मुरैना। 1000 बेटों पर 830 बेटियां, फिर भी बेटे यहां बेटियों के आगे पानी भरते नजर आते हैं. बागी-बीहड़ के लिए बदनाम चंबल अब यहां की बेटियों की काबिलियत से पहचाना जाने लगा है. भले ही चंबल इलाके में बेटों की अपेक्षा बेटियों की संख्या बहुत कम है, फिर भी यहां की बेटियां चंबल क्षेत्र का नाम पूरे देश और दुनिया में रोशन कर रही हैं. इससे साफ है कि बेटियां किसी से कम नहीं हैं, शिक्षा, समाजसेवा या फिर खेल का मैदान. हर जगह बेटियों ने अपना परचम लहराया है, जबकि कई बेटियों की ख्याति सात समंदर पार तक फैली है.
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सात समंदर पार तक बेटियों की धमक
मुरैना चंबल इलाका वो है, जहां कई मान्यताओं और कुरीतियों के चलते बेटियों की संख्या बेटों से बहुत कम है, बदलते वक्त और सरकारी पहल से लोग थोड़ा जागरूक हुए हैं, उसी का परिणाम है कि कई क्षेत्रों में बेटियों ने चंबल का नाम देश-दुनिया में रोशन किया है. समाजसेवी आशा सिकरावर ने बताया कि चंबल की बेटियों ने प्रदेश ही नहीं बल्कि देश में नाम रोशन किया है. उदाहरण के तौर पर अद्रिका गोयल को राष्ट्रपति अवार्ड मिला है, जबकि मोमना गौरी ने शिक्षा के क्षेत्र में राष्ट्रपति अवार्ड प्राप्त किया है और अब सबसे कम उम्र में मुरैना की बेटी नंदिनी अग्रवाल ने CA की परीक्षा में पूरे देश मे टॉप किया है. इसी तरह चंबल की बेटियां हर क्षेत्र में अपना और अपने परिवार के साथ साथ मुरैना का नाम रोशन कर रही हैं.
बेटियों को मिले बेटों के बराबर हक
सीए की परीक्षा में चंबल की बेटी नंदनी अग्रवाल ने पूरे देश में प्रथम स्थान प्राप्त कर मुरैना सहित चंबल का नाम रोशन किया है, नंदनी भी कहती हैं कि बेटियां किसी भी तरह से बेटों से कम नहीं हैं, जो बेटे कर सकते हैं, उससे ज्यादा बेटियों ने करके दिखाया है. बेटियों को बेटों से कम नहीं समझना चाहिए, बेटियों को भी बेटों के बराबर दर्जा देकर परिजनों को उनका मनोबल बढ़ाना चाहिए.
बेटियों को मिल रहा समान अवसर
अधिकारियों की मानें तो चंबल में कुछ मान्यताओं और कुरीतियों के चलते बेटियों की संख्या कम थी, पर सरकारी योजनाओं और जागरूकता अभियानों के चलते अब इसमें सुधार हुआ है, यही वजह है कि अब बेटियों को भी बेटों के समान अवसर मिलने लगे हैं, जिसमें अभी सुधार की और गुंजाइश है. सरकार बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर करोड़ों रुपए खर्च करती है, लेकिन कहीं न कहीं अधिकारियों की उदासीनता के चलते इसका सही प्रयोग नहीं हो पा रहा है.