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बसों के थमे पहियों के चलने का इंतजार, कोरोना ने किया कई परिवारों को बेहाल - नहीं चल रही यात्री बसें

सरकार ने बस चलाने की अनुमति तो दे दी है लेकिन बस संचालक अब भी बसों के संचालन को राजी नहीं हैं, क्योंकि उनकी मांगे आज भी अधूरी है.

Waiting for the wheels to stop
थमे पहियों के चलने का इंतजार
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Published : Aug 25, 2020, 3:31 PM IST

मंडला। पिछले करीब पांच महीनों से बसों के थमें पहियों के कारण इन दिनों कई परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. चाय-नाश्ते की होटल हो या फिर लॉज, ऑटो चलाकर जीवन यापन करने वाले ऑटोचालक हों या फिर बस चलाने वाले ड्राइवर और टिकिट काटने वाले कंडक्टर. बस स्टैंड पर खड़ी इन बसों के कारण सभी परेशान हैं.

थमे पहियों के चलने का इंतजार

मुसीबत में ऑटो चालक
बस संचलान से जुड़े कई व्यवसाय में ऑटोचालक भी शामिल हैं. बस स्टैंड में आने-जाने वाले यात्रियों को लोकल जाने के लिए ऑटो की जरूरत होती है लेकिन बस नहीं चलने से नैनपुर जैसे छोटे शहर के ऑटो चालकों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. ऑटोचालकों का कहना है कि दिन-दिन भर एक-एक यात्री खोजना पड़ता है. वहीं किसी-किसी दिन तो सुबह से शाम हो जाती है और बोनी तक नहीं होती है. स्कूलों का सत्र इस साल ऑनलाइन चालू हो गया है. ऐसे में किताबें जुटाने के साथ मोबाईल का खर्च भी बढ़ गया है, जबकि जो जमा पूंजी थी वो घर खर्च में खत्म हो चुकी है, ऐसे में परिवार चलाना काफी मुश्किल हो गया है.

कहां जाएं लॉज संचालक

बस स्टैंड पर यात्रियों को आसरा देने, आराम देने के लिए बनाए गए लॉज भी इन दिनों धूल का घर बन गए हैं. लॉज संचालक राकेश शर्मा बताते हैं कि बीते पांच महीने से बिजली के बिल,कर्मचारियों की तनख्वाह और अन्य खर्चों पर जरा भी कटौती नहीं हुई लेकिन यात्रियों के नहीं आने से हाथ कुछ आ ही नहीं रहा है. न तो ट्रेन चालू हैं और न ही बसें. ऐसे में लॉज की तरफ कोई फटकता भी नहीं जबकि लॉज के कमरों की साफसफाई, लॉज की देखरेख के लिए कर्मचारियों को रखना उनकी मजबूरी हैं नहीं तो लॉज का सारा सामान ही कबाड़ हो जाएगा.

बसों के चलने का इंतजार
बसों के नहीं चलने की वजह से बस स्टैंड पर व्यापार करने वाले व्यावसायियों का धंधा भी चौपट है. वहां के चाय-नाश्ते वाली दुकानें हो या फिर कोई भोजनालय सबके व्यापार यात्रियों के आने से ही फलते-फूलते थे, लेकिन अब पूरा बाजार ठंडा पड़ा हुआ है.

ये भी पढ़ें- कभी कोहरा तो कभी रिमझिम फुहार, पर्यटकों का मन मोह रहा हरियाली में लिपटा मांडू

22 मार्च के बाद से कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए किए गए लॉकडाउन ने हर जगह ताले लगा दिए हैं. लेकिन तीन महीने बाद सरकारी दिशा-निर्देश के साथ अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई. इस दौरान बसों को उनकी कैपिसिटी की आधा सवारियों के साथ चलाने की अनुमति दे दी गई थी लेकिन बस संचालकों ने इसमें घाटा लगने की बात कह कर बसों का संचालन नहीं किया. बस संचालकों की मांग आज भी अधूरी है.

बस संचालकों की मांग
बस संचालकों का कहना है कि बीते पांच महीनों से बसों के पहिये सरकार के निर्देश पर थमें थे. उन्होंने खुद बसों को खड़ा नहीं किया है. ऐसे में-

  • बीते पांच महीनों के हर तरह के टेक्स माफ किए जाएं.
  • डीजल से वेट कम कर सरकार डीजल के दाम सस्ता करें.
  • डीजल सस्ता नहीं करने पर यात्री किराए में बढ़ोतरी करें.

बस संचालकों का कहना है कि ऐसा नहीं करने से बसों को चलाने, उनके कर्मचारियों को तनख्वाह देने और टूटफूट की मरम्मत के साथ-साथ मेंटेनेंस का खर्चा निकाले बिना बसों का संचालन मुश्किल है. फिलहाल बसों को न चला पाना बस मालिकों की मजबूरी है.

