मंदसौर। मध्यप्रदेश और राजस्थान के बीच हुए आपसी समझौते के बावजूद एक बार फिर सीमावर्ती जिले मंदसौर में लाखों की तादाद में राजस्थानी भेड़ों ने आंतक मचा रखा है. नीमच जिले के रास्ते से घुसी भेड़ों के कई झुंड इन दिनों किसानों के लिए मुसीबत बन गए हैं. भेड़ रास्तों पर चलने के साथ-साथ हाईवे के इर्द-गिर्द के खेतों में खड़ी खरीफ की फसलों को चट कर रहे हैं, जबकि दोनों राज्यों के बीच 10 साल पहले हुए करार के मुताबिक भेड़ों का आवागमन इस रूट पर पूरी तरह प्रतिबंधित है.
भेड़ों का आतंक, किसान परेशान
पिछले 15 सालों से भेड़ पालक अब हाईवे से आवागमन करते नजर आ रहे हैं. भेड़ों के झुंड बेकाबू होकर अचानक खेतों में घुस जाते हैं और खड़ी फसलों को चंद मिनटों में चट कर जाते हैं. कई बार किसानों के मौके पर ना होने से वे अपनी फसल के बचाव से भी चूक जाते हैं. ऐसे ही कुछ मामलों में 10 साल पहले भेड़ पालकों और किसानों के बीच हुए खूनी संघर्ष के बाद एमपी और राजस्थान की सरकारों ने इन जानवरों के आवागमन को लेकर एक समझौता नीति तय की है, लेकिन भेड़ों के गुजरने और तय रास्तों के बावजूद भेड़ पालक अब इस रूट के बजाय हाईवे से गुजर रहे हैं. मालवा इलाके में इन दिनों खरीफ फसल की कटाई का दौर भी शुरू हो गया है और अब किसानों ने भेड़ों के आवागमन पर पूरी तरह रोक लगाने की मांग की है.
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समझौते के बावजूद कहां से हुई एंट्री ?
साल 2008 में राजस्थानी भेड़ों के मंदसौर में घुसने के बाद किसानों द्वारा भेड़ पालकों पर किए गए हमले के बाद दोनों राज्यों के बीच भेड़ों के आवागमन को लेकर एक नीति तैयार की गई है. राजस्थान से आने वाली भेड़ मंदसौर जिले के रास्ते होकर नर्मदा के किनारे तक चरने के लिए हर साल जाती हैं. कुछ सालों पहले इन भेड़ों के आने का समय फरवरी महीने में फसल कटाई के बाद रहता था. इसके बाद यह भेड़ मानसून के पहले जून महीने में वापस राजस्थान की तरफ गुजर जाती थीं. इस रूटीन के दौरान यहां तमाम खेत खाली पड़े होने से किसानों को फसल का कोई नुकसान नहीं होता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है और किसानों का काफी नुकसान हो रहा है.
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राजस्थान से पहुंचता है भेड़ों का झुंड
राजस्थान के पाली, जालौर ,जोधपुर, जैसलमेर, बाड़मेर और अजमेर जिलों में देश की नामी वूलन कंपनियां लाखों की संख्या में भेड़ पालने का कारोबार करती हैं. यह कंपनियां चरवाहों को ठेके पर पशु सौंपकर चराई की रकम अदा करती हैं. पिछले कुछ सालों से राजस्थान में जल उपलब्ध होने से वहां सैकड़ों सालों से बंजर पड़ी जमीन अब खेती में तब्दील हो गई है, लिहाजा भेड़ों के चरने के जंगल अब धीरे-धीरे खत्म होते जा रहे हैं. ऐसे हालात में भेड़ अब वहां के बजाय साल भर एमपी और महाराष्ट्र की तरफ रुख करने लगी हैं.
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तय किए गए रास्ते से क्यों नहीं ले जाते पशु पालक
इन दिनों राजस्थान से आ रही है तमाम भेड़े हाईवे से होकर गुजर रही हैं, जबकि नियम के मुताबिक भेड़ों के आवागमन को लेकर मध्यप्रदेश और राजस्थान ने एक रूट तैयार किया है. जिसके मुताबिक नीमच जिले के पूर्वी छोर से होकर मंदसौर और कोटा जिले के बीच गांधी सागर के किनारे होकर भेड़ों को आवागमन का रास्ता दिया गया है. ये भेड़ें नीमच, मंदसौर, झालावाड़, आगर उज्जैन और देवास के बाद दक्षिण प्रांतों की ओर जाती हैं, लेकिन भेड़ पालक इस रास्ते के बजाय हाईवे से गुजरने लगे हैं.
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वन विभाग का ये कैसा बयान ?
इस मामले में जिम्मेदार वन विभाग के अधिकारी भेड़ों के आवागमन और उनके नुकसान के मामले से अभी तक बेखबर हैं. वन मंडल अधिकारी संजय कुमार चौहान ने किसानों की फसल और भेड़ों के आवागमन के मामले से पल्ला झाड़ते हुए किसानों को खुद अपनी फसल की सुरक्षा करने की सलाह दी है.