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पांडवों ने वनवास के दौरान यहां की थी मां जयंती की पूजा, पूरी होती है हर मनोकामना

खरगोन जिले के बड़वाह से तीन किलोमीटर दूर विंध्याचल पर्वत की वादियों में मां जयंती का दरबार है, जहां हर साल नवरात्रि पर भक्तों की भारी भीड़ जुटती है. माना जाता है कि  चोरल नदी के किनारे जेतगढ़ पहाड़ की एक गुफा में बने इस मंदिर में हर मनोकामना पूरी होती है.

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Published : Sep 29, 2019, 8:48 PM IST

Updated : Sep 29, 2019, 9:37 PM IST

माँ जयंती के दरबार में लगा रहता है भक्तों का तांता

खरगोन। जिले के बड़वाह से तीन किलोमीटर दूर विंध्याचल पर्वत की वादियों में चोरल नदी के किनारे जेतगढ़ पहाड़ की एक गुफा में स्थित माता जयंती का अतिप्राचीन मंदिर है, हजारों भक्त यहां दर्शन करने आते हैं.
शास्त्रों के मुताबिक जयंती माता पांडवों की कुल देवी मानी जाती हैं. जयंती माता के मंदिर से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर चमत्कारी भैरव बाबा का प्राचीन मंदिर स्थित है, जहां प्रदेश सहित राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि जगहों के भक्त मां के दर्शन करने आते हैं.

माँ जयंती के दरबार में लगा रहता है भक्तों का तांता


नवरात्रि के अवसर पर यहां भव्य मेला लगता है. भक्तों की सुरक्षा के मद्देनजर यहां राजस्व, पुलिस और वन विभाग का अमला दिन रात तैनात रहता है. नवरात्रि में यहां माता की शयन आरती के समय पालना सजाया जाता है, जो कि आकर्षण का केंद्र रहता है. मन्दिर के पुजारी पंडित रामस्वरूप शर्मा के मुताबिक महाभारत में उल्लेख है की मां जयंती पाडवों की कुलदेवी रही हैं. विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतों पर पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास काटा था, इस दौरान वे यहां माता जयंती का पूजन-अर्चन किया करते थे.


पुजारी पंडित रामस्वरूप शर्मा ने बताया कि माता जयंती यहां स्वयं पिंडी के रूप में प्रकट हुई थीं. माता की दिव्य पिंडी वर्तमान समय में बहुत ही छोटे रूप में होकर आज भी दर्शनीय है. कहा जाता है कि भक्तगणों की माता जयंती और भैरव बाबा के दरबार में हर मन्नत पूरी होती है.

खरगोन। जिले के बड़वाह से तीन किलोमीटर दूर विंध्याचल पर्वत की वादियों में चोरल नदी के किनारे जेतगढ़ पहाड़ की एक गुफा में स्थित माता जयंती का अतिप्राचीन मंदिर है, हजारों भक्त यहां दर्शन करने आते हैं.
शास्त्रों के मुताबिक जयंती माता पांडवों की कुल देवी मानी जाती हैं. जयंती माता के मंदिर से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर चमत्कारी भैरव बाबा का प्राचीन मंदिर स्थित है, जहां प्रदेश सहित राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र आदि जगहों के भक्त मां के दर्शन करने आते हैं.

माँ जयंती के दरबार में लगा रहता है भक्तों का तांता


नवरात्रि के अवसर पर यहां भव्य मेला लगता है. भक्तों की सुरक्षा के मद्देनजर यहां राजस्व, पुलिस और वन विभाग का अमला दिन रात तैनात रहता है. नवरात्रि में यहां माता की शयन आरती के समय पालना सजाया जाता है, जो कि आकर्षण का केंद्र रहता है. मन्दिर के पुजारी पंडित रामस्वरूप शर्मा के मुताबिक महाभारत में उल्लेख है की मां जयंती पाडवों की कुलदेवी रही हैं. विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतों पर पांडवों ने 12 वर्ष का वनवास काटा था, इस दौरान वे यहां माता जयंती का पूजन-अर्चन किया करते थे.


पुजारी पंडित रामस्वरूप शर्मा ने बताया कि माता जयंती यहां स्वयं पिंडी के रूप में प्रकट हुई थीं. माता की दिव्य पिंडी वर्तमान समय में बहुत ही छोटे रूप में होकर आज भी दर्शनीय है. कहा जाता है कि भक्तगणों की माता जयंती और भैरव बाबा के दरबार में हर मन्नत पूरी होती है.

