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केंद्रीय सभा में डाॅ. हरिसिंह गौर ने रखे जोरदार तर्क, बगले झांकने लगे अंग्रेज - DR HARISINGH GOUR

अंग्रेजों के दमनकारी अध्यादेशों के खिलाफ डॉ. हरिसिंह गौर ने केंद्रीय सदन में प्रस्ताव पेश किया था. जिससे ब्रिटिश राज की हुई वैश्विक बदनामी.

DR HARISINGH GOUR SAGAR
DR HARISINGH GOUR SAGAR (Etv Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 26, 2024, 5:50 PM IST

Updated : Nov 26, 2024, 6:14 PM IST

सागर: एक कानूनविद और शिक्षाविद के रूप में डॉ. हरिसिंह गौर की ख्याति दुनिया भर में है. एक राजनेता के तौर पर भी उनकी कई ऐसी उपलब्धियां है, जिनके जरिए अंग्रेजों को कई सख्त कानून बदलने पड़े और शर्मसार होना पड़ा. मामला सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और सीमांत गांधी जैसे नेताओं की गिरफ्तारी से जुड़ा हुआ है. इस मामले में अंग्रेजों के दमनकारी अध्यादेशों के खिलाफ डॉ. हरिसिंह गौर ने सदन में प्रस्ताव पेश किया था.

नागपुर सेंट्रल के सांसद के तौर पर बहस करते हुए जब डॉ. हरिसिंह गौर ने केंद्रीय सभा में अंग्रेजों के दमनकारी कानूनों का काला चिट्ठा खोला, तो उनकी सांसे फूलने लगी और सदन शेम-शेम के नारों से गूंज उठा. हालांकि प्रस्ताव अंग्रेजों के खिलाफ था इसलिए उसका पास होना एक तरह से नामुमकिन था. लेकिन डाॅ. गौर के इस प्रस्ताव से जहां ब्रिटिश राज की वैश्विक बदनामी हुई वहीं आजादी के आंदोलन को और बल मिला.

Dr. Sandeep Rawat, Advocate (Etv Bharat)

सविनय अवज्ञा आंदोलन से घबराकर अंग्रेजों ने जारी किए थे दमनकारी अध्यादेश

डाॅ. हरिसिंह गौर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध करने वाले डाॅ. संदीप रावत बताते हैं "1932 में ब्रिटिश सरकार ने आजादी के लिए शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन से घबराकर कुछ दमनकारी अध्यादेश जारी किए थे. उन अध्यादेशों के प्रवाधान बहुत कठोर थे, जिसके तहत आजादी की लड़ाई लड़ रहे दिग्गज नेताओं महात्मा गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान को गिरफ्तार कर लिया गया था. जवाहर लाल नेहरू को भी नजरबंद कर दिया गया."

देश भर में आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं की गिरफ्तारी के कारण आजादी की लड़ाई में एक खालीपन पैदा हो गया. अंग्रेजों की कोशिश थी कि इन अध्यादेशों के जरिए स्वतंत्रता सेनानियों पर बहुत सारे केस लादकर आंदोलन को कमजोर किया जाए. डाॅ. हरिसिंह गौर उस जमाने के नागपुर सेंट्रल के सांसद थे. इन बातों को लेकर वे काफी दुख और पीड़ा में थे. तब उन्होंने केंद्रीय सदन में बतौर सांसद एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया. दिल्ली के केंद्रीय सदन (उपनिवेशीय केंद्रीय सभा) में भारी हंगामे और शोरगुल के बीच प्रस्ताव पेश किया गया. इस सबके बीच केंद्रीय सभा ने डाॅ. गौर के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए सदस्यों को समय आवंटित किया और कई दिनों तक बहस चली.

डाॅ. गौर ने अध्यादेशों को दमनकारी कानून के रूप में पेश किया

पेश किए गए प्रस्ताव में डाॅ. हरीसिंह गौर ने अध्यादेशों को दमनकारी कानून के रूप में पेश किया और मांग की कि इन अध्यादेशों को सदन में आपातकालीन विधेयक के रूप में पास कराना चाहिए, अन्यथा वापस लेना चाहिए. कहा कि अविभाजित भारत के नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में ब्रिटिश अधिकारियों को रोका जाना चाहिए. वहां की हिंसा की जांच के लिए स्वतंत्र सदस्यों की कमेटी बनाना चाहिए. मनोनीत सदस्यों को इस कमेटी से बाहर रखना चाहिए.

