मुरैना। चंबल अंचल में पानी की समस्या हमेशा बनी रहती है, यही वजह कि यहां खेती के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिलता. लेकिन अब मुरैना जिले के लिए केंद्र सरकार की तरफ से एक बड़ी सौगात मिलने जा रही है. मुरैना मध्य प्रदेश का ऐसा पहला जिला होगा, जहां इजरायल की तकनीक से सब्जियां उगाई जाएगी.
इजरायल के पास कम पानी में बेहतर उत्पादन के साथ खेती करने की सबसे अच्छी तकनीक मानी जाती है. भारत भी इजरायल की इस तकनीक का लाभ उठाना चाहता है. जिसके चलते केंद्र सरकार ने इंडो- इजरायल तकनीकी से वेजिटेबल-हब बनाने के लिए एक्शन प्लान तैयार किया. केंद्र की इस योजना के तहत कम पानी वाले क्षेत्रों में इजरायली तकनीक से खेती की जाएगी.
9 करोड़ से ज्यादा की आएगी लागत
केंद्र सरकार की इस परियोजना का एक हब मुरैना जिले के नूराबाद में बनने जा रहा है. जहां 15 हेक्टेयर जमीन पर 9 करोड़ 70 लाख रुपए की लागत से इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर वेजिटेबल हब बनाकर मुरैना जिलो को सब्जी उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया जाएगा. इस योजना में 5 करोड से प्राकृतिक वातावरण देने के लिए दो थर्मल स्क्रीनिंग युक्त ग्रीन हाउस बनाए जाएंगे, एक उच्च तकनीकी क्लाइमेट कंट्रोल पॉलीकार्बोनेट सीडलाइन ग्रीनहाउस बनाया जाएगा. तो किसानों के लिए दो प्रशिक्षण केंद्र भी बनाए जाएंगे. जहां इसराइल में से प्रशीक्षण लेकर आने वाले तीन वैज्ञानिक किसानों को खेती के गुर सिखाएंगे.
इन आधुनिक तकनीकी वाले हाउस में बिना मिट्टी के सब्जियां उगाने की तकनीकी पर काम किया जाएगा. जहां पानी में सिर्फ केमिकलओं का उपयोग कर सीधे सब्जियां उगाई जाएंगी. उद्यानिकी अधीक्षक डॉ रणवीर सिंह नरवरिया ने बताया कि हाइड्रोक्रॉनिक तकनीकी से खेती करना और उससे किसानों आत्मनिर्भर बनाना ही इस योजना का उद्देश्य है.
मंत्री ने दिया केंद्रीय मंत्री को धन्यवाद
इस योजना को मुरैना जिले में लाने के लिए केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का बड़ा योगदान माना जा रहा है. जिसके लिए कृषि राज्यमंत्री गिर्राज डण्डौतिया ने उन्हें बधाई देते हुए कहा कि इस योजना से अंचल का किसान ना आधुनिक खेती करने में निपुण होगा बल्कि आत्मनिर्भर बनते हुए सब्जी उत्पादन के क्षेत्र में निर्यातक केंद्र भी होगा
दरअसल, मुरैना जिले में पानी कमी मानी जाती है. लेकिन जिले में यह तकनीक आने से यहां के किसानों की समस्या बहुत हद तक कम हो जाएगी. इस योजना के साथ-साथ किसानों को समय-समय पर नई तकनीकी और विपरीत मौसम में भी उत्पादन बढ़ाने का प्रशिक्षण दिया जाएगा. ताकि किसान भी अपनी सीमित भूमि में अत्यधिक उत्पादन कर नगदी फसलों से आय दोगुनी करें और आत्मनिर्भर बने.