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बांधवगढ़ में शुरू हुई गिद्धों की गिनती, कैसे होती है काउंटिंग, मध्य प्रदेश में कितनी प्रजातियां - BANDHAVGARH VULTURES COUNTING

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में सोमवार से गिद्धों की गणना शुरू हो गई है. मध्य प्रदेश में गिद्धों की कई प्रजातियां मिलती है.

BANDHAVGARH VULTURES COUNTING
बांधवगढ़ में शुरू हुई गिद्धों की गिनती (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 17, 2025, 5:39 PM IST

उमरिया (अखिलेश शुक्ला): गिद्ध एक ऐसा पक्षी है, जिसका हमारे धर्म ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है. रामायण में जटायु को कौन नहीं जानता है. हमारे प्रकृति में गिद्ध एक अहम रोल भी निभाते हैं, इन्हें सफाई कर्मी पक्षी के नाम से भी जाना जाता है. भारत देश में ही गिद्धों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, तो वहीं इन प्रजातियों में से अधिकतर प्रजाति मध्य प्रदेश में भी मिलती हैं. उमरिजा जिले के बांधवगढ़ में भी गिद्धों की काफी संख्या है. अब एक बार फिर से गिद्धों की गणना बांधवगढ़ में शुरू हो चुकी है, जहां से फिर से इनकी संख्या बढ़ने का अनुमान है.

बांधवगढ़ में गिद्धों की गणना शुरू

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में गिद्धों की गणना शुरू हो चुकी है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं, "17-18 और 19 फरवरी को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में तीन दिन तक 9 परिक्षेत्र के 139 बीट में गिद्धों की गणना की जाएगी. इसके लिए जितने भी सभी अधिकारी-कर्मचारी हैं. उन्हें गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों की पहचान और गिनती के तरीकों के लिए अलग से ट्रेनिंग भी दी गई है. जितनी भी गणना होगी, उसमें सभी अधिकारी और कर्मचारी अपने-अपने क्षेत्र में मिलने वाले गिद्धों की संख्या उनकी प्रजातियों का पूरा डाटा एक विशेष प्रपत्र में भरेंगे.

Umaria Bandhavgarh Tiger Reserve
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में गिद्धों की गणना (ETV Bharat)

ये जानकारी पहले रेंज कार्यालय को फिर डिवीजन कार्यालय को और अंत में भोपाल स्थित मुख्यालय को भेजी जाएगी. विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके गिद्धों को संरक्षित करने के लिए ये पहल की जा रही है. वन विभाग इनकी गणना का कार्य हर साल करवाता है. 17 फरवरी से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर और बफर रेंज में गणना का कार्य शुरू हो गया है. तीन दिन एक ही समय में सर्वे दल गिद्धों के रहवास क्षेत्र में पहुंचेंगे. गिद्धों की पहचान कर प्रोफार्मा में सारी जानकारी भरेंगे और फिर इसे एक ऐप में भी दर्ज किया जाएगा."

ताला में रहता है गिद्धों का डेरा

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उपसंचालक पीके वर्मा बताते हैं कि "बांधवगढ़ रिजर्व के ताला परिक्षेत्र में गिद्धों का एक बड़ा समूह रहता है. ज्यादातर गिद्ध इस क्षेत्र में देखे जाते हैं. अक्सर पर्यटकों को इसके दीदार बड़ी आसानी से हो जाते हैं. ताला रेंज के बांधवगढ़ किला के पीछे की तरफ काफी गिद्ध अक्सर दिखते हैं. पिछली बार की गणना में भी ताला रेंज में सबसे ज्यादा गिद्ध दर्ज किए गए थे.

7 Species of Vultures in MP
सुबह सुबह धूप सेकने बाहर आते हैं गिद्ध (ETV Bharat)

फील्ड पर कैसे करते हैं गिद्धों की गणना

गिद्धों की गणना करना इतना आसान नहीं है, क्योंकि वो एक उड़ने वाला पक्षी है. ऐसे में सवाल यही उठता है कि गिद्धों की गणना कैसे की जाती है. इसे लेकर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं कि गिद्धों की गणना अक्सर सूर्योदय के समय ही की जाती है. जैसे ही सूर्योदय होता है, हल्की-हल्की धूप निकलती है. तब गिद्ध धूप सेकने के लिए बाहर निकलते हैं, तभी उनकी गणना की जाती है. इसके लिए उन जंगलों में लगातार भ्रमण करने वाले हमारे जो कर्मचारी होते हैं, जो साल के 12 महीने 365 दिन वहां घूमते हैं, उन्हें जानकारी होती है कि किस क्षेत्र में सबसे ज्यादा गिद्ध पाए जाते हैं.

