मंडला। देश का दिल यानी मध्यप्रदेश कुपोषण के कहर से ग्रसित है. आदिवासी जिलों पर कुपोषण का कहर इस कदर हैं कि यहां के नौनिहाल बुरी तरह बेहाल हैं. यही वजह है कि इस कलंक के दूर होने के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आते. कहीं बच्चे दिव्यांग होते हैं तो कहीं जन्म के बाद उनका विकास नहीं हो पाता. ये हाल तब हैं जब केंद्र और राज्य सरकार लगातार कुपोषण को मिटाने वाली योनाओं का डिंडौरा पीट रही है. बात अगर अकेले मंडला जिले की करें तो.
- यहां 100 में से 17 बच्चे कुपोषण का शिकार हैं.
- मण्डला में 0-5 साल तक के कुल 85 हजार 215 बच्चे हैं.
- इनमें से 14 हजार 489 बच्चे यानि कुल 17 फीसदी बच्चे कुपोषित हैं.
- जबकि अति कुपोषित बच्चों की संख्या एक हजार 170 यानि 1 प्रतिशत है.
मध्यप्रदेश से कुपोषण का कलंक मिटाने का वादा कर सत्ता में आई कांग्रेस अपने वादे से मुकरती नजर आ रही है. मंडला जिले में कुपोषण से जंग लड़ने वाली योजनाएं धूल फांकती नजर आती हैं. ईटीवी भारत ने 'कुपोषण एक कलंक' एजेंडा के जरिए कुपोषण के मुद्दे को उठाया और मध्यप्रदेश के अलग-अलग जिलों की हकीकत बताई, जिसके बाद केंद्रीय मंत्री फग्गन सिंह कुलस्ते ने कुपोषण को बड़ी समस्या माना और राज्य से कुपोषण को दूर करने के लिए कमलनाथ सरकार को एक अभियान चलाने की सलाह भी दी.
कुपोषण को लेकर ईटीवी भारत द्वारा चलाई जा रही मुहिम की तारीफ करते हुए मंडला से बीजेपी विधायक देवसिंह शैयाम ने कुपोषण को दूर करने के लिए निर्देश देने की बात कही है. इसके साथ ही उन्होंने एक जन जागरूकता अभियान बेहतर विकल्प बताया है.
स्थानीय जनप्रतिनिधी खुद स्वीकार रहे हैं कि मंडला में कुपोषण के हालात कितने भंयकर हो चुके हैं. लेकिन सवाल अकेले मंडला का नहीं बल्कि पूरे प्रदेश का है. ऐसे में सरकार को चाहिए की कुपोषण का कलंक मिटाने के लिए ऐसे कदम उठाएं जाएं तो सार्थक हों.