मुरैना(Morena)। चंबल और कुंवारी नदी में आई बाढ़ से लगभग 120 गांव प्रभावित हुए हैं. दाने-दाने के लिए लोग मजबूर है. दो जून की रोटी अब मश्किल से मिल पा रही है.बाढ़ से मची तबाही के बाद 30 गांव के लोग खुले आसमान के नीचे या पन्नियों के सहारे रहने रात गुजारने को मजबूर हैं.प्रशासन बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए राहत कैंप और भोजन सामग्री बांटने की बात कह रहा है.कुछ जगहों पर इसका लाभ ग्रामीणों मिल भी रहा है पर ऐसी बड़ी आबादी है जिन्हें राहत कैंप की कोई भी सुविधा नहीं मिली है और ना ही उनको भोजन मिल पा रहा है.ऐसे में बच्चों को लेकर यह लोग जैसे-तैसे समय काट रहे हैं.15 राहत कैंप बनाये थे लेकिन हकीकत कुछ और बयान कर रही है.लोग ट्रैक्टर ट्रॉलियों के नीचे या खुले में सो रहे हैं.चंबल नदी के हालात 2019 में भी ऐसे ही रहे थे.लोगों के खाने पीने के सामान भी बह गए और सामान भी बह गए.हजारों बीघा बाजरे की फसल पूरी तरह से बर्बाद हो गई.80% लोग सड़कों के किनारे झोपड़ी बनाकर या फिर ट्रैक्टर ट्रॉलियों के नीचे रह रहे हैं.
प्रशासन से नहीं मिल रही कोई मदद
मुरैना जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर पोरसा तहसील इलाके में चम्बल नदी में 2019 के बाद ऐसी बाढ़ आई है.जिससे प्रभावित ग्रामीण अपने अपने घरों से बाहर रहने को मजबूर हैं.मुरैना जिले के नगरा क्षेत्र का ऐसा ही एक गांव चंबल किनारे बसा साहसपुरा गांव है जो कि बाढ़ आने से डूब गया है.ग्रामीणों के घरों का पूरा सामान, पालतू मवेशी सब पानी में बह गए हैं.इनमें से महिला नेमा देवी ने बताया कि बाढ़ में उनका 50 क्विंटल गेहूं.70 क्विंटल भूसा और मवेशी सहित घर का सामना बह गया है.
![People forced to live with the help of sheets](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/mp-mor-01-flood-victims-did-not-get-help-spl-pkg-10021_08082021111053_0808f_1628401253_51.jpg)
बाढ़ में बहे मवेशी और घर का सामना
जैसे तैसे बच्चों को जिस हालात में थे वैसे ही ट्यूब के सहारे निकलकर जान बचाई.लेकिन अब प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिल पा रही है.बच्चे भूख से बिलख रहे है.2019 में भी चंबल के इलाकों में बाढ़ आई थी लेकिन सरकार से मुआवजे के नाम पर अभी तक कुछ भी नहीं मिला है.नेमा देवी का कहना है कि अधिकारी आते है लेकिन चम्बल देखकर चले जाते है.
![Villagers eating food below the value](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/12709084_kfskjf.png)
खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर लोग
साहसपुरा गांव निवासी प्रमोद का कहना है कि लोग मैदानों में पन्नियों के सहारे रहने को मजबूर हैं, खाने का जो बचा कुचा सामान है वह बह गया है.उसी के सहारे अपना पेट भी भर रहे हैं. प्रशासन की तरफ से 12 ओर 1 बजे के बाद जो खाना आता है तब तक उनके बच्चे भूखे से ही पड़े रहते हैं ऐसे में इन लोगों के सामने कई परेशानियां हैं उन्हें भी नहीं पता है कि आखिर कब तक वह वापस अपने घरों में पहुंच पाएंगे.
![saved life by going through the tube](https://etvbharatimages.akamaized.net/etvbharat/prod-images/mp-mor-01-flood-victims-did-not-get-help-spl-pkg-10021_08082021111053_0808f_1628401253_1090.jpg)
चंबल नदी के किनारे बसे कई गांव में हर दो-तीन साल के बाद ऐसे हालात पैदा होते हैं.जिसके चलते अब कल ग्रामीण अपने घरों को छोड़कर नई जगह पर रहना चाहते हैं. उनका कहना है कि उनके गांव निकली जमीन पर बने हुए हैं और अगर उन्हें ऊंचाई पर घर बनाने दिया जाए तो शायद वह हर साल आने वाली बाढ़ से बच सकते हैं.
प्रशासन के दावों की पोल इन सब लोगों के बयानों से खुल रही है.कुछ लोगों को राहत भले ही मिल रही हो.ऐसी बड़ी आबादी है जिसे न तो उनको मदद मिली हैं और ना ही उनको प्रशासन के द्वारा बांटे जाने वाला खाद्यान्न ही मिल रहा है.