इसके अलावा गिद्ध पहाड़ी क्षेत्र में अक्सर पाए जाते हैं. ऊंचे पहाड़ों वाले इलाके में अपना आवास बनाते हैं, ताकि वह मानव दखल से दूर रहें और पहाड़ों में उनकी बीट से भी पहचान की जाती है कि इस क्षेत्र पर उनके आवास हैं. पहाड़ों में सफेद बीट नजर आती है. उससे जाना जाता है, किस क्षेत्र में गिद्ध रहते हैं. फिर दूरबीन की सहायता से उन क्षेत्रों में गिद्धों को देखा जाता है और तस्वीर निकाली जाती है. फिर उन्हें आईडेंटिफाई कर गणना की जाती है. गिद्ध भोजन की तलाश में बाहर उड़े, उससे पहले ही उनकी गणना करनी पड़ती है.

Bandhavgarh Tiger Reserve Vulture Counting
बांधवगढ़ किला के पीछे की तरफ मिलते हैं गिद्ध (ETV Bharat)

गिद्धों की गणना तीन दिनों तक चलती है. तीनों दिन उसी क्षेत्र में कर्मचारी जाते हैं और इस प्रक्रिया को दोहराते हुए गिद्धों की गणना उसी तरीके से करते हैं. जिस दिन सबसे ज्यादा गिद्ध की संख्या पाई जाती है, वही आंकड़ा सही माना जाता है, कि इतने गिद्ध उस क्षेत्र में पाये जाते हैं.

गिद्धों की कितनी प्रजातियां

गिद्ध विशेषज्ञ और एक रिपोर्ट की मानें तो तो पूरे विश्व में गिद्धों की 23 प्रजातियां पाई जाती हैं. जिसमें अकेले भारत में ही गिद्धों की टोटल 9 प्रजातियां मिलती हैं. इनमें से 7 प्रजातियां मध्य प्रदेश में भी देखी जा सकती हैं, लेकिन यहां की रहवासी प्रजातियां 4 ही हैं. भारत में जो 9 प्रजातियां गिद्धों की मिलती हैं. उसमें लॉग बिल्ड वल्चर जिसे देसी गिद्ध कहा जाता है. इसके बाद व्हाइट बैक्ड/ रम्ड वल्चर को चमर गिद्ध, किंग वल्चर को राज गिद्ध, सिनेरियस गिद्ध को काला गिद्ध के नाम से जानते हैं.

Umaria Bandhavgarh Vulture Counting
कैसे होती है गिद्धों की गणना (ETV Bharat)

वहीं इजिप्शियन वल्चर इसे सफेद गिद्ध, हिमालयन ग्रिफान को हिमालयी गिद्ध, यूरेशियन ग्रिफान को यूरेशियाई गिद्ध, स्लेडर बिल्ड वल्चर को पतली चोंच वाला गिद्ध और लमगयार/ वीर्य डेड वल्चर को जटायु गिद्ध के नाम से भी जाना जाता है. ये तो रहीं भारत में मिलने वाली गिद्धों की 9 प्रजातियां. इसमें स्लेडर बिल्ड वल्चर जिसे पतली चोंच वाला गिद्ध, इसके अलावा लमगयार/ वीर्य डेड वल्चर जटायु गिद्ध के नाम से जानते हैं, इन दो गिद्धों को छोड़कर बाकी सभी 7 प्रजातियां मध्य प्रदेश में पाई जाती हैं.

How vultures counted
ताला परिक्षेत्र में मिलते हैं गिद्ध (ETV Bharat)

गिद्ध क्यों हैं जरूरी ?

गिद्ध हमारे पारिस्थितिक तंत्र में एक बड़े सफाई कर्मी के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ऐसा माना जाता है कि गिद्धों का पाचन तंत्र बहुत मजबूत होता है. जिसके चलते शवों में पलते हुए रोगजनक बैक्टीरिया व फफूंदी को आसानी से पचा लेते हैं. इसके साथ ही ये एंथ्रोक्स, फुट एंड माउथ व रेबीज जैसी महामारियों को पैदा करने वाले कीटाणु को भी खत्म कर देते हैं.

