मंदसौर। कोरोना वायरस के संक्रमण ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिलाकर रख दिया है. महामारी के दौर में लोगों को संक्रमण से बचाने के लिए किए गए लॉकडाउन ने सभी छोटे-बड़े कारोबारियों को चौपट कर दिया है. इस दौरान सबसे ज्यादा मार खाए दिहाड़ी मजदूर दाने-दाने के लिए तरस रहे हैं. वहीं देशभर का पेट भरने वाले अन्नदाता भी अब एक-एक रुपए के लिए मोहताज हो रहे हैं. तालाबंदी का कारण बंद हुई सब्जी मंडियों और सब्जियों के बंद आयात-निर्यात की वजह से प्रदेश के सब्जी किसान पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं.
शादी का सीजन भी जाने को है
फरवरी से शुरू होने वाली शादियों का सीजन अमूमन 15 जून तक चलता है. मालवा इलाके के किसान भी इस दौरान गर्मी सीजन की सब्जियां जैसे भिंडी, गिलकी, लौकी, करेला ,कद्दू और खीरा-ककड़ी जैसी सब्जियां उगा कर हर साल लाखों रुपए की कमाई करते हैं. वहीं छोटे और मझोले दर्जे के किसानों के लिए इन्ही सब्जियों की पैदावर आमदनी का खास जरिया है. इस साल किसानों ने अपने खेतों में अगेती सब्जियों की बुवाई कर दी थी, जिससे मार्च से शुरू होने वाली शादियों के सीजन में वे देश के बड़े-बड़ें शहरों में बेचकर अच्छी आमदनी कर सकें.
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किसानों ने भिंडी, लौकी और गिलकी की सब्जियों की भरपूर पैदावार करने के लिए हजारों रुपए भी फूंक दिए. लेकिन देशभर में लागू हुए लॉकडाउन ने किसानों के सभी अरमानों पर पानी फेर दिया. किसानों की तमाम सब्जियां खेत में खड़ी-खड़ी ही बर्बाद हो गई. अपनी गाढ़ी कमाई से पैदा की गई इन सब्जियों के खरीदार न मिलने से किसानों ने इन्हें तोड़ना भी मुनासिब नहीं समझा. अब खेत में लगे-लगे सब्जियां सड़ने लगी हैं.
लॉकडाउन का नहीं थमा सिलसिला
अगेती बुवाई करने वाले कई किसानों ने मई महीने के दूसरे हफ्ते तक लॉकडाउन खुलने का इंतजार किया लेकिन कोरोना संक्रमण के हालात नहीं सुधरने से सरकार ने इसे और आगे बढ़ाया और इसी के चलते किसानों ने हरे-भरे खेतों को खुद ही ट्रैक्टर चलाकर हांक दिया. इसके बाद पीछे की बुवाई करने वाले किसान भी अब लाकडॉउन की चपेट में आ गए हैं. इन दिनों सब्जी किसान मंदसौर से दूसरे जिलों में परिवहन नहीं कर पा रहे हैं. जिस कारण उन्हें भारी नुकसान झेलना पड़ रहा है. वहीं लोकल मंडियों में इन सब्जियों के दाम महज 3 ओर 4 रुपए किलो ही मिलने से किसानों को मजदूरी की लागत के बराबर भी पैसा नहीं मिल रहा है. ऐसे में आगे-पीछे की तमाम फसलें पौधों पर लगे-लगे ही सूखने लगी है. इन हालातों में बर्बाद हुए किसान सरकार से मुआवजे की गुहार लगा रहे हैं.
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मालवा इलाके में पैदा होने वाली सब्जियां राजस्थान के जयपुर, जोधपुर, दिल्ली और अहमदाबाद तक बिक्री के लिए भेजी जाती हैं. सब्जी के उत्पादन से एक तरफ किसानों को अच्छी कमाई मिलती है, तो वहीं दूसरी तरफ इस खेती के कारोबार से जुड़े मजदूरों को भी लगातार मजदूरी की आमदनी होती है. लेकिन इस साल हुई खेती से किसानों को आमदनी के बजाय भारी घाटा हुआ है. ऐसे में कई किसानों ने मजदूरों का अब तक भुगतान नहीं किया है. दूसरी तरफ सरकार की घोषणा के बावजूद श्रमिकों को अभी तक लॉकडाउन की राहत राशि नहीं मिली है. हालांकि मंदसौर कलेक्टर ने जिले के सब्जी उत्पादक किसानों के लिए स्थानीय मंडियों में बिक्री और पड़ोसी राज्यों के शहरों में सब्जी के परिवहन के लिए विशेष व्यवस्था करने की बात कही है.
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कोरोना वायरस के दौर में शासन ने किसानों की मदद के लिए सब्जियों के अलावा दूध की बिक्री को घर-घर की परमिशन भी जारी की थी. ऑरेंज और ग्रीन जोन वाले इलाकों में भी इन खाद्य सामग्रियों के परिवहन की व्यवस्था की गई है. लेकिन इस जानलेवा बीमारी के संक्रमण से किसानों और खरीददारों में काफी दहशत है. लोग कौड़ियों के दामों में दरवाजे पर बिकने आई सब्जियों के भी खरीदने से इंकार कर रहे हैं. यही वजह है कि इलाके के सब्जी उत्पादक किसान भी कोविड-19 की चपेट में आकर अब पूरी तरह बर्बाद हो गए हैं.