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6 करोड़ साल पुराने डायनोसोर के अंडे मिले! रंग लाई जीवाश्म विशेषज्ञ की मेहनत

जीवाश्म विशेषज्ञ प्रशांत श्रीवास्तव ने संभावना जताई थी कि ये डायनासोर के अंडे हो सकते हैं. इसके बाद ईटीवी भारत ने इस संभावना से जिला प्रशासन और पुरातत्व संग्रहालय को अवगत कराया और इस पर रिसर्च की बात कही और ईटीवी भारत की मुहिम के साथ ही प्रशांत श्रीवास्तव की मेहनत रंग लाई और यह साबित हो गया कि ये 6 करोड़ साल पुराने डायनासोर के ही अंडे हैं.

Dinosaur egg
डायनोसोर का अंडा
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Published : Nov 7, 2020, 12:37 AM IST

मंडला। ईटीवी भारत ने जीवाश्म के जानकार प्रशांत श्रीवास्तव के साथ मिलकर यह संभावना जताई थी कि मंडला जिले के आस-पास जो सफेद गेंद की शक्ल में गोल पत्थर मिले हैं. और जिन पर शासन प्रशासन का ध्यान नहीं जा रहा है ये डायनासोर के अंडे हो सकते हैं, जिसके बाद इनकी जांच हुई और ये संभावना सही साबित पाई गई है.

छह करोड़ साल पुराने डायनासोर के अंडें

फरवरी महीने में रेलवे निर्माण में पिचिंग वर्क के लिए जिस मुरूम या मिट्टी को लाया जा रहा था. उसमें सफेद रंग की गेंद की तरह बड़ी संख्या में पत्थर दिखाई दे रहे थे. और इन पर नजर पड़ी जीवाश्म विशेषज्ञ प्रशांत श्रीवास्तव की. जिन्होंने संभावना जताई कि ये डायनासोर के अंडे हो सकते हैं. इसके बाद ईटीवी भारत ने इस संभावना से जिला प्रशासन और पुरातत्व संग्रहालय को अवगत कराया और इस पर रिसर्च की बात कही और ईटीवी भारत की मुहिम के साथ ही प्रशांत श्रीवास्तव की मेहनत रंग लाई और यह साबित हो गया कि ये 6 करोड़ साल पुराने डायनासोर के ही अंडे हैं.

Dinosaur egg
डायनोसोर के अंडे

दावे का आधार

मंडला जिले के आसपास पुराने समय में भी डायनासोर की हड्डियों के जीवाश्म अवशेष मिल चुके हैं. और घुघुआ जीवाश्म पार्क में अंडे के साथ इन्हें देखा जा सकता है. यही वजह रही कि ईटीवी भारत ने यह संभावना प्रशांत श्रीवास्तव के हवाले से जताई की यह डायनासोर के अंडे हो सकते हैं, क्योंकि यहां पहले मीठे पानी की विशाल झील के साथ ही करोड़ों साल पहले प्रकृति, जीवों के लिए अनुकूल थी जो इस समय पाए जाते थे, समय-समय पर मिलने वाले जलीय जीव और शंख के अवशेष जो जीवाश्म में बदल चुके हैं, वहीं पेड़ पौधों के जीवाश्म इन दावों को और भी बल दे रहे थे.

आखिर सच हुआ दावा

जीवाश्म विशेषज्ञ प्रशांत श्रीवास्तव ने इन अंडों के संबंध में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के साथ ही सागर विश्वविद्यालय, जीएसआई जबलपुर के उन विभागों से संपर्क किया. जहां जीवाश्म पर रिसर्च की जाती है. फोटोग्राफ देखते ही इन संस्थानों ने भी यही उम्मीद जताई थी की यह जीवाश्म डायनासोर के ही अंडे हैं. बीते सप्ताह सागर यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री पीके कटहल ने मंडला आकर इन क्षेत्रों का दौरा किया, साथ ही विधिवत तौर पर एक अंडा अपनी लैब में टेस्ट करने के लिए भी ले गए. जिसके बाद वैज्ञानिक विश्लेषण और प्रदेश की एकमात्र इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप में परीक्षण के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि यह डायनासोर के अंडे ही हैं जो लगभग साढ़े छह करोड़ साल पुराने हैं.