अगर प्रकृति में यह सफाई कर्मी पक्षी ना हो तो पूरे विश्व में हड्डियों के अवशेष, मरे हुए जानवरों का सड़ा बदबू मारता मांस और अन्य कायिक अंगों का अंबार लग जाएगा. वास्तव में देखा जाए तो गिद्ध नेचर के अपशिष्टों को नष्ट करने वाले एक अच्छे सिपाही हैं. ये मानव समुदाय के परम सेवक हैं. साथ ही स्वास्थ्य आर्थिक गतिविधियों और पर्यावरण के पोषक भी हैं.

गिद्ध पर क्यों मंडरा रहा खतरा?

आखिर अचानक से गिद्धों पर खतरा क्यों मंडराने लगा, इसे लेकर गिद्ध विशेषज्ञ बताते हैं की एक समय में भारत में बहुतायत में गिद्ध पाए जाते थे. जो अब विलुप्ति की कगार पर हैं. उसकी सबसे बड़ी वजह

  1. गैर स्टेरॉयड सूजन रोधी डाइक्लोफेनिक दवा जो पशु चिकित्सा में उपयोग के कारण गिद्धों की आबादी में एक बड़ी गिरावट आई है.
  2. इसके अलावा प्राकृतिक रहवासों का ह्रास जिसमें उनके घोसले और होस्टिंग साइड सम्मिलित है.
  3. महानगरों के निर्माण और विस्तार में पेड़ों को काटकर कंक्रीट के जंगलों का विस्तार भी गिद्धों के विलुप्त होने के प्रमुख कारण हैं.
  4. इनके रहने वाले स्थानों पर उच्च तापमान का घटित होना भी उनकी कमी के लिए उत्तरदाई है.
  5. जादू टोने के लिए भी उनके अंगों का उपयोग कुछ जगहों पर किया जाता है.
  6. कुछ विशिष्ट समुदाय साधारण भोजन के रूप में विशेष पर्व आदि अवसरों पर या रोजमर्रा की जिंदगी में उन्हें अपना भोज्य पदार्थ बनाते हैं. यह उनके वयस्क, अंडे और चूजों को भी मारकर खा जाते हैं.
  7. ऊंचे पड़ों की तेजी से कटाई भी बड़ा कारण है, क्योंकि गिद्ध ऊंचाई पर ही अपने रहवास बनाते हैं.

उमरिया (अखिलेश शुक्ला): गिद्ध एक ऐसा पक्षी है, जिसका हमारे धर्म ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है. रामायण में जटायु को कौन नहीं जानता है. हमारे प्रकृति में गिद्ध एक अहम रोल भी निभाते हैं, इन्हें सफाई कर्मी पक्षी के नाम से भी जाना जाता है. भारत देश में ही गिद्धों की कई प्रजातियां पाई जाती हैं, तो वहीं इन प्रजातियों में से अधिकतर प्रजाति मध्य प्रदेश में भी मिलती हैं. उमरिजा जिले के बांधवगढ़ में भी गिद्धों की काफी संख्या है. अब एक बार फिर से गिद्धों की गणना बांधवगढ़ में शुरू हो चुकी है, जहां से फिर से इनकी संख्या बढ़ने का अनुमान है.

बांधवगढ़ में गिद्धों की गणना शुरू

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में गिद्धों की गणना शुरू हो चुकी है. बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं, "17-18 और 19 फरवरी को बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में तीन दिन तक 9 परिक्षेत्र के 139 बीट में गिद्धों की गणना की जाएगी. इसके लिए जितने भी सभी अधिकारी-कर्मचारी हैं. उन्हें गिद्धों की विभिन्न प्रजातियों की पहचान और गिनती के तरीकों के लिए अलग से ट्रेनिंग भी दी गई है. जितनी भी गणना होगी, उसमें सभी अधिकारी और कर्मचारी अपने-अपने क्षेत्र में मिलने वाले गिद्धों की संख्या उनकी प्रजातियों का पूरा डाटा एक विशेष प्रपत्र में भरेंगे.

