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अंधविश्वास से बिगड़ी 'कृष्णा' की हालत,  कुपोषण की गंभीर स्टेज तक पहुंचा मासूम

मंडला के मलहरी गांव में रहने वाले धीरज मरावी का 2 साल का बच्चा कृष्णा अतिकुपोषण का शिकार है. कृष्णा कुपोषण की गंभीर स्टेज बैगी पेंट तक पहुंच गया है. परिजनों ने कृष्णा का इलाज डॉक्टर से कराने की बजाए झाड़-फूंक पर भरोसा जताया, जिसके उसकी स्थिति और भी बिगड़ गई.

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Published : Jan 23, 2020, 4:48 PM IST

Malnutrition
कुपोषण

मंडला। मध्यप्रदेश आज भी कुपोषण का दंश झेल रहा है. मंडला जिले में भी कुपोषण की स्थिति काफी गंभीर है, जिले के निवास विकासखंड के मलहरी गांव में रहने वाले धीरज मरावी के 2 साल के बच्चे कृष्णा की हालत देखकर समझा जा सकता कि वो कुपोषण के किस स्टेज तक पहुंच गया है.

कुपोषण से लड़ रहा 'कृष्णा' का बचपन

कृष्णा के परिजनों ने उसका इलाज पहले एनआरसी में कराया, बच्चा स्वस्थ्य भी हो गया. लेकिन बच्चा जब दोबारा कुपोषण का शिकार हुआ, तो माता-पिता ने डॉक्टर से ज्यादा भरोसा झाड़-फूंक करने वालों पर जताया. परिजनों को लगा कि, बच्चे को झाड़-फूंक से आराम मिल रहा है. दो साल का मासूम इस वक्त अंधविश्वास की वजह से बुरी तरह कुपोषित हो चुका है. जिसका बजन करीब 14 किलो होना था वो अभी सिर्फ 6 किलो का है.

Krishna's investigation in NRC center
कृष्णा की एनआरसी केंद्र में जांच

परिजनों की लापरवाही ने बच्चे को कुपोषण की खतरनाक स्टेज बैगी पेंट पर पहुंचा दिया, इस स्टेज के जिले में पिछले 5 सालों में 4 हजार बच्चों के इलाज के दौरान एक या दो ही मामले सामने आए हैं. इस स्टेज में शरीर की चमड़ी बुजुर्गों के जैसे सिकुड़ने और लटकने लगती है. वहीं बच्चे के हिप्स भी सिकुड़ गए हैं, जिसके कारण है बच्चे के शरीर में पूरी तरह से प्रोटीन का खत्म हो जाना है. हालत यह है कि कृष्णा खुद से करवट भी नहीं बदल पाता.

Krishna with mother
मां के साथ कृष्णा

जो स्थिति कृष्णा की है, कुपोषण को लेकर कुछ ऐसी ही स्थिति पूरे मंडला जिले की है. मंडला में कुल 2304 आंगनबाड़ी हैं, जिनमें 4608 कार्यकर्ता और सहायिकाएं काम करती हैं. जिनकी निगरानी के लिए 78 सुपरवाइजर और 9 ब्लॉक में 9 परियोजना अधिकारी हैं.

इन पर जिम्मेदारी है कि वो 0 से 5 साल के बच्चों को पूरक पोषण आहार खिलाएं. साथ ही उनके स्वास्थ्य की भी नियमित जांच कराई जाए और बीमारियों को लेकर ग्रामीणों को जागरूक करें. इतने बड़े अमले के बाद भी मंडला जिले में 17 प्रतिशत बच्चे कुपोषित,1 प्रतिशत बच्चे अतिकुपोषण का शिकार हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग कुपोषण जैसी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए अंधविश्वास का सहारा लेते हैं. गांवों में आज भी अंधविश्वास खत्म नहीं होने के पीछे इन सरकारी योजनाओं की विफलता ही है, जो लाखों रूपये खर्च कर कुपोषण के खिलाफ जागरूकता फैलाने का दावा करती हैं.

मंडला। मध्यप्रदेश आज भी कुपोषण का दंश झेल रहा है. मंडला जिले में भी कुपोषण की स्थिति काफी गंभीर है, जिले के निवास विकासखंड के मलहरी गांव में रहने वाले धीरज मरावी के 2 साल के बच्चे कृष्णा की हालत देखकर समझा जा सकता कि वो कुपोषण के किस स्टेज तक पहुंच गया है.