प्रशासन पर बड़ी जिम्मेदारी

अलग-अलग तरह की शोधों से जब यह सामने आ चुका है और सिद्ध हो चुका है कि यह डायनासोर के अंडों के ही जीवाश्म है. ऐसे में मंडला जिले का महत्व जीवाश्म के लिहाज से न केवल देश बल्कि विदेशों में भी बढ़ जाता है, लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इन लगभग सात करोड़ साल पुरानी धरोहरों को किसी भी तरह से संरक्षित किए जाने के कोई भी प्रयास नहीं किए गए. यही वजह है कि जीवाश्म या तो पहाड़ियों में बिखरे पड़े हुए हैं या फिर यहां से निकाले जाने वाली मुरम मिट्टी के साथ सड़क से लेकर रेलवे ट्रैक के निर्माण कार्यों में दफन हो जाते हैं. अब जवाबदारी है जिला प्रशासन की जो उन स्थानों के साथ ही इन बेशकीमती धरोहरों को संरक्षित करें और जिले को जीवाश्म पर्यटन के रूप में विकसित करें.

हमारे देश में जीवाश्म संरक्षण के लिए किसी तरह का कोई कानून नहीं है. जिसके चलते न तो जीवाश्म को लेकर कभी संरक्षण के प्रयास किये गए और न ही मिली हुई धरोहर के दुरुपयोग पर कोई कार्रवाई हुई. मंडला जिला पुरातत्व और ऐतिहासिक धरोहर के लिहाज से मक्का कहा जा सकता है, लेकिन आज भी जिले को वह स्थान नहीं मिल पाया जो इसे मिलना चाहिए. अब तक जो भी रिसर्च की गई. वह मंडला जिले को वो स्थान नहीं दिला पाए जिससे कि विदेशी सैलानी या रिसर्चर यहां आएं और अपने शोध करने के बाद मंडला जिले को विश्व पटल पर एक नया स्थान दिला सकें.

मंडला। ईटीवी भारत ने जीवाश्म के जानकार प्रशांत श्रीवास्तव के साथ मिलकर यह संभावना जताई थी कि मंडला जिले के आस-पास जो सफेद गेंद की शक्ल में गोल पत्थर मिले हैं. और जिन पर शासन प्रशासन का ध्यान नहीं जा रहा है ये डायनासोर के अंडे हो सकते हैं, जिसके बाद इनकी जांच हुई और ये संभावना सही साबित पाई गई है.

छह करोड़ साल पुराने डायनासोर के अंडें

फरवरी महीने में रेलवे निर्माण में पिचिंग वर्क के लिए जिस मुरूम या मिट्टी को लाया जा रहा था. उसमें सफेद रंग की गेंद की तरह बड़ी संख्या में पत्थर दिखाई दे रहे थे. और इन पर नजर पड़ी जीवाश्म विशेषज्ञ प्रशांत श्रीवास्तव की. जिन्होंने संभावना जताई कि ये डायनासोर के अंडे हो सकते हैं. इसके बाद ईटीवी भारत ने इस संभावना से जिला प्रशासन और पुरातत्व संग्रहालय को अवगत कराया और इस पर रिसर्च की बात कही और ईटीवी भारत की मुहिम के साथ ही प्रशांत श्रीवास्तव की मेहनत रंग लाई और यह साबित हो गया कि ये 6 करोड़ साल पुराने डायनासोर के ही अंडे हैं.

