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जबलपुर हाईकोर्ट का मृत्युपूर्व बयान पर बड़ा फैसला, निरस्त की आजीवन कारावास की सजा - JABALPUR HIGH COURT DECISION

मृत्युपूर्व बयान विश्वसनीय तो मिलना चाहिए दंड. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला. बयानों की विश्वसनीयता की जांच जरूरी.

jabalpur high court on dying declaration
हाईकोर्ट ने निरस्त की आजीवन कारावास की सजा (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 27, 2024, 4:37 PM IST

Updated : Nov 27, 2024, 5:39 PM IST

जबलपुर: मृत्युपूर्व बयान के आधार पर निचली अदालत के सजा सुनाने के एक मामले में हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि मृत्युपूर्व बयान की विश्वसनीयता की जांच करने के बाद ही आरोपी को सजा से दंडित किया जाना चाहिये. हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस देव नारायण मिश्रा ने एक ऐसे ही मामले में आजीवन कारावास की सजा को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा है कि मृत्युपूर्व बयान घटना से नहीं मिलते थे. मृत्युपूर्व बयान के अलावा अपीलकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं थे.

महिला ने दिया था मृत्युपूर्व बयान

हरदा निवासी बंटी सिंह की तरफ से दायर की गई अपील में कहा गया कि उसके चचेरे भाई की पत्नी जुलाई 2012 में गंभीर रूप से जल गई थी और उपचार के दौरान एक माह बाद उसकी मौत हो गई थी. मौत से पहले चचेरे भाई की पत्नी ने बयान में कहा था कि "बंटी रात को उसके कमरे में आया और पति के सामने कहने लगा कि वह उससे प्यार करता है. इसके बाद बंटी रसोई में रखा केरोसिन लाया और उस पर डालकर आग लगा दी. पति ने इस बात का कोई विरोध नहीं किया. गंभीर रूप से जलने के बावजूद उसने बाथरूम में जाकर आग बुझाई और कपड़े बदले थे. पड़ोसियों के दबाव में पति ने उसे उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया."

हत्या और दहेज प्रताड़ना का दर्ज किया था मामला

अपीलकर्ता की तरफ से कहा गया कि वह अलग रहता था. उसके चचेरे भाई का कमरा उसके मकान की दूसरी मंजिल पर था. दूसरी मंजिल में बिना कृत्रिम साधन या सीढ़ी के बिना नहीं चढ़ सकते है. जांच में रसोई के अंदर केरोसिन नहीं मिला था. पुलिस ने अपीलकर्ता सहित मृतिका के पति और ससुराल वालों के खिलाफ हत्या और दहेज प्रताड़ना का प्रकरण दर्ज किया था. कोर्ट ने अन्य आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए अपीलकर्ता को मृत्युपूर्व बयान के आधार पर सुनाई गई सजा को निरस्त कर दिया है.

जिला कोर्ट की सजा हाईकोर्ट ने की निरस्त

हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस देव नारायण मिश्रा की युगलपीठ ने पाया कि "बेटी के जलने की जानकारी मिलने पर माता-पिता अस्पताल पहुंचे थे. उनकी तरफ से पुलिस में किसी प्रकार की रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई गई. इसके अलावा मृतिका के माता-पिता तथा पड़ोसियों ने इस बात की पुष्टि नहीं की है कि ससुराल पक्ष के लोग दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे. उनका कहना था कि परिवार खुशी के साथ रहता था और लड़ाई-झगड़ा भी नहीं होता था. इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पति और ससुराल पक्ष को लोगों को बचाने के लिए महिला ने मनगढ़ंत कहानी गढ़ी हो. मृत्युपूर्व बयान के अलावा अपीलकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है. युगलपीठ ने सुनवाई के बाद जिला न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को निरस्त करते हुए अपीलकर्ता को दोषमुक्त कर दिया."

जबलपुर: मृत्युपूर्व बयान के आधार पर निचली अदालत के सजा सुनाने के एक मामले में हाईकोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. हाईकोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि मृत्युपूर्व बयान की विश्वसनीयता की जांच करने के बाद ही आरोपी को सजा से दंडित किया जाना चाहिये. हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस देव नारायण मिश्रा ने एक ऐसे ही मामले में आजीवन कारावास की सजा को निरस्त करते हुए अपने आदेश में कहा है कि मृत्युपूर्व बयान घटना से नहीं मिलते थे. मृत्युपूर्व बयान के अलावा अपीलकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं थे.

महिला ने दिया था मृत्युपूर्व बयान

हरदा निवासी बंटी सिंह की तरफ से दायर की गई अपील में कहा गया कि उसके चचेरे भाई की पत्नी जुलाई 2012 में गंभीर रूप से जल गई थी और उपचार के दौरान एक माह बाद उसकी मौत हो गई थी. मौत से पहले चचेरे भाई की पत्नी ने बयान में कहा था कि "बंटी रात को उसके कमरे में आया और पति के सामने कहने लगा कि वह उससे प्यार करता है. इसके बाद बंटी रसोई में रखा केरोसिन लाया और उस पर डालकर आग लगा दी. पति ने इस बात का कोई विरोध नहीं किया. गंभीर रूप से जलने के बावजूद उसने बाथरूम में जाकर आग बुझाई और कपड़े बदले थे. पड़ोसियों के दबाव में पति ने उसे उपचार के लिए अस्पताल में भर्ती करवाया."

हत्या और दहेज प्रताड़ना का दर्ज किया था मामला

अपीलकर्ता की तरफ से कहा गया कि वह अलग रहता था. उसके चचेरे भाई का कमरा उसके मकान की दूसरी मंजिल पर था. दूसरी मंजिल में बिना कृत्रिम साधन या सीढ़ी के बिना नहीं चढ़ सकते है. जांच में रसोई के अंदर केरोसिन नहीं मिला था. पुलिस ने अपीलकर्ता सहित मृतिका के पति और ससुराल वालों के खिलाफ हत्या और दहेज प्रताड़ना का प्रकरण दर्ज किया था. कोर्ट ने अन्य आरोपियों को दोषमुक्त करते हुए अपीलकर्ता को मृत्युपूर्व बयान के आधार पर सुनाई गई सजा को निरस्त कर दिया है.

जिला कोर्ट की सजा हाईकोर्ट ने की निरस्त

हाईकोर्ट जस्टिस विवेक अग्रवाल तथा जस्टिस देव नारायण मिश्रा की युगलपीठ ने पाया कि "बेटी के जलने की जानकारी मिलने पर माता-पिता अस्पताल पहुंचे थे. उनकी तरफ से पुलिस में किसी प्रकार की रिपोर्ट दर्ज नहीं करवाई गई. इसके अलावा मृतिका के माता-पिता तथा पड़ोसियों ने इस बात की पुष्टि नहीं की है कि ससुराल पक्ष के लोग दहेज के लिए प्रताड़ित करते थे. उनका कहना था कि परिवार खुशी के साथ रहता था और लड़ाई-झगड़ा भी नहीं होता था. इस बात की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है कि पति और ससुराल पक्ष को लोगों को बचाने के लिए महिला ने मनगढ़ंत कहानी गढ़ी हो. मृत्युपूर्व बयान के अलावा अपीलकर्ता के खिलाफ कोई साक्ष्य नहीं है. युगलपीठ ने सुनवाई के बाद जिला न्यायालय द्वारा सुनाई गई सजा को निरस्त करते हुए अपीलकर्ता को दोषमुक्त कर दिया."

Last Updated : Nov 27, 2024, 5:39 PM IST
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