Umaria Bandhavgarh Tiger Reserve
बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में गिद्धों की गणना (ETV Bharat)

ये जानकारी पहले रेंज कार्यालय को फिर डिवीजन कार्यालय को और अंत में भोपाल स्थित मुख्यालय को भेजी जाएगी. विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुके गिद्धों को संरक्षित करने के लिए ये पहल की जा रही है. वन विभाग इनकी गणना का कार्य हर साल करवाता है. 17 फरवरी से बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के कोर और बफर रेंज में गणना का कार्य शुरू हो गया है. तीन दिन एक ही समय में सर्वे दल गिद्धों के रहवास क्षेत्र में पहुंचेंगे. गिद्धों की पहचान कर प्रोफार्मा में सारी जानकारी भरेंगे और फिर इसे एक ऐप में भी दर्ज किया जाएगा."

ताला में रहता है गिद्धों का डेरा

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उपसंचालक पीके वर्मा बताते हैं कि "बांधवगढ़ रिजर्व के ताला परिक्षेत्र में गिद्धों का एक बड़ा समूह रहता है. ज्यादातर गिद्ध इस क्षेत्र में देखे जाते हैं. अक्सर पर्यटकों को इसके दीदार बड़ी आसानी से हो जाते हैं. ताला रेंज के बांधवगढ़ किला के पीछे की तरफ काफी गिद्ध अक्सर दिखते हैं. पिछली बार की गणना में भी ताला रेंज में सबसे ज्यादा गिद्ध दर्ज किए गए थे.

7 Species of Vultures in MP
सुबह सुबह धूप सेकने बाहर आते हैं गिद्ध (ETV Bharat)

फील्ड पर कैसे करते हैं गिद्धों की गणना

गिद्धों की गणना करना इतना आसान नहीं है, क्योंकि वो एक उड़ने वाला पक्षी है. ऐसे में सवाल यही उठता है कि गिद्धों की गणना कैसे की जाती है. इसे लेकर बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के उप संचालक पीके वर्मा बताते हैं कि गिद्धों की गणना अक्सर सूर्योदय के समय ही की जाती है. जैसे ही सूर्योदय होता है, हल्की-हल्की धूप निकलती है. तब गिद्ध धूप सेकने के लिए बाहर निकलते हैं, तभी उनकी गणना की जाती है. इसके लिए उन जंगलों में लगातार भ्रमण करने वाले हमारे जो कर्मचारी होते हैं, जो साल के 12 महीने 365 दिन वहां घूमते हैं, उन्हें जानकारी होती है कि किस क्षेत्र में सबसे ज्यादा गिद्ध पाए जाते हैं.

इसके अलावा गिद्ध पहाड़ी क्षेत्र में अक्सर पाए जाते हैं. ऊंचे पहाड़ों वाले इलाके में अपना आवास बनाते हैं, ताकि वह मानव दखल से दूर रहें और पहाड़ों में उनकी बीट से भी पहचान की जाती है कि इस क्षेत्र पर उनके आवास हैं. पहाड़ों में सफेद बीट नजर आती है. उससे जाना जाता है, किस क्षेत्र में गिद्ध रहते हैं. फिर दूरबीन की सहायता से उन क्षेत्रों में गिद्धों को देखा जाता है और तस्वीर निकाली जाती है. फिर उन्हें आईडेंटिफाई कर गणना की जाती है. गिद्ध भोजन की तलाश में बाहर उड़े, उससे पहले ही उनकी गणना करनी पड़ती है.

Bandhavgarh Tiger Reserve Vulture Counting
बांधवगढ़ किला के पीछे की तरफ मिलते हैं गिद्ध (ETV Bharat)

गिद्धों की गणना तीन दिनों तक चलती है. तीनों दिन उसी क्षेत्र में कर्मचारी जाते हैं और इस प्रक्रिया को दोहराते हुए गिद्धों की गणना उसी तरीके से करते हैं. जिस दिन सबसे ज्यादा गिद्ध की संख्या पाई जाती है, वही आंकड़ा सही माना जाता है, कि इतने गिद्ध उस क्षेत्र में पाये जाते हैं.

गिद्धों की कितनी प्रजातियां

गिद्ध विशेषज्ञ और एक रिपोर्ट की मानें तो तो पूरे विश्व में गिद्धों की 23 प्रजातियां पाई जाती हैं. जिसमें अकेले भारत में ही गिद्धों की टोटल 9 प्रजातियां मिलती हैं. इनमें से 7 प्रजातियां मध्य प्रदेश में भी देखी जा सकती हैं, लेकिन यहां की रहवासी प्रजातियां 4 ही हैं. भारत में जो 9 प्रजातियां गिद्धों की मिलती हैं. उसमें लॉग बिल्ड वल्चर जिसे देसी गिद्ध कहा जाता है. इसके बाद व्हाइट बैक्ड/ रम्ड वल्चर को चमर गिद्ध, किंग वल्चर को राज गिद्ध, सिनेरियस गिद्ध को काला गिद्ध के नाम से जानते हैं.

