद्ध के दो दशक बाद भी ओमप्रकाश सिंह कहते हैं कि अगर आज भी सेना को जरूरत होगी, तो उनके अंदर वही जुनून और मातृभूमि के प्रति वही समर्पण और युद्ध करने की वही ललक बनी हुई है. जरूरत पड़ी तो आज भी कारगिल जैसे युद्ध के लिए तैयार हैं.
कारगिल युद्ध एक अघोषित युद्ध था
कारगिल युद्ध भारत और पाकिस्तान की सेना के बीच एक अघोषित युद्ध था. जो 2 माह 3 सप्ताह और 2 दिन चला. यह युद्ध न केवल उन सैनिकों के लिए है जो कारगिल में शहीद हुए, न सिर्फ उनके लिए है जो युद्ध करते हुए हताहत हुए, या विजय प्राप्त कर विजय का जश्न मनाए हैं, ये युद्ध सैनिकों के जहन में आज भी जिंदा है, जो उन्हें मातृभूमि की रक्षा के प्रति समर्पित और निष्ठावान बनाने का संकल्प याद दिलाता है.