डाॅ गौर के वक्तव्य पर शेम-शेम से गूंज उठा सदन

बहस में भाग लेते हुए डाॅ. हरीसिंह गौर ने केंद्रीय सभा में बताया कि अध्यादेश दमनकारी है. इसमें ब्रिटिश अधिकारी के निर्णय और किए गए किसी काम को लेकर कोई सिविल और क्रमिनल केस नहीं चल सकता. उस अध्यादेश के पास ब्रिटिश अधिकारियों के पास चल अचल संपत्ति जब्त करने के अधिकार, बिना किसी अनुमति या वारंट के घरों की तलाशी का अधिकार, यहां तक कि पूजा घर और आस्था स्थल तक जाने का अधिकार दे दिया गया था. जब उन्होंने बताया कि अगर कोई 16 साल का लड़का देशप्रेम के चलते आजादी के आंदोलन में शामिल होता है तो सरकार ने उस पर जुर्माने का प्रावधान किया है. जुर्माना ना भरने की स्थिति में माता-पिता को जेल तक भेजा जा सकता था. इस पर सदन में शेम-शेम के नारे लगने लगे. सदन में मौजूद 41 मनोनीत यूरोपियन सदस्य बगले झांकने लगे.

प्रस्ताव पारित नहीं हुआ, लेकिन बना वैश्विक माहौल
हांलाकि डाॅ. हरीसिंह गौर को प्रस्ताव पारित होने की कम उम्मीद थी. उन्हें पता था कि ऐसा नहीं होगा कि अंग्रेज अपने ही अध्यादेश को फिर से पेश करें या सदन की अनुमति लें. उनकी आशंका सही साबित हुई और डाॅ. गौर का प्रस्ताव 18 मतों से सदन में गिर गया. लेकिन सदन में उनकी इस बहस की चर्चा दुनिया भर में हुई. भारत में आजादी का आंदोलन मुखर हो गया. वैश्विक समर्थन के साथ देश की जनता भी डाॅ. गौर के प्रस्ताव को लेकर सड़कों पर उतर आई.

सागर: एक कानूनविद और शिक्षाविद के रूप में डॉ. हरिसिंह गौर की ख्याति दुनिया भर में है. एक राजनेता के तौर पर भी उनकी कई ऐसी उपलब्धियां है, जिनके जरिए अंग्रेजों को कई सख्त कानून बदलने पड़े और शर्मसार होना पड़ा. मामला सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू और सीमांत गांधी जैसे नेताओं की गिरफ्तारी से जुड़ा हुआ है. इस मामले में अंग्रेजों के दमनकारी अध्यादेशों के खिलाफ डॉ. हरिसिंह गौर ने सदन में प्रस्ताव पेश किया था.

नागपुर सेंट्रल के सांसद के तौर पर बहस करते हुए जब डॉ. हरिसिंह गौर ने केंद्रीय सभा में अंग्रेजों के दमनकारी कानूनों का काला चिट्ठा खोला, तो उनकी सांसे फूलने लगी और सदन शेम-शेम के नारों से गूंज उठा. हालांकि प्रस्ताव अंग्रेजों के खिलाफ था इसलिए उसका पास होना एक तरह से नामुमकिन था. लेकिन डाॅ. गौर के इस प्रस्ताव से जहां ब्रिटिश राज की वैश्विक बदनामी हुई वहीं आजादी के आंदोलन को और बल मिला.

Dr. Sandeep Rawat, Advocate (Etv Bharat)

सविनय अवज्ञा आंदोलन से घबराकर अंग्रेजों ने जारी किए थे दमनकारी अध्यादेश

डाॅ. हरिसिंह गौर के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध करने वाले डाॅ. संदीप रावत बताते हैं "1932 में ब्रिटिश सरकार ने आजादी के लिए शुरू हुए सविनय अवज्ञा आंदोलन से घबराकर कुछ दमनकारी अध्यादेश जारी किए थे. उन अध्यादेशों के प्रवाधान बहुत कठोर थे, जिसके तहत आजादी की लड़ाई लड़ रहे दिग्गज नेताओं महात्मा गांधी, खान अब्दुल गफ्फार खान को गिरफ्तार कर लिया गया था. जवाहर लाल नेहरू को भी नजरबंद कर दिया गया."