Umaria Bandhavgarh Vulture Counting
कैसे होती है गिद्धों की गणना (ETV Bharat)

वहीं इजिप्शियन वल्चर इसे सफेद गिद्ध, हिमालयन ग्रिफान को हिमालयी गिद्ध, यूरेशियन ग्रिफान को यूरेशियाई गिद्ध, स्लेडर बिल्ड वल्चर को पतली चोंच वाला गिद्ध और लमगयार/ वीर्य डेड वल्चर को जटायु गिद्ध के नाम से भी जाना जाता है. ये तो रहीं भारत में मिलने वाली गिद्धों की 9 प्रजातियां. इसमें स्लेडर बिल्ड वल्चर जिसे पतली चोंच वाला गिद्ध, इसके अलावा लमगयार/ वीर्य डेड वल्चर जटायु गिद्ध के नाम से जानते हैं, इन दो गिद्धों को छोड़कर बाकी सभी 7 प्रजातियां मध्य प्रदेश में पाई जाती हैं.

How vultures counted
ताला परिक्षेत्र में मिलते हैं गिद्ध (ETV Bharat)

गिद्ध क्यों हैं जरूरी ?

गिद्ध हमारे पारिस्थितिक तंत्र में एक बड़े सफाई कर्मी के तौर पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. ऐसा माना जाता है कि गिद्धों का पाचन तंत्र बहुत मजबूत होता है. जिसके चलते शवों में पलते हुए रोगजनक बैक्टीरिया व फफूंदी को आसानी से पचा लेते हैं. इसके साथ ही ये एंथ्रोक्स, फुट एंड माउथ व रेबीज जैसी महामारियों को पैदा करने वाले कीटाणु को भी खत्म कर देते हैं.

अगर प्रकृति में यह सफाई कर्मी पक्षी ना हो तो पूरे विश्व में हड्डियों के अवशेष, मरे हुए जानवरों का सड़ा बदबू मारता मांस और अन्य कायिक अंगों का अंबार लग जाएगा. वास्तव में देखा जाए तो गिद्ध नेचर के अपशिष्टों को नष्ट करने वाले एक अच्छे सिपाही हैं. ये मानव समुदाय के परम सेवक हैं. साथ ही स्वास्थ्य आर्थिक गतिविधियों और पर्यावरण के पोषक भी हैं.

गिद्ध पर क्यों मंडरा रहा खतरा?

आखिर अचानक से गिद्धों पर खतरा क्यों मंडराने लगा, इसे लेकर गिद्ध विशेषज्ञ बताते हैं की एक समय में भारत में बहुतायत में गिद्ध पाए जाते थे. जो अब विलुप्ति की कगार पर हैं. उसकी सबसे बड़ी वजह

  1. गैर स्टेरॉयड सूजन रोधी डाइक्लोफेनिक दवा जो पशु चिकित्सा में उपयोग के कारण गिद्धों की आबादी में एक बड़ी गिरावट आई है.
  2. इसके अलावा प्राकृतिक रहवासों का ह्रास जिसमें उनके घोसले और होस्टिंग साइड सम्मिलित है.
  3. महानगरों के निर्माण और विस्तार में पेड़ों को काटकर कंक्रीट के जंगलों का विस्तार भी गिद्धों के विलुप्त होने के प्रमुख कारण हैं.
  4. इनके रहने वाले स्थानों पर उच्च तापमान का घटित होना भी उनकी कमी के लिए उत्तरदाई है.
  5. जादू टोने के लिए भी उनके अंगों का उपयोग कुछ जगहों पर किया जाता है.
  6. कुछ विशिष्ट समुदाय साधारण भोजन के रूप में विशेष पर्व आदि अवसरों पर या रोजमर्रा की जिंदगी में उन्हें अपना भोज्य पदार्थ बनाते हैं. यह उनके वयस्क, अंडे और चूजों को भी मारकर खा जाते हैं.
  7. ऊंचे पड़ों की तेजी से कटाई भी बड़ा कारण है, क्योंकि गिद्ध ऊंचाई पर ही अपने रहवास बनाते हैं.
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