कुपोषण से लड़ रहा 'कृष्णा' का बचपन

कृष्णा के परिजनों ने उसका इलाज पहले एनआरसी में कराया, बच्चा स्वस्थ्य भी हो गया. लेकिन बच्चा जब दोबारा कुपोषण का शिकार हुआ, तो माता-पिता ने डॉक्टर से ज्यादा भरोसा झाड़-फूंक करने वालों पर जताया. परिजनों को लगा कि, बच्चे को झाड़-फूंक से आराम मिल रहा है. दो साल का मासूम इस वक्त अंधविश्वास की वजह से बुरी तरह कुपोषित हो चुका है. जिसका बजन करीब 14 किलो होना था वो अभी सिर्फ 6 किलो का है.

Krishna's investigation in NRC center
कृष्णा की एनआरसी केंद्र में जांच

परिजनों की लापरवाही ने बच्चे को कुपोषण की खतरनाक स्टेज बैगी पेंट पर पहुंचा दिया, इस स्टेज के जिले में पिछले 5 सालों में 4 हजार बच्चों के इलाज के दौरान एक या दो ही मामले सामने आए हैं. इस स्टेज में शरीर की चमड़ी बुजुर्गों के जैसे सिकुड़ने और लटकने लगती है. वहीं बच्चे के हिप्स भी सिकुड़ गए हैं, जिसके कारण है बच्चे के शरीर में पूरी तरह से प्रोटीन का खत्म हो जाना है. हालत यह है कि कृष्णा खुद से करवट भी नहीं बदल पाता.

Krishna with mother
मां के साथ कृष्णा

जो स्थिति कृष्णा की है, कुपोषण को लेकर कुछ ऐसी ही स्थिति पूरे मंडला जिले की है. मंडला में कुल 2304 आंगनबाड़ी हैं, जिनमें 4608 कार्यकर्ता और सहायिकाएं काम करती हैं. जिनकी निगरानी के लिए 78 सुपरवाइजर और 9 ब्लॉक में 9 परियोजना अधिकारी हैं.

इन पर जिम्मेदारी है कि वो 0 से 5 साल के बच्चों को पूरक पोषण आहार खिलाएं. साथ ही उनके स्वास्थ्य की भी नियमित जांच कराई जाए और बीमारियों को लेकर ग्रामीणों को जागरूक करें. इतने बड़े अमले के बाद भी मंडला जिले में 17 प्रतिशत बच्चे कुपोषित,1 प्रतिशत बच्चे अतिकुपोषण का शिकार हैं.

ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग कुपोषण जैसी गंभीर बीमारी के इलाज के लिए अंधविश्वास का सहारा लेते हैं. गांवों में आज भी अंधविश्वास खत्म नहीं होने के पीछे इन सरकारी योजनाओं की विफलता ही है, जो लाखों रूपये खर्च कर कुपोषण के खिलाफ जागरूकता फैलाने का दावा करती हैं.

Intro:मण्डला में 2 साल का बच्चा कुपोषण की उस स्टेज तक पहुँच गया है जो हज़ारों बच्चों में 1 या 2 बच्चों में ही देखा जाता है,कारण की यदी बात करें तो उंगली सीधे तौर पर शासन प्रशासन की उन योजनाओं पर उठती है जो जागरूकता और योजनाओं के संचालन के दावे तो करती है लेकिन इस पर आज भी अंधविश्वास और झाड़ फूँक ही हाबी है