Dinosaur egg
डायनोसोर के अंडे

दावे का आधार

मंडला जिले के आसपास पुराने समय में भी डायनासोर की हड्डियों के जीवाश्म अवशेष मिल चुके हैं. और घुघुआ जीवाश्म पार्क में अंडे के साथ इन्हें देखा जा सकता है. यही वजह रही कि ईटीवी भारत ने यह संभावना प्रशांत श्रीवास्तव के हवाले से जताई की यह डायनासोर के अंडे हो सकते हैं, क्योंकि यहां पहले मीठे पानी की विशाल झील के साथ ही करोड़ों साल पहले प्रकृति, जीवों के लिए अनुकूल थी जो इस समय पाए जाते थे, समय-समय पर मिलने वाले जलीय जीव और शंख के अवशेष जो जीवाश्म में बदल चुके हैं, वहीं पेड़ पौधों के जीवाश्म इन दावों को और भी बल दे रहे थे.

आखिर सच हुआ दावा

जीवाश्म विशेषज्ञ प्रशांत श्रीवास्तव ने इन अंडों के संबंध में बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट के साथ ही सागर विश्वविद्यालय, जीएसआई जबलपुर के उन विभागों से संपर्क किया. जहां जीवाश्म पर रिसर्च की जाती है. फोटोग्राफ देखते ही इन संस्थानों ने भी यही उम्मीद जताई थी की यह जीवाश्म डायनासोर के ही अंडे हैं. बीते सप्ताह सागर यूनिवर्सिटी के प्रसिद्ध भूगर्भ शास्त्री पीके कटहल ने मंडला आकर इन क्षेत्रों का दौरा किया, साथ ही विधिवत तौर पर एक अंडा अपनी लैब में टेस्ट करने के लिए भी ले गए. जिसके बाद वैज्ञानिक विश्लेषण और प्रदेश की एकमात्र इलेक्ट्रॉनिक माइक्रोस्कोप में परीक्षण के बाद इस नतीजे पर पहुंचे कि यह डायनासोर के अंडे ही हैं जो लगभग साढ़े छह करोड़ साल पुराने हैं.

प्रशासन पर बड़ी जिम्मेदारी

अलग-अलग तरह की शोधों से जब यह सामने आ चुका है और सिद्ध हो चुका है कि यह डायनासोर के अंडों के ही जीवाश्म है. ऐसे में मंडला जिले का महत्व जीवाश्म के लिहाज से न केवल देश बल्कि विदेशों में भी बढ़ जाता है, लेकिन इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि इन लगभग सात करोड़ साल पुरानी धरोहरों को किसी भी तरह से संरक्षित किए जाने के कोई भी प्रयास नहीं किए गए. यही वजह है कि जीवाश्म या तो पहाड़ियों में बिखरे पड़े हुए हैं या फिर यहां से निकाले जाने वाली मुरम मिट्टी के साथ सड़क से लेकर रेलवे ट्रैक के निर्माण कार्यों में दफन हो जाते हैं. अब जवाबदारी है जिला प्रशासन की जो उन स्थानों के साथ ही इन बेशकीमती धरोहरों को संरक्षित करें और जिले को जीवाश्म पर्यटन के रूप में विकसित करें.

हमारे देश में जीवाश्म संरक्षण के लिए किसी तरह का कोई कानून नहीं है. जिसके चलते न तो जीवाश्म को लेकर कभी संरक्षण के प्रयास किये गए और न ही मिली हुई धरोहर के दुरुपयोग पर कोई कार्रवाई हुई. मंडला जिला पुरातत्व और ऐतिहासिक धरोहर के लिहाज से मक्का कहा जा सकता है, लेकिन आज भी जिले को वह स्थान नहीं मिल पाया जो इसे मिलना चाहिए. अब तक जो भी रिसर्च की गई. वह मंडला जिले को वो स्थान नहीं दिला पाए जिससे कि विदेशी सैलानी या रिसर्चर यहां आएं और अपने शोध करने के बाद मंडला जिले को विश्व पटल पर एक नया स्थान दिला सकें.

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