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मूर्तियों पर पड़ी महंगाई की मार, नहीं हो रहा गुजर-बसर, मूर्तिकारों ने ईटीवी भारत से बयां किया दर्द - mandla news

लगातार बढ़ रही महंगाई का असर मूर्तिकारों पर भी पड़ रहा है. महंगाई के चलते अब उनके लिए ये घाटे का सौदा साबित हो रहा है. मूर्तिकारों ने ईटीवी भारत के साथ अपने दर्द को बयां किया. देखिए हमारी ये खास रिपोर्ट..

मूर्तियों पर पड़ी महंगाई की मार
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Published : Sep 14, 2019, 2:15 PM IST

Updated : Sep 14, 2019, 3:12 PM IST

मण्डला। सालों से मिट्टी की मूर्तियां बना रहे जिले के एक परिवार ने ईटीवी भारत से अपना दर्द साझा किया है. कलाकर एक ओर जहां महंगाई की मार झेल रहे हैं, वहीं इस साल लगातार हो रही बारिश ने उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है. कलाकरों ने गणेशोत्सव और दुर्गाउत्सव के लिए मूर्तियां तैयार की थीं, लेकिन पिछले दिनों से हो रही बारिश के चलते मूर्तियां गल गईं, जिन्हें अब फिर से तैयार करना पड़ेगा.

इन कलाकारों ने अपना दर्द बयां करते हुए ईटीवी भारत को बताया कि उनका 55 सदस्यीय परिवार मूर्तिकला पर ही निर्भर है, लेकिन लगातार बढ़ रही महंगाई के चलते गुजर-बसर मुश्किल हो गया है. मूर्ति बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले पैरा, भूसा, लकड़ी, बांस की कीमत में तीन गुणा इजाफा हुआ है, वहीं मिट्टी की ढुलाई भी महंगी पड़ रही है. इसके अलावा रंग-रोगन भी खर्चीले हो गए हैं. उन्होंने कहा कि ग्राहक जिस दाम पर मूर्तियों का ऑर्डर देकर जा रहे हैं, वो इतना नहीं कि मेहनताना और लागत दिला सके.

मूर्तिकारों ने ईटीवी भारत से बयां किया दर्द

मूर्तिकारों का कहना है कि गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा के लिए तीन महीने पहले से ही मूर्ति बनाने का काम शुरू हो जाता है. ऑर्डर के अनुसार मूर्तियां भी बनाकर तैयार की जा रही थीं, लेकिन पिछले दिनों से जारी भारी बारिश के चलते मिट्टी से बनी मूर्तियां गल गईं. जिससे उनका काफी नुकसान हुआ है. साथ ही मूर्तियों को फिर से बनाने के लिए फिर से मेहनत करनी पड़ेगी. परिवार के सदस्यों का कहना है कि लगातार बढ़ रही महंगाई ने उनकी कमर तोड़ दी है. कला के इन साधकों की परेशानी इतनी बढ़ गई है कि अब तो मजबूरी ही इन्हें इस काम से बांधे हुए है.

महिलाओं का कहना है कि ग्राहकों को उनकी पसंद की मूर्तियां तो चाहिए, लेकिन उसके दाम भी वे खुद ही तय करते हैं. ऐसे में कलाकारों के सामने मूर्तियां कम दाम में बेचने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है. वहीं उन्हें कोई सरकारी मदद भी नहीं मिल पाती.

मण्डला। सालों से मिट्टी की मूर्तियां बना रहे जिले के एक परिवार ने ईटीवी भारत से अपना दर्द साझा किया है. कलाकर एक ओर जहां महंगाई की मार झेल रहे हैं, वहीं इस साल लगातार हो रही बारिश ने उनकी सारी मेहनत पर पानी फेर दिया है. कलाकरों ने गणेशोत्सव और दुर्गाउत्सव के लिए मूर्तियां तैयार की थीं, लेकिन पिछले दिनों से हो रही बारिश के चलते मूर्तियां गल गईं, जिन्हें अब फिर से तैयार करना पड़ेगा.

इन कलाकारों ने अपना दर्द बयां करते हुए ईटीवी भारत को बताया कि उनका 55 सदस्यीय परिवार मूर्तिकला पर ही निर्भर है, लेकिन लगातार बढ़ रही महंगाई के चलते गुजर-बसर मुश्किल हो गया है. मूर्ति बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले पैरा, भूसा, लकड़ी, बांस की कीमत में तीन गुणा इजाफा हुआ है, वहीं मिट्टी की ढुलाई भी महंगी पड़ रही है. इसके अलावा रंग-रोगन भी खर्चीले हो गए हैं. उन्होंने कहा कि ग्राहक जिस दाम पर मूर्तियों का ऑर्डर देकर जा रहे हैं, वो इतना नहीं कि मेहनताना और लागत दिला सके.

