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हिंदी दिवसः दुनिया में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा के सम्मान का दिन, जानें क्या कहते हैं विशेषज्ञ - हिंदी वर्ल्डवाइड स्टेटस

हर वर्ष की तरह इस साल भी 14 सितंबर को देशभर में हिंदी दिवस मनाया गया है. इसी दिन हिंदी को देश की राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ था. आज कई देशों में लोग हिंदी बोलते हैं. एक अध्ययन के मुताबिक दुनियाभर में बोली जाने वाली तीसरी सबसे बड़ी भाषा हिंदी है. बावजूद इसके आज भी देश में हिंदी के विकास की रफ्तार धीमी है.

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हिंदी दिवस
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Published : Sep 14, 2020, 9:25 PM IST

मुरैना। हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था. इस निर्णय के बाद हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. हिंदी भारत की 22 भाषाओं में से एक है. अधिकतर भारतीय हिंदी को बोलते और समझते हैं. उत्तर भारत के राज्यों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में हिंदी बोली और समझी जाती है.

डॉ मुक्ता अग्रवाल

14 सितंबर 1953 को मनाया गया था पहला हिंदी दिवस

हिंदी दिवस पर हिंदी के प्रसार-प्रचार के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इस दिन स्कूल, कॉलेजों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं. 14 सितंबर 1953 को पहली बार देश में हिंदी दिवस मनाया गया था. हिंदी केवल हमारी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी ने लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया था.

हिंदी के महत्व को समझना जरूरी

जीवाजी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ मुक्ता अग्रवाल का कहना है कि देश की राजभाषा के रूप में हिंदी को संविधान में जगह दी गई. लेकिन उस समय देश में विभिन्न भाषाओं की विसंगति को दूर करने के लिए 15 वर्षों के लिए अंग्रेजी हिंदी की सहायक भाषा के रूप में चुना गया. साल 1963 में जब अंग्रेजी को स्थाई रूप से हिंदी के सहायक भाषा के रूप में संवैधानिक दर्जा दे दिया गया, तो हिंदी के पतन का दौर शुरू हुआ. धीरे-धीरे अंग्रेजी ने पैर पसारना शुरू कर दिया और हिंदी व्यवहार की भाषा से कामकाज की भाषा से दूर हटती चली गई. साथ ही शिक्षा भी अंग्रेजी माध्यम में होने से मातृभाषा का जो महत्व होता है उस पर ग्रहण लगने लगा.

हिंदी का हो विस्तार

हिंदी के विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मातृभाषा में नहीं होगी, तब तक उस राष्ट्र की मातृभाषा को सम्मान मिलना मुश्किल है. आज सरकारें विचार तो करती हैं कि तकनीकी,चिकित्सा शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के दौर में हिंदी भाषा का उपयोग किया जाए, लेकिन अभी कई ऐसी खामियां हैं, जिससे छात्र हिंदी से दूरी बना रहे हैं. हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किया है. जिसका परिणाम आगे देखने को मिलेंगे.

फिल्मी दुनिया में हिंदी की काफी अहमियत

वर्तमान में फिल्म इंडस्ट्री और विज्ञापन की दुनिया हिंदी के प्रचार-प्रसार का एक बड़ा माध्यम है. देश में ज्यादातर लोग हिंदी बोल और समझ सकते हैं. ऐसे में विज्ञापन और मनोरंजन के लिए हिंदी का बहुतायत इस्तेमाल किया जा रहा है. जिससे हिंदी का प्रचार-प्रसार हो रहा है. आज हिंदी की व्यापकता इतनी बढ़ती जा रही है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी और संस्कृत माध्यम में शिक्षा दी जाती है. जिसके लिए हिंदुस्तान से विद्वानों को आमंत्रित किया जाता है. लिहाजा सरकार को हिंदी के विकास की तरफ ध्यान देने की जरूरत है.

मुरैना। हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है. 14 सितंबर 1949 को संविधान सभा में एक मत से हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया था. इस निर्णय के बाद हिंदी को हर क्षेत्र में प्रसारित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति वर्धा के अनुरोध पर 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा. हिंदी भारत की 22 भाषाओं में से एक है. अधिकतर भारतीय हिंदी को बोलते और समझते हैं. उत्तर भारत के राज्यों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश में हिंदी बोली और समझी जाती है.

डॉ मुक्ता अग्रवाल

14 सितंबर 1953 को मनाया गया था पहला हिंदी दिवस

हिंदी दिवस पर हिंदी के प्रसार-प्रचार के लिए कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं. इस दिन स्कूल, कॉलेजों में कई सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित होते हैं. 14 सितंबर 1953 को पहली बार देश में हिंदी दिवस मनाया गया था. हिंदी केवल हमारी मातृभाषा या राष्ट्रभाषा ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव का प्रतीक है. भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिंदी ने लोगों को एकता के सूत्र में पिरोने का काम किया था.

हिंदी के महत्व को समझना जरूरी

जीवाजी विश्वविद्यालय की प्रोफेसर डॉ मुक्ता अग्रवाल का कहना है कि देश की राजभाषा के रूप में हिंदी को संविधान में जगह दी गई. लेकिन उस समय देश में विभिन्न भाषाओं की विसंगति को दूर करने के लिए 15 वर्षों के लिए अंग्रेजी हिंदी की सहायक भाषा के रूप में चुना गया. साल 1963 में जब अंग्रेजी को स्थाई रूप से हिंदी के सहायक भाषा के रूप में संवैधानिक दर्जा दे दिया गया, तो हिंदी के पतन का दौर शुरू हुआ. धीरे-धीरे अंग्रेजी ने पैर पसारना शुरू कर दिया और हिंदी व्यवहार की भाषा से कामकाज की भाषा से दूर हटती चली गई. साथ ही शिक्षा भी अंग्रेजी माध्यम में होने से मातृभाषा का जो महत्व होता है उस पर ग्रहण लगने लगा.

हिंदी का हो विस्तार

हिंदी के विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मातृभाषा में नहीं होगी, तब तक उस राष्ट्र की मातृभाषा को सम्मान मिलना मुश्किल है. आज सरकारें विचार तो करती हैं कि तकनीकी,चिकित्सा शिक्षा और अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा के दौर में हिंदी भाषा का उपयोग किया जाए, लेकिन अभी कई ऐसी खामियां हैं, जिससे छात्र हिंदी से दूरी बना रहे हैं. हालांकि मौजूदा केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति के तहत मातृभाषा को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किया है. जिसका परिणाम आगे देखने को मिलेंगे.

फिल्मी दुनिया में हिंदी की काफी अहमियत

वर्तमान में फिल्म इंडस्ट्री और विज्ञापन की दुनिया हिंदी के प्रचार-प्रसार का एक बड़ा माध्यम है. देश में ज्यादातर लोग हिंदी बोल और समझ सकते हैं. ऐसे में विज्ञापन और मनोरंजन के लिए हिंदी का बहुतायत इस्तेमाल किया जा रहा है. जिससे हिंदी का प्रचार-प्रसार हो रहा है. आज हिंदी की व्यापकता इतनी बढ़ती जा रही है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक विश्वविद्यालयों में हिंदी और संस्कृत माध्यम में शिक्षा दी जाती है. जिसके लिए हिंदुस्तान से विद्वानों को आमंत्रित किया जाता है. लिहाजा सरकार को हिंदी के विकास की तरफ ध्यान देने की जरूरत है.

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