Body:दारू,पानी,मुर्गी,छेवाला और गूलर के पेड़ की पूजा ये उपचार है उस बीमारी का जो हज़ारों बच्चों में से किसी एक को होती है साथ ही इस अंधविश्वास की पराकाष्ठा ने 2 साल के मासूम को उस इस्थित में पहुंचा दिया जो कुपोषण अक्सर किताबों में देखा या पढा जाता है,मण्डला जिले के निवास विकासखंड के मलहरी गाँव मे रहने वाला बच्चा कुपोषण का शिकार हुआ उसे एनआरसी लाया गया जहाँ उसे आराम भी मिला लेकिन इसके बाद जो हुआ उसने बच्चे को कुपोषण की उस खतरनाक स्टेज पर पहुंचा दिया जो 5 सालों में 4 हज़ार बच्चों के इलाज के दौरान एक या दो ही देखने को मिले,इस स्टेज को बैगी पेंट कहा जाता है जिसमें शरीर की चमड़ी बुजुर्गों के जैसे सिकुड़ने और लटकने लगती है वहीं इस बच्चे के हिप्स भी सिकुड़ गए हैं,जिसका कारण है बच्चे के शरीर से पूरी तरह से प्रोटीन का चला जाना ,इस बच्चे के पालकों ने बच्चे का इलाज पहले एनआरसी में कराया बच्चा दुरस्त भी हुआ उसके चारों फॉलोअप भी हुए लेकिन दोबारा जब वह कुपोषण का शिकार हुआ तो बच्चे के माता पिता को डॉक्टर से ज्यादा भरोसा हुआ झाड़ फूँक वाले पंडे पुजारी पर पिता जहाँ आधा दर्जन मुर्गी,शराब और दूसरी चीजों से बच्चे का ईलाज कराने पंडे के पास पहुँचा तो माँ गूलर और छेवाला के झाड़ के बीच से बच्चे की बुआ के साथ टोना टोटका कर छटी का उतारा करती रही जिनका सोचना था कि बच्चे को आराम लग रहा है लेकिन दो साल का मासूम इस अंधविश्वास के फेर में काफी नाजुक हो गया जिसका बजन करीब 14 किलो होना था वो सिर्फ 6 किलो का है,इस अंधविश्वास का कारण उन्हें ठहराया जा सकता है जो लाखों रूपये खर्च कर कुपोषण के खिलाफ जागरूकता की बात तो करते हैं लेकिन इस तरह के मामले उन दावों की हवा निकाल देते हैं जो कहते हैं कि कुपोषण कम हो रहा है,सरकारी योजनाओं के साथ ही महिला एवं बाल विकास विभाग की योजनाओं का लाभ दूर दराज के ग्रामीण इलाकों तक पहुँच रहा है।


Conclusion:मण्डला जिले में कुल 2304 आंगनवाड़ी हैं जिनमे 4608 कार्यकर्ता और सहायिकाएं काम करती हैं जिनकी निगरानी के लिए 78 सुपरवाइजर और 9 ब्लॉक में 9 परियोजना अधिकारी हैं इन पर जिम्मेदारी है 0 से 5 साल के बच्चों को पूरक पोषण आहार खिलाएं साथ ही उनके स्वास्थ्य की भी नियमित जाँच कराई जाए और बीमारियों को लेकर ग्रामीणों को जागरूक करें इतने बड़े अमले के बाद भी मण्डला जिले में कुपोषण 17 प्रतिशत है जो की लगातार लाखों रुपये खर्च कर चलाई जा रही सरकारी योजनाओं और जागरूकता अभियान की जमीनी हकीकत को समझाने के लिए काफी है।मण्डला जिले में आंगनबाड़ी में कुल बजन किए 85215 बच्चों में कम वजन (कुपोषित) वाले बच्चों की संख्या 14489 है जबकि अतिकम बजन (अतिकुपोषित) वाले बच्चों की संख्या 1170 है जो कि जिले के लिहाज से बड़ी चिंता का विषय हैं क्योंकि कुपोषण का शिकार 100 में से 17 बच्चे हैं जबकि 1 बच्चा अतिकुपोषित है ऐसे में समझा जा सकता है कि जागरूकता अभियान या फिर सरकारी योजनाओं का जमीनी स्तर पर ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो पा रहा।

फैक्ट फाइल--(आँकड़े 2019 के हैं)

जिले में कुल बच्चे--85215 (0-5 साल)
कुल कुपोषित बच्चे--14489
अति कुपोषित बच्चे--1170
कुपोषण का प्रतिशत--17%
अतिकुपोषित बच्चों का प्रतिशत--1%

बाईट--रश्मि वर्मा, एनआरसी
बाईट--धीरज मरावी,बच्चे का पिता
बाईट--कलाबाई,बच्चे की माता
बाईट--सुशीला पाल,सुपरवाइजर आईसीडीएस

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