बसों का संचालन न होने से यात्रियों को मुसीबत हो रही है क्योंकि हर किसी के पास खुद के साधन नहीं हैं. वहीं बस स्टैंड पर छाई वीरानी यह बताने को काफी है कि बसों के चलने से कितने परिवारों का पेट पलता है. सरकार के अपने दिशा-निर्देश और बस संचालकों की अपनी मांगे, ऐसे में बस यही कहा जा सकता है कि बसों के थमे हुए पहियों ने अब तक बहुत से लोगों के व्यवसाय में लॉक लगा रखा है.

मंडला। पिछले करीब पांच महीनों से बसों के थमें पहियों के कारण इन दिनों कई परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया है. चाय-नाश्ते की होटल हो या फिर लॉज, ऑटो चलाकर जीवन यापन करने वाले ऑटोचालक हों या फिर बस चलाने वाले ड्राइवर और टिकिट काटने वाले कंडक्टर. बस स्टैंड पर खड़ी इन बसों के कारण सभी परेशान हैं.

थमे पहियों के चलने का इंतजार

मुसीबत में ऑटो चालक
बस संचलान से जुड़े कई व्यवसाय में ऑटोचालक भी शामिल हैं. बस स्टैंड में आने-जाने वाले यात्रियों को लोकल जाने के लिए ऑटो की जरूरत होती है लेकिन बस नहीं चलने से नैनपुर जैसे छोटे शहर के ऑटो चालकों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. ऑटोचालकों का कहना है कि दिन-दिन भर एक-एक यात्री खोजना पड़ता है. वहीं किसी-किसी दिन तो सुबह से शाम हो जाती है और बोनी तक नहीं होती है. स्कूलों का सत्र इस साल ऑनलाइन चालू हो गया है. ऐसे में किताबें जुटाने के साथ मोबाईल का खर्च भी बढ़ गया है, जबकि जो जमा पूंजी थी वो घर खर्च में खत्म हो चुकी है, ऐसे में परिवार चलाना काफी मुश्किल हो गया है.

कहां जाएं लॉज संचालक

बस स्टैंड पर यात्रियों को आसरा देने, आराम देने के लिए बनाए गए लॉज भी इन दिनों धूल का घर बन गए हैं. लॉज संचालक राकेश शर्मा बताते हैं कि बीते पांच महीने से बिजली के बिल,कर्मचारियों की तनख्वाह और अन्य खर्चों पर जरा भी कटौती नहीं हुई लेकिन यात्रियों के नहीं आने से हाथ कुछ आ ही नहीं रहा है. न तो ट्रेन चालू हैं और न ही बसें. ऐसे में लॉज की तरफ कोई फटकता भी नहीं जबकि लॉज के कमरों की साफसफाई, लॉज की देखरेख के लिए कर्मचारियों को रखना उनकी मजबूरी हैं नहीं तो लॉज का सारा सामान ही कबाड़ हो जाएगा.

बसों के चलने का इंतजार
बसों के नहीं चलने की वजह से बस स्टैंड पर व्यापार करने वाले व्यावसायियों का धंधा भी चौपट है. वहां के चाय-नाश्ते वाली दुकानें हो या फिर कोई भोजनालय सबके व्यापार यात्रियों के आने से ही फलते-फूलते थे, लेकिन अब पूरा बाजार ठंडा पड़ा हुआ है.

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22 मार्च के बाद से कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए किए गए लॉकडाउन ने हर जगह ताले लगा दिए हैं. लेकिन तीन महीने बाद सरकारी दिशा-निर्देश के साथ अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हुई. इस दौरान बसों को उनकी कैपिसिटी की आधा सवारियों के साथ चलाने की अनुमति दे दी गई थी लेकिन बस संचालकों ने इसमें घाटा लगने की बात कह कर बसों का संचालन नहीं किया. बस संचालकों की मांग आज भी अधूरी है.

बस संचालकों की मांग
बस संचालकों का कहना है कि बीते पांच महीनों से बसों के पहिये सरकार के निर्देश पर थमें थे. उन्होंने खुद बसों को खड़ा नहीं किया है. ऐसे में-

  • बीते पांच महीनों के हर तरह के टेक्स माफ किए जाएं.
  • डीजल से वेट कम कर सरकार डीजल के दाम सस्ता करें.
  • डीजल सस्ता नहीं करने पर यात्री किराए में बढ़ोतरी करें.

बस संचालकों का कहना है कि ऐसा नहीं करने से बसों को चलाने, उनके कर्मचारियों को तनख्वाह देने और टूटफूट की मरम्मत के साथ-साथ मेंटेनेंस का खर्चा निकाले बिना बसों का संचालन मुश्किल है. फिलहाल बसों को न चला पाना बस मालिकों की मजबूरी है.

बसों का संचालन न होने से यात्रियों को मुसीबत हो रही है क्योंकि हर किसी के पास खुद के साधन नहीं हैं. वहीं बस स्टैंड पर छाई वीरानी यह बताने को काफी है कि बसों के चलने से कितने परिवारों का पेट पलता है. सरकार के अपने दिशा-निर्देश और बस संचालकों की अपनी मांगे, ऐसे में बस यही कहा जा सकता है कि बसों के थमे हुए पहियों ने अब तक बहुत से लोगों के व्यवसाय में लॉक लगा रखा है.

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