मंडला। पूरी दुनिया में 28 मई को (विश्व मासिक धर्म स्वच्छता दिवस) विश्व माहवारी दिवस मनाया जाता है. किशोरियों और महिलाओं में जागरुकता और समाज के नजरिए में बीमारी को लेकर बदलाव से इसकी शुरुआत 2014 में की गई थी. लेकिन हकीकत ये है कि ग्रामीण इलाकों के अलावा शहरी क्षेत्र के कई लोग माहवारी को नजरअंदाज कर देते हैं, जिससे बाद में महिलाओं को गंभीर बीमारियों से गुजरना पड़ता है.
पैड को लेकर महिलाएं नहीं हैं जागरूक
ईटीवी भारत सेनेटरी नैपकिन के बारे में महिलाओं की सजगता की पड़ताल करने धरमपुरी गांव पहुंचा. पहले भी ईटीवी भारत पीरियड से महिलाओं को जागरूक करने और सेनेटरी पैड यूज करने को लेकर कैंपेन चलाया था, जिसके बाद इस गांव में पूजा अग्रवाल ने महिलाओं को पैड बांटे थे. जिले में आधी आबादी की 60 फीसदी से ज्यादा महिलाएं माहवारी के दौरान पैड की बजाय मैले और पुराने कपड़े का ही उपयोग करती हैं. महिलाएं और किशोरियां शर्म की वजह से कपड़े को साफ रखने और बीमारी की बात करने से भी हिचकती हैं. जागरुकता नहीं होने से बच्चेदानी कैंसर और शरीर में संक्रमण फैलने से कई बीमारियों का खतरा हमेशा बना रहता है.
डॉ. रुबीना ने दिया मैसेज
डॉ. रुबीना भिंगारदबे ने बताया कि मासिक धर्म आते ही बेटी, बहू और अन्य महिलाएं अपने ही घर में गैर हो जाती हैं. पूजा, रसोई घर, सार्वजनिक स्थानों पर जाने की पाबंदी और पुरुषों तक को छूना भी जैसे गुनाह हो जाता है. माहवारी के दौरान यदि महिला ने कुछ छू लिया तो उस चीज को अशुद्ध माना जाता है. देश में माहवारी को किसी अपराध से कम नहीं समझा जाता और महिलाओं में इसे लेकर डर बैठा रहता है. हर साल कई महिलाओं की जान संक्रमण की वजह से चली जाती है.
जानकारों की राय
माहवारी स्वच्छता प्रबन्ध में 2014 से काम करने वाले गजेन्द्र गुप्ता का कहना है कि सरकारी योजनाओं का ठीक से प्रचार न हो पाना, उदिता जैसी योजनाओं का लाभ महिलाओं तक न पहुंच पाना और सामाजिक संस्थाओं के आंकड़े के मुकाबले जमीनी स्तर पर काम न कर पाना मासिक धर्म की जागरूकता में सबसे बड़ी रुकावट है. जिसकी वजह से मासिक धर्म एक मुद्दे का विषय बनकर रह गया है, जिस पर सिर्फ बहस होती है काम नहीं. कर्मचारियों को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए समाज को जागरुक करना चाहिए कि महावारी महिलाओं के मातृत्व की निशानी है, न कि कोई गुनाह.