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कच्चे आम का प्रसाद खाने से भर जाती है सूनी गोद, बोंदरू बाबा की समाधि पर लगता है संतान मेला

खरगोन में बोंदरू बाबा की समाधि स्थल पर हर साल श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के एक दिन बाद संतान मेले का आयोजन किया जाता है. जिसमें संतान की इच्छुक महिलाएं या निःसंतान दंपति आते हैं.

बोंदरू बाबा की समाधि पर लगता है संतान मेला
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Published : Aug 25, 2019, 10:33 PM IST

खरगोन। नागझिरी गांव में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन भाद्रपद की नवमी पर बोंदरू बाबा की समाधि स्थल पर एक दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. मेले में संतान की इच्छुक महिलाएं या निसंतान दंपति आती हैं. ऐसी मान्याता है कि यहां से मिलने वाले कच्चे आम का प्रसाद खाने से महिलाओं की सूनी गोद भर जाती है. इस मेले को संतान मेले के नाम से भी जाना जाता है.

बोंदरू बाबा की समाधि पर लगता है संतान मेला

कहा जाता है कि मनोकामना पूर्ण होने पर दंपति अपने परिवार सहित बोंदरू बाबा की समाधि स्थल पर दोबारा आकर तुला दान कर मन्नत पूरी करते हैं. इस मेले में खंडवा, बड़वानी, झाबुआ और मालवांचल के जिलों के अलावा महाराष्ट्र-गुजरात और जयपुर से भी लोग यहां आते हैं.

बोंदरू बाबा की समाधि से जुड़ी एक और मान्यता है कि महिलाएं यहां कच्चा आम चढ़ाती हैं. जिसे उत्सव के बाद संतान की इच्छा रखने वाली महिलाओं को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. मान्यता है कि बाबा की कृपा से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है.

खरगोन। नागझिरी गांव में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन भाद्रपद की नवमी पर बोंदरू बाबा की समाधि स्थल पर एक दिवसीय मेले का आयोजन किया जाता है. मेले में संतान की इच्छुक महिलाएं या निसंतान दंपति आती हैं. ऐसी मान्याता है कि यहां से मिलने वाले कच्चे आम का प्रसाद खाने से महिलाओं की सूनी गोद भर जाती है. इस मेले को संतान मेले के नाम से भी जाना जाता है.

बोंदरू बाबा की समाधि पर लगता है संतान मेला

कहा जाता है कि मनोकामना पूर्ण होने पर दंपति अपने परिवार सहित बोंदरू बाबा की समाधि स्थल पर दोबारा आकर तुला दान कर मन्नत पूरी करते हैं. इस मेले में खंडवा, बड़वानी, झाबुआ और मालवांचल के जिलों के अलावा महाराष्ट्र-गुजरात और जयपुर से भी लोग यहां आते हैं.

बोंदरू बाबा की समाधि से जुड़ी एक और मान्यता है कि महिलाएं यहां कच्चा आम चढ़ाती हैं. जिसे उत्सव के बाद संतान की इच्छा रखने वाली महिलाओं को प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. मान्यता है कि बाबा की कृपा से उनकी मनोकामना पूर्ण होती है.

Intro:एंकर रामायण में एक वृतांत है। जिसमे राजा दशरथ को संतान नही होने से ऋषि द्वारा यज्ञ कर खीर का प्रसाद रानियों को खिलाया था। जिसके बाद प्रसाद के माध्यम से राम लक्ष्मण भरत शत्रुघ्न का जन्म हुआ था। ऐसा ही कुछ नजारा खरगोन जिले में देखने मे आया जहां हर वर्ष कृष्ण जन्म आष्टमी के दूसरे दिन नवमी को निःसंतान दम्पत्ति को कच्चे आम का प्रसाद खिला कर संतान का आशीर्वाद दिया जाता है।


Body:खरगोन जिला मुख्यालय से 10 किलोमीटर दूर ग्राम नागझिरी में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के दूसरे दिन भादव की दूज को बोन्दरु बाबा के समाधि स्थल पर एक दिवसीय मेला लगता है। इस समाधि पर निःसंतान दम्पतियों को कच्चे आम का पर प्रसाद खिलाया जाता है। एक वर्ष में दम्पत्ति के यहां किलकारी गूंजने के बाद तुला दान कर मन्नत पूरी करते है। इस मेले की ख्याति मध्यप्रदेश सहित महाराष्ट्र और गुजरात तक फैली है।जिससे दूर दूर निसंतान दम्पत्ति अपनी गोद हरी होने की चाह लेकर आते है। ऐसे ही कुछ दम्पत्तियों से चर्चा की। कसरावद से आई सविता ने बताया कि मुझे मेरी फ्रेंड ने बताया था यहां के बारे में तो मैं गत वर्ष यहां आई थी। यहां प्रसाद खाने के बाद मैं गर्भवती हुई और मेरी सुनी गोद हरी हो गई। बाइट-सविता श्रद्धालु वही इंदौर से आए हिमांशु ने बताया कि हमे खुशी है कि यहां से हमारे यहां खुशी आई। हम यहां दो वर्ष पूर्व यहां आए थे। बच्चा होने के बाद हम दो वर्ष से आ रहे है। पांच वर्ष तक आकर मन्नत उतारने कि मान ली है। बाइट- हिमांशु श्रद्धालु वही पहली बार गुजरात के सूरत से आई पूर्वा भावसार ने बताया कि मैं खरगोन कि रहने वाली हूं और मेरी शादी सूरत में हुई है। मै शुरू से देखती आ रही हूं। यहां अब तक लाखों महिलाओं को प्रसाद खाने के बाद बच्चे हुए है। मेरी शादी को 3 साल हुए है। मै भी बच्चे की चाह में आई हूं। मेरा परिवार भी फुले फले। बाइट- पूर्वा भावसार इसी तरह बच्चे की चाह रखकर राजस्थान के जयपुर से आने वाली अनुप्रिया चौहान ने बताया कि यहां के बारे में बहुत सुन रखा था। किसी ने बताया था कि एक बार यहां आकर प्रसाद ले लो जरूर फायदा होगा। साथ ही मैने साथ वालो को फायदा हुआ है। इसलिए जयपुर से आई हूं। बाइट- अनुप्रिया चौहान जयपुर


Conclusion:खरगोन जिले नागझिरी में लगने वाले मेले में मध्यप्रदेश सहित महाराष्ट गुजरात और राजस्थान से भी निःसंतान दम्पति आते है। इसमें एक चमत्कारी तथ्य यह सामने आता है। कच्चे आम का समय मार्च से जून होता है। ऐसे में बरसात के मौसम में कच्चे आम का कुछ लोंगो को कुछ पेड़ों पर मिलना अपने आप मे एक चमत्कार लगता है।
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