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अनोखा है मंडला जिले का ये मंदिर, लोहे के जरिए की जगह किया गया है बांसों का इस्तेमाल

मंडला जिले के पौड़ी गांव का राधेकृष्ण का मंदिर अपने आप में अनोखा है, इस मंदिर के निर्माण के लिए ग्रामीणों ने लोहे के सरिया की जगह बांस का उपयोग किया गया है. साथ ही मंदिर निर्माण की सारी सामग्री और मंदिर का निर्माण ग्रामीणों ने खुद किया है.

लोहे के सरिये की जगह बांस से बना मंदिर
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Published : Oct 28, 2019, 11:30 PM IST

Updated : Oct 28, 2019, 11:57 PM IST

मंडला। जिले की नैनपुर तहसील से करीब 10 किलोमीटर दूर पौड़ी गांव में दीपावली के समय राधेकृष्ण के मंदिर में हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ये मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है, इसे बनाने की तकनीक भी ऐसी है, जो कहीं और देखने को नहीं मिलती.

लोहे के सरिये की जगह बांस से बना मंदिर
बता दें कि मंदिर बनाने में लोहे के सरिए की जगह बांस का उपयोग किया गया है. मंदिर बनाने के लिए गांव वालों ने मजदूरों को भी नहीं लगाया, बल्कि दो सप्ताह की शिफ्ट बनाकर खुद ही श्रमदान किया. मंदिर निर्माण सामग्री भी ग्रामीणों ने खुद ही जुटाई है. जो बांस ग्रामीणों ने मंदिर बनाने के लिए उपयोग किए है, उन्हें वो 100 साल पुराने मकान से मिले थे. बीम और छत बनाने के लिए कम पड़े बांसों का इंतजाम भी ग्रामीणों ने खुद ही किया है.बताया जाता है कि पौड़ी गांव में ऐसा कोई स्थान या मंदिर नहीं था, जहां लोग एक साथ पूजा-पाठ या कोई कार्यक्रम का आयोजन कर सकें. 2007 में दिल्ली के रहने वाले एक पुजारी यहां आकर रुके थे, जिन्होंने ग्रामीणों की समस्या का एक ऐसा उपाय बताया, कम लागत में एक भव्य मंदिर का निर्माण हो गया, जिसकी ख्याती दूर-दूर तक फैल रही है.

मंडला। जिले की नैनपुर तहसील से करीब 10 किलोमीटर दूर पौड़ी गांव में दीपावली के समय राधेकृष्ण के मंदिर में हजारों की संख्या में भक्तों की भीड़ उमड़ती है. ये मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र है, इसे बनाने की तकनीक भी ऐसी है, जो कहीं और देखने को नहीं मिलती.

लोहे के सरिये की जगह बांस से बना मंदिर
बता दें कि मंदिर बनाने में लोहे के सरिए की जगह बांस का उपयोग किया गया है. मंदिर बनाने के लिए गांव वालों ने मजदूरों को भी नहीं लगाया, बल्कि दो सप्ताह की शिफ्ट बनाकर खुद ही श्रमदान किया. मंदिर निर्माण सामग्री भी ग्रामीणों ने खुद ही जुटाई है. जो बांस ग्रामीणों ने मंदिर बनाने के लिए उपयोग किए है, उन्हें वो 100 साल पुराने मकान से मिले थे. बीम और छत बनाने के लिए कम पड़े बांसों का इंतजाम भी ग्रामीणों ने खुद ही किया है.बताया जाता है कि पौड़ी गांव में ऐसा कोई स्थान या मंदिर नहीं था, जहां लोग एक साथ पूजा-पाठ या कोई कार्यक्रम का आयोजन कर सकें. 2007 में दिल्ली के रहने वाले एक पुजारी यहां आकर रुके थे, जिन्होंने ग्रामीणों की समस्या का एक ऐसा उपाय बताया, कम लागत में एक भव्य मंदिर का निर्माण हो गया, जिसकी ख्याती दूर-दूर तक फैल रही है.
Intro:मण्डला जिले की नैनपुर तहसील मुख्यालय से करीब 10 किलोमीटर दूर पौड़ी ग्राम में दीवाली के समय राधेकृष्ण के मंदिर में हजारों की संख्या में भीड़ उमड़ती है,यह मंदिर जहाँ धार्मिक आस्था का केंद्र है वहीं इसे बनाने की तकनीक भी ऐसी जो कहीं और नहीं मिलती,इसे बनाने में लोहे की सरिया की जगह बाँस का उपयोग किया गया है,ग्रामीणों के अनुसार इसको बनाने के लिए ग्रामीणों ने मजदूरों को भी नही लगाया बलिक एक दो सप्ताह की शिफ्ट बना कर खुद ही मजदूरी है वहीं इसमें निर्माण सामग्री भी ग्रामीणों ने खुद ही जुटाई और शुरू हुआ मंदिर का काम,लोगों के अनुसार देखने वाले उस समय आश्चर्य जताते थे जब बीम या कालम में लोहे के सरिये के स्थान पर बाँस का प्रयोग किया जा रहा था जो ग्रामीणों को इस स्थान पर पुराने मकान से मिले थे जो करीब 100 साल पुराने थे वहीं कम कालम,बीम औऱ छत बनाने के लिए कम पड़ने वाले बाँस ग्रामीणों ने खुद जुटाए।


Body:मण्डला जिले की नैनपुर तहसील के करीब ग्राम पौड़ी ग्राम में ऐसा कोई स्थान या मंदिर नहीं था जहाँ लोग एक साथ पूजा पाठ या कार्यक्रम का आयोजन कर सकें वहीं इनकी आर्थिक इस्थिति भी ऐसी न थी कि मंदिर का निर्माण करा सकें,बात सन 2007 की तब यहाँ दिल्ली में रहने वाले कोई पुजारी आकर रुके जिन्होंने ग्रामीणों की समस्या का ऐसा उपाय बताया कि बहुत कम लागत में एक विशाल मंदिर का निर्माण हो गया और आज इस मंदिर की ख्याति दूर दूर तक फैल रही है।


Conclusion:कहते हैं आवश्यकता अविष्कार की जननी है और जब इसमें आस्था का रंग मिल जाए तो फिर विकल्प भी अपने आप निकल आते हैं पौड़ी ग्राम का ये मंदिर है उदाहरण है इस बात का की अगर बार किसी अच्छे कार्य का निर्णय ले लिया जाए तो रास्ते अपने आप बनते जाते हैं वरना लोहे की जगह कॉलम,बीम और सीमेंट के छत का निर्माण कल्पना से परे ही लगता है।

बाईट--सुभाष कछवाहा, मंदिर निर्माण सहयोगी
बाईट--भूरा लाल कछवाहा, मंदिर सेवादार निर्माण सहयोगी
पीटूसी--मयंक तिवारी ईटीवी भारत मण्डला
Last Updated : Oct 28, 2019, 11:57 PM IST
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