देश भर में आंदोलन का नेतृत्व कर रहे नेताओं की गिरफ्तारी के कारण आजादी की लड़ाई में एक खालीपन पैदा हो गया. अंग्रेजों की कोशिश थी कि इन अध्यादेशों के जरिए स्वतंत्रता सेनानियों पर बहुत सारे केस लादकर आंदोलन को कमजोर किया जाए. डाॅ. हरिसिंह गौर उस जमाने के नागपुर सेंट्रल के सांसद थे. इन बातों को लेकर वे काफी दुख और पीड़ा में थे. तब उन्होंने केंद्रीय सदन में बतौर सांसद एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पेश किया. दिल्ली के केंद्रीय सदन (उपनिवेशीय केंद्रीय सभा) में भारी हंगामे और शोरगुल के बीच प्रस्ताव पेश किया गया. इस सबके बीच केंद्रीय सभा ने डाॅ. गौर के प्रस्ताव पर चर्चा के लिए सदस्यों को समय आवंटित किया और कई दिनों तक बहस चली.

डाॅ. गौर ने अध्यादेशों को दमनकारी कानून के रूप में पेश किया

पेश किए गए प्रस्ताव में डाॅ. हरीसिंह गौर ने अध्यादेशों को दमनकारी कानून के रूप में पेश किया और मांग की कि इन अध्यादेशों को सदन में आपातकालीन विधेयक के रूप में पास कराना चाहिए, अन्यथा वापस लेना चाहिए. कहा कि अविभाजित भारत के नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस में ब्रिटिश अधिकारियों को रोका जाना चाहिए. वहां की हिंसा की जांच के लिए स्वतंत्र सदस्यों की कमेटी बनाना चाहिए. मनोनीत सदस्यों को इस कमेटी से बाहर रखना चाहिए.

डाॅ गौर के वक्तव्य पर शेम-शेम से गूंज उठा सदन

बहस में भाग लेते हुए डाॅ. हरीसिंह गौर ने केंद्रीय सभा में बताया कि अध्यादेश दमनकारी है. इसमें ब्रिटिश अधिकारी के निर्णय और किए गए किसी काम को लेकर कोई सिविल और क्रमिनल केस नहीं चल सकता. उस अध्यादेश के पास ब्रिटिश अधिकारियों के पास चल अचल संपत्ति जब्त करने के अधिकार, बिना किसी अनुमति या वारंट के घरों की तलाशी का अधिकार, यहां तक कि पूजा घर और आस्था स्थल तक जाने का अधिकार दे दिया गया था. जब उन्होंने बताया कि अगर कोई 16 साल का लड़का देशप्रेम के चलते आजादी के आंदोलन में शामिल होता है तो सरकार ने उस पर जुर्माने का प्रावधान किया है. जुर्माना ना भरने की स्थिति में माता-पिता को जेल तक भेजा जा सकता था. इस पर सदन में शेम-शेम के नारे लगने लगे. सदन में मौजूद 41 मनोनीत यूरोपियन सदस्य बगले झांकने लगे.

प्रस्ताव पारित नहीं हुआ, लेकिन बना वैश्विक माहौल
हांलाकि डाॅ. हरीसिंह गौर को प्रस्ताव पारित होने की कम उम्मीद थी. उन्हें पता था कि ऐसा नहीं होगा कि अंग्रेज अपने ही अध्यादेश को फिर से पेश करें या सदन की अनुमति लें. उनकी आशंका सही साबित हुई और डाॅ. गौर का प्रस्ताव 18 मतों से सदन में गिर गया. लेकिन सदन में उनकी इस बहस की चर्चा दुनिया भर में हुई. भारत में आजादी का आंदोलन मुखर हो गया. वैश्विक समर्थन के साथ देश की जनता भी डाॅ. गौर के प्रस्ताव को लेकर सड़कों पर उतर आई.

Last Updated : Nov 26, 2024, 6:14 PM IST
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