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पंचतत्व में विलीन हुए 'शांतिदूत' एसएन सुब्बाराव, राजस्थान के सीएम समेत कई हस्तियों ने दी अंतिम विदाई - पंचतत्व में विलीन हुए 'शांतिदूत' एसएन सुब्बाराव

गांधीवादी विचारक एसएन सुब्बाराव का मुरैना के जौरा में गांधी आश्रम में अंतिम संस्कार किया गया. उन्हें अंतिम विदाई देने राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत समेत एमपी के कई कांग्रेसी विधायक पहुंचे.

पंचतत्व में विलीन हुए 'शांतिदूत' एसएन सुब्बाराव
पंचतत्व में विलीन हुए 'शांतिदूत' एसएन सुब्बाराव
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Published : Oct 28, 2021, 6:44 PM IST

मुरैना। विश्व में गांधीवादी विचारधारा की अलख जगाने वाली डॉक्टर सुब्बाराव पंचतत्व में विलीन हो गये. मुरैना के जौरा में गांधी आश्रम में उनका अंतिम संस्कार किया गया. उनके अंतिम संस्कार में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शामिल हुए. अशोक गहलोत ने शोक सभा में पहुंचकर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे. डॉ. सुब्बाराव को अंतिम विदाई देने पूर्व मंत्री और कांग्रेस के विधायक गोविंद सिंह, जीतू पटवारी, लाखन सिंह सहित कई कांग्रेसी नेता जौरा पहुंचे.

पंचतत्व में विलीन हुए 'शांतिदूत' एसएन सुब्बाराव

एमपी सरकार के मंत्री रहे नदारद

हैरानी की बात यह रही कि गांधीवादी डॉक्टर सुब्बा राव के अंतिम संस्कार में मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से कोई मंत्री शामिल नहीं हुआ. डॉ. सुब्बाराव को अंतिम विदाई देने न तो स्थानीय सांसद और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर पहुंचे और न ही अंचल के बड़े नेता केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पहुंचे. हालांकि डॉ. सुब्बाराव के विचारों को मानने वाले उनके समर्थक बड़ी संख्या में जौरा पहुंचे.

हाफ पैंट और खादी की शर्ट थी पहचान
पूरे देश-दुनिया में प्रख्यात गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में उतारने वाली डॉक्टर सुब्बाराव की पहचान हाफ पैंट और खादी की शर्ट थी. डॉ सुब्बाराव विश्व में गांधीवादी विचारधारा का प्रचार करते थे और यही वजह है कि जब भी वह देश के बाहर जाते थे, तब भी हाफ पेंट और खादी की शर्ट ही पहनते थे. लोग उन्हें 'भाई जी' के नाम से जानते थे. उन्होंने अपने जीवन में गांधीवादी के अलावा किसी को महत्व नहीं दिया है.

राजस्थान के सीएम ने दी अंतिम विदाई
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BJP सांसद और कांग्रेस प्रत्याशी के बीच कहासुनी, Video आया सामने

चंबल के कहे जाते थे 'शांतिदूत'
गांधीवादी विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने सन् 1970 में गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की. स्थापना के महज दो वर्ष बाद ही 1972 में चंबल के बीहड़ों की बागी समस्या के निदान में सामूहिक आत्मसमर्पण जैसा इतिहास उन्होंने रच दिया. डॉ. सुब्बाराव ने 14 अप्रैल 1972 को 672 से अधिक डकैतों का सरेंडर कराया और निरंतर डकैतों को गांधीवादी विचारधारा पर प्रेरित करने के लिए उनसे संपर्क करते रहे. यही वजह है कि जौरा के गांधी सेवा आश्रम में चंबल अंचल के कुख्यात डकैतों ने हथियार डाले थे.चंबल में शांति स्थापना के साथ ही उन्होंने युवाओं में श्रम संस्कार जगाने के लिए युवा शिविरों का आयोजन कर अंचल में विकास के नए आयाम स्थापित किए. दक्षिण भारत में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने देश और दुनिया में अपना परिचय हमेशा चंबल के बेटे के रूप में दिया.

मुरैना। विश्व में गांधीवादी विचारधारा की अलख जगाने वाली डॉक्टर सुब्बाराव पंचतत्व में विलीन हो गये. मुरैना के जौरा में गांधी आश्रम में उनका अंतिम संस्कार किया गया. उनके अंतिम संस्कार में राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत शामिल हुए. अशोक गहलोत ने शोक सभा में पहुंचकर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित की. मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी मौजूद रहे. डॉ. सुब्बाराव को अंतिम विदाई देने पूर्व मंत्री और कांग्रेस के विधायक गोविंद सिंह, जीतू पटवारी, लाखन सिंह सहित कई कांग्रेसी नेता जौरा पहुंचे.

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एमपी सरकार के मंत्री रहे नदारद

हैरानी की बात यह रही कि गांधीवादी डॉक्टर सुब्बा राव के अंतिम संस्कार में मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से कोई मंत्री शामिल नहीं हुआ. डॉ. सुब्बाराव को अंतिम विदाई देने न तो स्थानीय सांसद और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर पहुंचे और न ही अंचल के बड़े नेता केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया पहुंचे. हालांकि डॉ. सुब्बाराव के विचारों को मानने वाले उनके समर्थक बड़ी संख्या में जौरा पहुंचे.

हाफ पैंट और खादी की शर्ट थी पहचान
पूरे देश-दुनिया में प्रख्यात गांधीवादी विचारधारा को अपने जीवन में उतारने वाली डॉक्टर सुब्बाराव की पहचान हाफ पैंट और खादी की शर्ट थी. डॉ सुब्बाराव विश्व में गांधीवादी विचारधारा का प्रचार करते थे और यही वजह है कि जब भी वह देश के बाहर जाते थे, तब भी हाफ पेंट और खादी की शर्ट ही पहनते थे. लोग उन्हें 'भाई जी' के नाम से जानते थे. उन्होंने अपने जीवन में गांधीवादी के अलावा किसी को महत्व नहीं दिया है.

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चंबल के कहे जाते थे 'शांतिदूत'
गांधीवादी विचारों से प्रेरित होकर उन्होंने सन् 1970 में गांधी सेवा आश्रम की स्थापना की. स्थापना के महज दो वर्ष बाद ही 1972 में चंबल के बीहड़ों की बागी समस्या के निदान में सामूहिक आत्मसमर्पण जैसा इतिहास उन्होंने रच दिया. डॉ. सुब्बाराव ने 14 अप्रैल 1972 को 672 से अधिक डकैतों का सरेंडर कराया और निरंतर डकैतों को गांधीवादी विचारधारा पर प्रेरित करने के लिए उनसे संपर्क करते रहे. यही वजह है कि जौरा के गांधी सेवा आश्रम में चंबल अंचल के कुख्यात डकैतों ने हथियार डाले थे.चंबल में शांति स्थापना के साथ ही उन्होंने युवाओं में श्रम संस्कार जगाने के लिए युवा शिविरों का आयोजन कर अंचल में विकास के नए आयाम स्थापित किए. दक्षिण भारत में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने देश और दुनिया में अपना परिचय हमेशा चंबल के बेटे के रूप में दिया.

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