मंदसौर । आज सावन सोमवार होने की वजह से श्रद्धालुओं ने शिव मंदिरों में जाकर भगवान की पूजा कर अभिषेक किया. कोरोना संक्रमण के चलते इस बार सावन के पहले सोमवार के अवसर पर पशुपतिनाथ मंदिर में भी श्रद्धालुओं ने भगवान का आशीर्वाद लिया. इस बार पशुपतिनाथ मंदिर में श्रद्धालुओं की तादात में काफी कमी नजर आई. संक्रमण के डर से कई श्रद्धालु मंदिर नहीं पहुंचे. भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन के लिए प्रशासन ने इस बार काफी इंतजाम किए हैं. श्रद्धालुओं ने कोविड-19 के नियम का पालन करते हुए भगवान के दर्शन किए.
कोरोना संक्रमण न फैले इसलिए मंदिर के मेन गेट पर ही सभी दर्शनार्थियों की थर्मल स्क्रीनिंग की जा रही है. दर्शन के लिए महिला-पुरुषों के लिए अलग-अलग लाइन का इंतजाम किया गया है. इस बार मंदिर के गर्भ गृह में श्रद्धालुओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है. तमाम श्रद्धालु 22 फीट दूर से ही भगवान के दर्शन कर रहे हैं. मंदिर के तीन गेट के चैनल लगा दिए गए हैं और केवल दक्षिण दरवाजे से ही भगवान के दर्शन के लिए श्रद्धालु आ रहे हैं. भगवान की मूर्ति पर पूजन सामग्री चढ़ाने और जलाभिषेक पर भी प्रशासन ने प्रतिबंध लगाया है.
दर्शन करने के लिए केवल 30 सेकंड का समय दिया जा रहा है. लिहाजा श्रद्धालु एक स्टैंड पर खड़े होकर भगवान के दर्शन कर वापसी कर रहे हैं. कोरोना संक्रमण के चलते जिला प्रशासन ने इस बार कावड़ यात्रा पर भी रोक लगाई है. लिहाजा जिले के कई श्रद्धालु इस बार बिना कावड़ के ही पैदल दर्शन के लिए यहां पहुंच रहे हैं. सावन महीने में हर साल रोजाना जलाभिषेक करने वाले श्रद्धालु इस बार कोरोना संक्रमण के चलते जलाभिषेक भी नहीं कर पाए हैं.
क्यों खास है पशुपतिनाथ मंदिर
पशुपतिनाथ भगवान शिव का पर्यायवाची नाम है. देश ही नहीं बल्कि विदेश से भी श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए आते हैं. नेपाल के पशुपतिनाथ में चार मुख की मूर्ति है, जबकि मंदसौर में अष्टमुखी है. यह मूर्ती शिवना नदी से निकली थी, जिसके बाद नदी के तट पर ही इसे स्थापित करवा दिया गया. यह दुनिया की एक मात्र मूर्ति है जिसके आठ मुख हैं और यह अलग-अलग मुद्रा में दिखाई देते हैं. यह आठ मुख दो भागों में बंटे हुए हैं. इस मंदिर के चारों दिशाओं में चार दरवाजे हैं, लेकिन प्रवेश का दरवाजा पश्चिम दिशा में है, जो भगवान शिव की भयावह छवि दिखाता है. केंद्र में उलझे हुए बाल सांपों से घिरे होते हैं, जो सर्वनाश करने वाले ओंमार के प्रतीक हैं.
मूर्ति स्थापना का इतिहास
मंदसौर का ही एक उदा नाम का धोबी जिस पत्थर पर कपड़े धोया करता था, वही पत्थर पशुपतिनाथ की मूर्ती थी. एक दिन वह धोबी गहरी नींद में सो रहा था, तभी भगवान शिव ने सपने में धोबी से कहा कि जिस पत्थर पर तुम कपड़े धोते हो वही मेरा एक अष्ट रूप है. धोबी ने यह बात दोस्तों को बताई और सबने मिलकर मूर्ती को नदी से बाहर निकाला. मूर्ती इतनी बड़ी थी कि 16 बैलों की जोड़ी भी उसे खींचने में असमर्थ हो गए थे, लेकिन लोगों की मदद से मूर्ती को बाहर निकाला गया.
राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने बनवाया मंदिर
मूर्ती को जब एक उचित जगह पर ले जाया जा रहा था, तब एक चमत्कार हुआ कि मूर्ति जगह से हिल भी नहीं रही थी, जैसे मूर्ति कहीं जाना नहीं चाहती थी. नदी से निकलने के बाद 18 सालों तक मूर्ति की स्थापना नहीं हो पाई थी. स्वामी प्रत्यक्षानंद ने मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करवाई थी. ग्वालियर की राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने उसी जगह पर एक विशाल मंदिर बनवाया और मंदिर के शिखर पर सोने का कलश स्थापित करवाया गया. आस्था के इस केंद्र में हर साल लाखों श्रद्धालु यहां आते हैं.