मंडला। लोग गांव से शहर की तरफ इस वजह से भागते हैं कि उन्हें लगता है कि शहर में सारी भौतिक सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हो जाएंगी, लेकिन प्रकृति प्रेमी एक व्यक्ति ऐसा भी है, जिनका जन्म हुआ तो शहर में, पर समाज को कुछ देने की ललक उसे गांव की तरफ खींच ले गई.
रील नहीं रीयल लाइफ के ये हैं दिलीप कुमार, जो मुफ्त में संवार रहे आज, संजो रहे 'कल'
प्रकृति के लिए मन में प्रेम और समाज के लिए कुछ करने की चाह दिलीप कुमार केमतानी को गांव खींच लाई है. वे बनियातारा गांव की प्रथमिक शाला में अतिथि शिक्षक के रुप में बच्चों को शिक्षित करते हैं.
शिक्षक जो मुफ्त में संवार रहे आज, संजो रहे 'कल'
मंडला। लोग गांव से शहर की तरफ इस वजह से भागते हैं कि उन्हें लगता है कि शहर में सारी भौतिक सुविधाएं आसानी से उपलब्ध हो जाएंगी, लेकिन प्रकृति प्रेमी एक व्यक्ति ऐसा भी है, जिनका जन्म हुआ तो शहर में, पर समाज को कुछ देने की ललक उसे गांव की तरफ खींच ले गई.
Intro:लोग गाँव से शहर की तरफ भागते हैं जिसके पीछे सभी की सोच होती है कि यहाँ वे तमाम भौतिक शुविधाएँ उपलब्ध हैं जो गाँवो में नहीं लेकिन एक इन्शान ऐसा भी है जिसका जन्म जबलपुर जैसे शहर में हुआ लेकिन उसके प्रकृति प्रेम के साथ ही समाज को कुछ देने की ललक ने उसे ऐसे गाँव खींच लाया जिसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता।
Body:मण्डला जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर ग्राम सालीवाड़ा के प्रथमिक शाला में एक अतिथि शिक्षक हैं दिलीप कुमार केमतानी जो यहाँ जो यहां लगभग 17 साल से बच्चों को पढा रहे हैं और ये ऐसे शिक्षक हैं जो सही मायने में गुरु कहलाने के लायक हैं,सन 2000 में जबलपुर जैसे शहर में जन्मे और यहाँ डेरी का बिजनेस करने वाले दिलीप बहुत से शिक्षण संस्थानों में अध्यापन का कार्य कर चुके हैं जो कभी भी गाँव मे नहीं रहना चाहते थे लेकिन 40 साल की उम्र पार करते हैं उनके प्रकृति के प्रेम और समाज के लिए कुछ करने की स्वप्रेरणा ने उन्हें बनियातारा जैसे छोटे गाँव पहुँचा दिया जो जंगल के करीब है,अविहित रहने का फैसला कर चुके,यहाँ दिलीप पेड़ पौधे लगाते,पर्यावरण को बचाने के लिए लोगों को जागरूक करते 2 साल बीता दिए इसी समय सालीवाड़ा में माध्यमिक स्कूल खुला लेकिन यहाँ शिक्षक पूरे नहीं थे तो प्रधानाध्यापक और ग्रामीणों ने दिलीप से आग्रह किया स्कूल में पढ़ाने को और वे शहर्ष तैयार भी हो गए,और लगातार 9 साल तक बिना पारिश्रमिक बच्चों को इंग्लिश और सामाजिक विज्ञान पढ़ाते रहे,जिसके बाद स्कूलों में अतिथि शिक्षकों की व्यवस्था हुई तो उन्हें वेतन भी मिलने लगा लेकिन इस वेतन को भी दिलीप स्कूली बच्चों को दर्शनीय स्थलों में घुमाने में तो लोगों की मदद में खर्च कर देते हैं इस कारण दिलीप को यहाँ नया नाम मिला बाबूजी,आज बाबूजी को यही वो स्नेह मिल रहा कि अगर वे कहीं बाहर जाने का इरादा करें भी तो नहीं जा पाते,पर्यावरण प्रदूषण को रोकने का संदेह देने वाले दिलीप ने हज़ारों किलोमीटर का सफर साईकिल से पूरा किया है,उत्तराखंड उत्तरप्रदेश जम्मू या दर्जनों भर प्रदेशो तक वे यह संदेश दे चुके हैं और आगे फिर उनका यही इरादा है।
