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मंडला: 2400 बच्चें हैं एनीमिया के शिकार, सिर्फ 287 बच्चों का हो रहा इलाज - malnourished children in Mandala

मंडला जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है. इससे बच्चों कि जानकारी रखने वाले स्वास्थ्य विभाग और महिला और बाल विकास विभाग कि लापरवाही सामने आती है.

मंडला जिले में बढ़ रही कुपोषित बच्चों की संख्या
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Published : Aug 16, 2019, 8:56 PM IST

मण्डला। जिले में लगातार बच्चे एनीमिया के शिकार हो रहे हैं, लेकिन उन्हें जैसा उपचार मिलना चाहिए वो नहीं मिल पा रहा है. इलाज के आभाव में लगभग 2,400 से ज्यादा बच्चे एनीमिया के शिकार हो चुके हैं. 13 अगस्त तक के आंकड़ों की बात करें तो जिले के 9 विकासखंड में 5 साल तक के 94 हजार 50 बच्चों ने इस बीमारी की जांच कराई थी, जिसमें 24सौ बच्चे एनीमिया से पीड़ित पाए गए हैं.

मंडला जिले में बढ़ रही कुपोषित बच्चों की संख्या
इन बच्चों का ब्लड लेबल सात से भी कम पाया गया है. चिंता की बात यह है कि अब तक सिर्फ 287 बच्चों का ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन हो सका है, जबकि स्वास्थ्य विभाग ने 822 बच्चों के ट्रांसफ्यूजन का टारगेट रखा था, इस पर बाकी बच्चों को लेकर जिला स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि उन बच्चों को अस्पताल बुलाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन किन्ही कारणों से वे नहीं आ पा रहे और इनका उपचार नहीं हो पा रहा है.


इन बच्चों की देखभाल की पहली जिम्मेदारी महिला और बाल विकास विभाग की होती है जो आंगनबाड़ी के माध्यम से इनकी हर बीमारियों की जांच की जाती हैं. इन केंद्रों के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग को बच्चों से जुड़ी हर एक जानकारी मिलती भी है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में बच्चों में खून की कमी कहीं न कहीं विभागों कि कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है.


इस पर जिला स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि लोगों में जागरुकता कि कमी के कारण भी यह समस्या बढ़ रही है, उन्होंने विभागों की गलती मानते हुई कार्यप्रणाली व कार्यों में सुधार का आश्वासन दिया है.

मण्डला। जिले में लगातार बच्चे एनीमिया के शिकार हो रहे हैं, लेकिन उन्हें जैसा उपचार मिलना चाहिए वो नहीं मिल पा रहा है. इलाज के आभाव में लगभग 2,400 से ज्यादा बच्चे एनीमिया के शिकार हो चुके हैं. 13 अगस्त तक के आंकड़ों की बात करें तो जिले के 9 विकासखंड में 5 साल तक के 94 हजार 50 बच्चों ने इस बीमारी की जांच कराई थी, जिसमें 24सौ बच्चे एनीमिया से पीड़ित पाए गए हैं.

मंडला जिले में बढ़ रही कुपोषित बच्चों की संख्या
इन बच्चों का ब्लड लेबल सात से भी कम पाया गया है. चिंता की बात यह है कि अब तक सिर्फ 287 बच्चों का ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन हो सका है, जबकि स्वास्थ्य विभाग ने 822 बच्चों के ट्रांसफ्यूजन का टारगेट रखा था, इस पर बाकी बच्चों को लेकर जिला स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि उन बच्चों को अस्पताल बुलाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन किन्ही कारणों से वे नहीं आ पा रहे और इनका उपचार नहीं हो पा रहा है.


इन बच्चों की देखभाल की पहली जिम्मेदारी महिला और बाल विकास विभाग की होती है जो आंगनबाड़ी के माध्यम से इनकी हर बीमारियों की जांच की जाती हैं. इन केंद्रों के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग को बच्चों से जुड़ी हर एक जानकारी मिलती भी है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में बच्चों में खून की कमी कहीं न कहीं विभागों कि कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिन्ह लगाती है.


इस पर जिला स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि लोगों में जागरुकता कि कमी के कारण भी यह समस्या बढ़ रही है, उन्होंने विभागों की गलती मानते हुई कार्यप्रणाली व कार्यों में सुधार का आश्वासन दिया है.

Intro:मण्डला जिले का दुर्भाग्य है कि यहाँ के बच्चे लगातार एनीमिया के शिकार हो रहे लेकिन उन्हें उपचार जैसा मिलना चाहिए वो नहीं मिल पा रहा जिसका नतीजा ये है कि 21 सौ से ज्यादा एनिमिक बच्चों के मामले अब तक सामने आ चुके हैं लेकिन ब्लड ट्रान्फ्यूजन बस 278 बच्चों का हो पाया है जबकि स्वास्थ्य विभाग के द्वारा 822 बच्चों का टारगेट रखा गया था,जो यह बताता है कि इस बीमारी को विभाग कितनी गम्भीरता से ले रहा है


Body:ईटीबी भारत ने लगातार अपनी रिपोर्ट में मण्डला के 0 से 5 साल के बच्चों में फैल रहे कुपोषण और एनिमिया के मुद्दे को उठाया है और हम यह पहले ही बता चुके थे कि इसके मामले अभी और बढ़ेंगे,13 अगस्त तक के आंकड़ों की बात करें तो मण्डला जिले के 9 विकासखंड में कुल 0 से 5 साल के 94 हज़ार 50 बच्चों की जाँच की गई जिनमें से 2 हज़ार 419 बच्चे एनिमिया के शिकार हैं जिनका ब्लड लेबल 7 से कम है लेकिन यह बात चिंता की है कि अब तक सिर्फ 287 बच्चों का ही ब्लड ट्रान्फ्यूजन हो सका है बाकी के बच्चों को लेकर जिला स्वास्थ्य अधिकारी का कहना है कि इन्हें अस्पताल बुलाने की कोशिश की जा रही है लेकिन किन्ही कारणों से ये नहीं आ पा रहे और इनका उपचार नहीं हो पा रहा


Conclusion:0 से 5 साल के बच्चों की देखभाल की पहली जिम्मेदारी महिला और बाल विकास विभाग की होती है जो आंगनबाड़ी के माध्यम से इनकी हर बीमारियों की जाँच कराता है वहीं इन केंद्रों के माध्यम से स्वास्थ्य विभाग को बच्चों से जुड़ी हर एक जानकारी मिलती है लेकिन इतनी बड़ी संख्या में बच्चों में खून की कमी कहीं न कहीं दोनों ही विभाग के द्वारा चलाई जा रही योजनाओं और उनकी जागरुकता के साथ ही जमीनी स्तर के परिणामो पर प्रश्नचिन्ह लगता है।

बाईट--के सी सरौते, मुख्य जिला स्वास्थ्य अधिकारी मण्डला
बाईट--प्रशांतदीप ठाकुर,जिला महिला बाल विकास अधिकारी
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