मूर्तिकारों ने ईटीवी भारत से बयां किया दर्द

मूर्तिकारों का कहना है कि गणेशोत्सव और दुर्गा पूजा के लिए तीन महीने पहले से ही मूर्ति बनाने का काम शुरू हो जाता है. ऑर्डर के अनुसार मूर्तियां भी बनाकर तैयार की जा रही थीं, लेकिन पिछले दिनों से जारी भारी बारिश के चलते मिट्टी से बनी मूर्तियां गल गईं. जिससे उनका काफी नुकसान हुआ है. साथ ही मूर्तियों को फिर से बनाने के लिए फिर से मेहनत करनी पड़ेगी. परिवार के सदस्यों का कहना है कि लगातार बढ़ रही महंगाई ने उनकी कमर तोड़ दी है. कला के इन साधकों की परेशानी इतनी बढ़ गई है कि अब तो मजबूरी ही इन्हें इस काम से बांधे हुए है.

महिलाओं का कहना है कि ग्राहकों को उनकी पसंद की मूर्तियां तो चाहिए, लेकिन उसके दाम भी वे खुद ही तय करते हैं. ऐसे में कलाकारों के सामने मूर्तियां कम दाम में बेचने के अलावा कोई चारा नहीं रह जाता है. वहीं उन्हें कोई सरकारी मदद भी नहीं मिल पाती.

Intro:मण्डला/बीते 50 सालों से मिट्टी की मूर्ती बनाने वाले इस परिवार में 6 भाई हैं जहाँ कुल सदस्यों की संख्या 55 के करीब है ये सभी गणेशउत्सव और दुर्गा उत्सव के लिए मिट्टी की मूर्तियां बानाने का काम करते हैं लेकिन अब इस कला से इनका गुजारा अब नहीं हो पाता,क्योंकि कला के इन साधकों को अब इतनी मुसीबतें पेश आ रही कि इनका शौक जाता रहा,बस मजबूरी है जो इन्हें इस काम से बाँधे हुए है


Body:मण्डला/लगभग तीन महीने पहले से दुर्गा उत्सव के लिए मूर्तियाँ बननी शुरू हो जाती हैं, महंगाई ने इन कलाकारों के लिए जहाँ मुसीबतें पैदा की तो इस साल हुई बारिश ने जैसे इनकी कमर ही तोड़ कर रख दी,अब ये कलाकर दुर्गाजी की प्रतिमाएं तो बना रहे हैं लेकिन इसमें उत्साह कम मजबूरी ज्यादा है, 6 भाइयों के इस परिवार में महिला पुरुष मिला कर 55 सदस्य हैं जो पिछले 50 सालों से यही काम करते आ रहे हैं लेकिन कच्चे माल जिसमे,पैरा,भूसा,लकड़ी,बाँश की कीमत में तीन गुना इजाफा हो गया है वहीं मिट्टी की ढुलाई भी महँगी पड़ रही है इसके अलावा रंग रोगन भी काफी महंगे हो गए हैं ऐसे में ग्राहक जिस दाम पर मूर्तियों का आर्डर देकर जा रहे वो इतना नहीं कि मेहनताना और लागत दिला सके ,बाकी की कसर सितम्बर माह में हुई बरसात ने पूरी कर दी और इसके सितम से महीनों मेहनत कर बनाई गयीं दर्जनों मूर्तियाँ टूटफूट और गल गयीं अब इन कलाकारों के सामने परेशानी यह कि बिगड़ी मूर्तियाँ पहले सुधारें या नई मूर्तियाँ बनाएं क्योंकि तय समय मे ऑर्डर ली गयी दुर्गा प्रतिमाओं को देना ही होगा,दुर्गा उत्सव को महज 15 दिन रह गए हैं लेकिन लगातार हो रही बरसात से बनाई जा रही मूर्तियाँ सूख ही नहीं पा रही जिससे इनका काम आगे भी नहीं बढ़ पा रहा और एक भी मूर्ति ऐसी अब तक नहीं है जिसे कहा जा सके कि यह पूरी तरह से बन पाई है,मूर्तिकारों के अनुसार पहले इस कला के सहारे इतना मिल जाता था कि साल भर आराम से रोजीरोटी चल जाती थी इसके चलते पढाई लिखाई और नोकरी की वजाय सभी सदस्यों ने इसे ही पेशा बना लिया लेकिन बढ़ रही महंगाई के बाद अब इस मूर्तिकला के अलावा इन्हें मजदूरी भी करनी पड़ती है इसके चलते मूर्ती कला अब मजबूरी का पेशा रह गया है जिसे छोड़ा भी नहीं जा सकता


Conclusion:इस परिवार में महिलाएं भी मूर्तियाँ बनाने में सहयोग करती हैं जिनके अनुसार कला और कलाकारों को मिलने वाले मेहनताना के बीच महंगाई ने वो खाई बना दी है कि ग्राहकों को उनकी पसंद की मूर्तियां तो चाहिए लेकिन उसके दाम भी वे खुद ही तय करते हैं ऐसे में कलाकारों के सामने मूर्तियाँ को औने पौने दामों में बेचने के अलावा और कोई चारा भी नहीं बचता।

बाईट--सुभाष चक्रवर्ती,कलाकार
बाईट---रेवा चक्रवर्ती,मूर्तिकार
बाईट--सविता चक्रवर्ती,महिला मूर्तिकार
Last Updated : Sep 14, 2019, 3:12 PM IST
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