ओस की बूंद सी होती हैं बेटियां
स्पर्श खुरदरा हो तो रोती हैं बेटियां
बेटा तो रोशन करेगा एक कुल
दो कुलों की लाज होती हैं बेटियां
खरगोन। बेटी है तो कल है, ये महज एक कहावत नहीं बल्कि जिंदगी का फलसफा है. वक्त के साथ समाज ने बेटियों को जिस दिल्लगी के साथ अपनाया है और बेटियों को बेटों के बराबर दर्जा दिया है. उसने बेटियों के प्रति समाज की सोच को नया आयाम दिया है और बेटियों को बोझ समझने वाले समाज को भी समझ आ गया है कि बेटियां पराया धन नहीं, बल्कि वो दीपक हैं जो एकसाथ दो कुलों को रोशन करती हैं. खरगोन शहर के सोनी परिवार ने बेटी के जन्म का ऐसा जश्न मनाया, जो बेटे के जन्म की खुशी को भी फीकी कर सकती है.
लक्ष्मी के आगमन से परिवार इतना खुश था कि अस्पताल से जच्चा-बच्चा के आने पर गाजे-बाजे के साथ किया. साथ ही बहू के लक्ष्मी के रूप में घर आने पर पग चिन्ह लेने की परम्परा भी निभाई गई, परिवार ने ढोल ताशे के साथ मेरे घर आई एक नन्हीं परी गीत गाते हुए केक भी काटा. नन्ही परी की दादी मंजू सोनी ने भी लक्ष्मी के आगमन की खुश का कुछ इस तरह इजहार किया.
बुढ़ापे की लाठी सिर्फ बेटे ही नहीं बनते, बल्कि बेटियां भी रूढ़िवादी परंपराओं को तिलांजलि दे दी हैं. ज्यादातर मामलों में दायित्व निभाने में बेटियां बेटों से कहीं आगे हैं. बेटी के जन्म की खुशी सोनी परिवार ने जिस तरह सेलिब्रेट किया है, निश्चित तौर पर वह समाज के लिए मील का पत्थर साबित होगा.