Conclusion:स्कूल के प्रधानाध्यापक भी बाबूजी की तारीफ करते हुए कहते हैं कि ऐसे शिक्षक आज के समय मे मिलना मुश्किल है जो तन मन के साथ ही धन भी शिक्षा के लिए दान कर देते हैं,वहीं बाबूजी का कहना है कि सभी शिक्षकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जो काम भगवान ने उन्हें सौंपा है उसे ईमानदारी से करें जिस से समाज मे उनका ओहदा बना रहे
बाईट--भजन सिंह मरावी
प्रधानाध्यापक, सालीवाड़ा
1-2-1 दिलीप कुमार केमतानी
Body:मण्डला जिला मुख्यालय से करीब 40 किलोमीटर दूर ग्राम सालीवाड़ा के प्रथमिक शाला में एक अतिथि शिक्षक हैं दिलीप कुमार केमतानी जो यहाँ जो यहां लगभग 17 साल से बच्चों को पढा रहे हैं और ये ऐसे शिक्षक हैं जो सही मायने में गुरु कहलाने के लायक हैं,सन 2000 में जबलपुर जैसे शहर में जन्मे और यहाँ डेरी का बिजनेस करने वाले दिलीप बहुत से शिक्षण संस्थानों में अध्यापन का कार्य कर चुके हैं जो कभी भी गाँव मे नहीं रहना चाहते थे लेकिन 40 साल की उम्र पार करते हैं उनके प्रकृति के प्रेम और समाज के लिए कुछ करने की स्वप्रेरणा ने उन्हें बनियातारा जैसे छोटे गाँव पहुँचा दिया जो जंगल के करीब है,अविहित रहने का फैसला कर चुके,यहाँ दिलीप पेड़ पौधे लगाते,पर्यावरण को बचाने के लिए लोगों को जागरूक करते 2 साल बीता दिए इसी समय सालीवाड़ा में माध्यमिक स्कूल खुला लेकिन यहाँ शिक्षक पूरे नहीं थे तो प्रधानाध्यापक और ग्रामीणों ने दिलीप से आग्रह किया स्कूल में पढ़ाने को और वे शहर्ष तैयार भी हो गए,और लगातार 9 साल तक बिना पारिश्रमिक बच्चों को इंग्लिश और सामाजिक विज्ञान पढ़ाते रहे,जिसके बाद स्कूलों में अतिथि शिक्षकों की व्यवस्था हुई तो उन्हें वेतन भी मिलने लगा लेकिन इस वेतन को भी दिलीप स्कूली बच्चों को दर्शनीय स्थलों में घुमाने में तो लोगों की मदद में खर्च कर देते हैं इस कारण दिलीप को यहाँ नया नाम मिला बाबूजी,आज बाबूजी को यही वो स्नेह मिल रहा कि अगर वे कहीं बाहर जाने का इरादा करें भी तो नहीं जा पाते,पर्यावरण प्रदूषण को रोकने का संदेह देने वाले दिलीप ने हज़ारों किलोमीटर का सफर साईकिल से पूरा किया है,उत्तराखंड उत्तरप्रदेश जम्मू या दर्जनों भर प्रदेशो तक वे यह संदेश दे चुके हैं और आगे फिर उनका यही इरादा है।
Conclusion:स्कूल के प्रधानाध्यापक भी बाबूजी की तारीफ करते हुए कहते हैं कि ऐसे शिक्षक आज के समय मे मिलना मुश्किल है जो तन मन के साथ ही धन भी शिक्षा के लिए दान कर देते हैं,वहीं बाबूजी का कहना है कि सभी शिक्षकों को यह ध्यान रखना चाहिए कि जो काम भगवान ने उन्हें सौंपा है उसे ईमानदारी से करें जिस से समाज मे उनका ओहदा बना रहे
बाईट--भजन सिंह मरावी
प्रधानाध्यापक, सालीवाड़ा
1-2-1 दिलीप कुमार केमतानी