मंडला। प्रदेश में कोरोना संक्रमण के बढ़ते प्रकोप के चलते बस सेवाएं पिछले छह महीनों से ठप हैं. प्रदेश सरकार ने गाइडलाइन के साथ बसों के संचालन की अनुमति दे दी है, इसके बाद भी अब तक मंडला जिले में बसों का संचालन नहीं हो पा रहा है. इस संबंध में बस संचालकों की अपनी कुछ मांगे है, जिन्हें सरकार ने केवल मौखिक रुप से माने जाने का आश्वासन दिया है, ऐसे में बस मालिकों का कहना है कि उन्हें लिखित में आश्वासन चाहिए, जिसके चलते अब तक बसों का संचालन नहीं हो पा रहा है. वहीं दूसरी तरफ बसों के संचालन नहीं होने से आम लोगों को अब भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.
आम लोगों को हो रही परेशानी
मंडला जिले के नैनपुर कॉलेज में दूर-दूर से छात्र पढ़ने आते है, जो इस समय फार्म भरने, एडमिशन फार्म और डॉक्यूमेंट्स का वेरिफिकेशन कराने या दूसरे काम से कॉलेज आ रहे है. छात्रों का कहना है कि अगर बस चलती तो सुविधा मिल जाती, साथ ही किराया कम लगता. बीते सत्र में ये सभी बसों से आते जाते थे, जिनका बहुत कम किराए में आवागमन हो जाता था, लेकिन इस सत्र में उन्हें हर छोटे मोटे काम के लिए अपनी बाइक या फिर किसी दूसरे साधन से आना जाना पड़ रहा है. जिससे उनपर अतिरिक्त आर्थिक बोझ बढ़ रहा है.
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पहले बसों का किराया जहां 10 रुपए लगता था, अब वहां से आने जाने में बाइक में 150 रुपए का पेट्रोल खर्च हो रहा है. ऐसे में उनका कहना है कि जल्द ही बसों का संचालन हो, जिससे उन्हें आने जाने में सहूलियत के साथ खर्च भी कम पड़ेगा.
क्यों नहीं चल रही बसें
बस संचालकों का कहना है कि मोटर मालिक एशोसिएशन और सरकार के बीच 5 माह के टैक्स में छूट, के-फार्म में पूरी तरह से शिथिलता, किराए में बढोत्तरी और डीजल के दाम कम किए जाने के संबंध में बात चल रही थी. जिसके बाद कुछ मांगों पर मौखिक रूप से सरकार ने आश्वासन दिया था. इसके बाद उन्हें अब तक कोई लिखित आदेश नहीं मिला है. ऐसे में बसों का संचालन करना घाटे का सौदा है.
K-फार्म को अनलिमिटेड करने की मांग
के-फार्म को लेकर बस संचालकों की मांग है कि इसे अनलिमिटेड किया जाए, क्योंकि हर साल बसों का इंश्योरेंस कराना होता है, साथ ही छोटी बस का सालाना 35 हजार के लगभग और बड़ी बसों का 50 से 55 हजार के करीब किस्त भरनी पड़ती है. ऐसे में जिन बसों का लॉक डाउन के दौरान इंश्योरेंस खत्म हो चुका हैं, उन्हें रिन्यू करवाना जरूरी है. वहीं इस साल बस संचालकों की कमाई बिल्कुल नहीं हुई है, ऐसे में उनके पास इंश्योरेंस और किस्त भरने के लिए पैसे नहीं है.
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जिन बस संचालकों के पास ज्यादा बसें है उनके ऊपर ये बड़ा बोझ होगा, अगर के-फार्म की सीमा अनलिमिटेड कर दिया जाता है तो वे फार्म भरकर अपनी बसें बिना टैक्स के खड़े कर सकते है, साथ ही कमाई के हिसाब से इंश्योरेंस करवा सकते है.
बस संचालकों की अपनी मांगें और अपनी शर्ते हैं, तो वहीं सरकार के अपने पक्ष, लेकिन बसों के ना चलने से लोगों को अब समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. इस पर एक बार फिर विचार जरूर किया जाना चाहिए.