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खरगोन जिले के बडवाह से
तीन किमी दूर वनक्षेत्र मे विंध्याचल पर्वत की प्राकृतिक सुरम्य हसीन वादियों मे चोरल नदी के किनारे जेतगढ़ पहाड़ पर गुफा में स्वयम्भू विराजित माता जयंती का अतिप्राचीन मंदिर  है। भक्तो की मुरादे पूरी करने वाली माता के दिन मे तीन स्वरूपो मे दर्शन होते हैं। सुबह माता बाल स्वरूप कन्या के रूप में दर्शन देती है तो दोपहर में माता युवा रूप में नजर आती है वही माता संध्या के समय  प्रौढ़ रूप व्रद्ध स्वरूप में दर्शन देती हैं।


Body:जयंती माता मन्दिर पांडवों की कुल देवी मानी जाती है। वही जयंती माता मंदिर से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर स्वयम्भू विराजित चमत्कारी भैरव बाबा का प्राचीन मंदिर भी माँ जयन्ती के प्रकट होने के समय का है। इस मंदिर में निमाड़-मालवा व म.प्र.के सहित राजस्थान गुजरात महाराष्ट्र आदि प्रांतों से माता के दरबार मे हजारो भक्त दर्शन करते आते हैं।
आस्था से आये भक्तगणों की माता व भैरव बाबा के दरबार मे माँगी गई हर मान मन्नत मुरादे पूरी होती है।
नवरात्रि पर्व के दौरान यहां भव्य मेला लगता है,जिसमे फूल प्रसादी चुनरी,,बच्चों के खेल खिलौने व खादय सामग्री की दुकान सजती है। माता के भक्तगण माता के दरबार मे गहरी आस्थाओ के साथ बड़वाह से 3 किमी पैदल चलकर आते हैं।। माता का दरबार वनक्षेत्र मे विराजित होने के कारण व्यवस्थाओं व जंगली वन्यप्राणियो से भक्तो की सुरक्षा को दृष्टिगत रखते हुए राजस्व,पुलिस एव वन विभाग का अमला दिन रात तैनात रहता है।।
माता की दिन में तीनों प्रहरों में आरती होती हैं जिसमे प्रातःआरती सुबह 5:30 बजे, दोपहर भोग आरती 12 बजे व संध्या शयन आरती रात्रि 9 बजे होती है,वर्षो से चली आ रही परम्परानुसार माता के शयन के लिये शयन आरती के समय पालना सजाया जाता है,पहले यह पालना लकड़ी का होता था अब यह पीतल धातु का है।
पाँच पीढ़ियों से पीढ़ी दर पीढ़ी मन्दिर मे पूजा अर्चना करते आ रहे आता मन्दिर के पुजारी पंडित रामस्वरूप शर्मा कहते हैं कि महाभारत मे उल्लेख है की माँ जयन्ती पाडवो की कुलदेवी रही है,,, विंध्याचल और सतपुड़ा पर्वतों पर पाडवो ने पूरा जीवन व्यतीत कर 12 वर्ष का वनवास  काटा था,,उस दौरान माता का नित्य पूजन अर्चन किया करते थे। 

दुर्गा सप्तसती मे भी माता जयंती का पहला ही श्लोक "ॐजयंती मंगला काली भद्रकाली कृपालंनी" दुर्गा शमा शिवाधात्री स्वाह सुधा नमस्तुते" से आता है,,,, माता के 108 सिद्धपीठो मे एक सिद्ध पीठ  माता जयन्ती का उल्लेखित है,,पंडित रामस्वरूप बताते है माता जयन्ती स्वयं पिंडी के रूप में प्रकट हुई थी,,माता की भव्य पिंडी वर्तमान समय मे बहुत ही छोटे रूप में होकर,आज भी दर्शनीय है, माता का पिंडी स्वरूप धीरे - धीरे माता की प्रतिमा में समाता जा रहा है,,,

कुछ वर्षों पूर्व जीर्णोद्वार के समय मन्दिर की दीवार पर एक प्राचीनकाल का शिलालेख लगा हुआ निकला था, जिसमे 1351 सवत मे होलकर वंश के राजाओ द्वारा मन्दिर के जीर्णोद्वार का उल्लेख होना दर्शाता गया है,, इसके अनुसार पहाड़ पर स्थित माता का यह मन्दिर पाण्डवकाल के पूर्व का होना प्रतीत होता है,,माता राणा परिवार की भी कुलदेवी है।।
माता मन्दिर से करीब पांच सौ मीटर की दूरी पर चमत्कारी भैरव बाबा का प्राचीन मंदिर भी माँ जयन्ती के प्रकट होने के समय का स्थित है।।आस्था से आये भक्तगणों की माता व भैरव बाबा के दरबार मे माँगी गई हर मन्नत पूरी होती है।


01बाइट-रामस्वरूप शर्मा,माता मंदिर पुजारी


02बाइट-अजय तिवारी,

माता भक्त,


03बाइट-महेंद्र शर्मा,पंडित









Conclusion:
Last Updated : Sep 29, 2019, 9:37 PM IST
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