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देवउठनी एकादशी पर पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण को निकलेंगे विट्ठल भगवान

सागर जिले के रहली में स्थित विट्ठल मंदिर का देवउठनी एकदाशी के दिन बड़ा महत्व है. इस दिन विट्ठल भगवान पालकी में सवार होकर नगर भ्रमण करते हैं.

DEV UTHANI EKADASHI 2024
देवउठनी एकादशी को विठ्ठल भगवान पालकी में सवार होकर सैर पर निकलते हैं (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Nov 11, 2024, 10:44 PM IST

सागर: बुंदेलखंड में जगह-जगह मराठा संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. इसके पीछे की वजह महाराजा छत्रसाल और बाजीराव पेशवा प्रथम के संबंधों को माना जाता है. दरअसल, जब महाराजा छत्रसाल के राज्य पर मोहम्मद बंगश ने हमला किया था तब बाजीराव प्रथम ने अपनी सेना भेजकर छत्रसाल की मदद की थी. इस बात खुश होकर छत्रसाल ने बुंदेलखंड का काफी बड़ा हिस्सा बाजीराव को उपहारस्वरूप दे दिया था. जिसमें सागर, रहली और देवरी जैसे इलाके थे.

यहां के स्थानीय राजा की पत्नी, रानी लक्ष्मीबाई अंबादेवी खेर काफी दानवीर और धर्मप्रिय थीं. उन्होंने सागर-रहली मार्ग पर कई मंदिरों का निर्माण कराया था. जिसमें 1727 में रहली के पंढरपुर में बनवाए गए विट्ठल भगवान का मंदिर, बुंदेलखंड के लिए अपने आप में एक अद्भुत सौगात है. मंदिर की वास्तुकला के साथ-साथ मंदिर की भव्यता और महाराष्ट्र के पंढरीनाथ मंदिर से समानता लोगों को आकर्षित करती है. देवउठनी एकादशी पर विठ्ठल भगवान पालकी में बैठकर नगर भ्रमण करते हैं और जलविहार के बाद फिर मंदिर पहुंचते हैं.

इतिहासकार भरत शुक्ला (ETV Bharat)

रानी लक्ष्मीबाई अंबादेवी खेर ने कराया मंदिरों का निर्माण

इतिहासकार भरत शुक्ला से मिली जानकारी के अनुसार, रानी लक्ष्मीबाई खैर काफी धर्मप्रिय थीं. उन्होंने सागर में कई मंदिरों का निर्माण कराया. उन्होंने ढाना में पटनेश्वर मंदिर के नाम से भगवान शिव के मंदिर का निर्माण कराया. बताते हैं कि रानी जब रहली जाती थीं तो, उनका काफिला यहां जरूर रुकता था. इसके अलावा रहली के रानगिर गांव में हरसिद्धि माता के प्रसिद्ध मंदिर और जबलपुर मार्ग पर टिकीटोरिया में सिंहवाहिनी माता मंदिर का भी निर्माण कराया था. उन्होंने रहली कस्बे में पंढरपुर (महाराष्ट्र) की तर्ज पर भगवान विठ्ठल का मंदिर बनवाया था. मंदिर निर्माण के बाद रहली के इस इलाके का नाम ही पंढरपुर रख दिया गया. मंदिर की वास्तुकला और भव्यता अपने आप में निराली है.

Sagar rahali Lord Vitthal Temple
सागर रहली भगवान विट्ठल मंदिर (ETV Bharat)

रहली में स्थित है पंढरपुर जैसा मंदिर

महाराष्ट्र के सोलापुर स्थित पंढरपुर और रहली के पंढरपुर स्थित विट्ठल भगवान के मंदिर में कई मायनों में एकरूपता है. पंढरपुर में विट्ठल भगवान ईंट पर बैठे हैं, तो यहां भी उन्हें ईंट पर बिठाया गया है. महाराष्ट्र के पंढरपुर का मंदिर चंद्रभागा नदी के किनारे बना है. जहां मंदिर बना है, वहां बहाव घुमावदार होने के कारण चंद्रभागा कहा गया है. रहली में भी सुनार और देहार नदी के संगम में घुमावदार जगह पर मंदिर बना है. पंढरपुर और रहली का मंदिर रथ के आकार का बना है. मंदिर में भगवान विष्णु के 12 अवतारों के दर्शन होते हैं. सूर्योदय की पहली किरण भगवान विट्ठल के चरणों पर पड़ती है. मंदिर प्रांगण में दीपमालिका, तुलसी विवाह के लिए तुलसी चबूतरा और भगवान गरुड़ की मूर्ति है.

historical Lord Vitthal Temple
रानी लक्ष्मीबाई अंबादेवी खेर ने कराया था निर्माण (ETV Bharat)

देवउठनी एकादशी पर पालकी में नगर भ्रमण करेंगे विठ्ठल भगवान

मंदिर के पुजारी प्रबंधक अजित सप्रे बताते हैं कि, "यहां पर भी महाराष्ट्र के पंढरपुर मंदिर की तर्ज पर देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है. सबसे पहले विठ्ठल भगवान का पंचामृत अभिषेक होता है. उसके बाद विठ्ठल भगवान नगर भ्रमण पर निकलते हैं. पंढरपुर की तर्ज पर भगवान को पालकी में बिठाकर पूरे रहली नगर का भ्रमण कराया जाता है. नगर भ्रमण के बाद भगवान विठ्ठल को जल विहार कराया जाता है. जलविहार के बाद विठ्ठल भगवान मंदिर में प्रवेश करते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां विशाल मेला लगता है और पूजा अर्चना की जाती है."

सागर: बुंदेलखंड में जगह-जगह मराठा संस्कृति की झलक देखने को मिलती है. इसके पीछे की वजह महाराजा छत्रसाल और बाजीराव पेशवा प्रथम के संबंधों को माना जाता है. दरअसल, जब महाराजा छत्रसाल के राज्य पर मोहम्मद बंगश ने हमला किया था तब बाजीराव प्रथम ने अपनी सेना भेजकर छत्रसाल की मदद की थी. इस बात खुश होकर छत्रसाल ने बुंदेलखंड का काफी बड़ा हिस्सा बाजीराव को उपहारस्वरूप दे दिया था. जिसमें सागर, रहली और देवरी जैसे इलाके थे.

यहां के स्थानीय राजा की पत्नी, रानी लक्ष्मीबाई अंबादेवी खेर काफी दानवीर और धर्मप्रिय थीं. उन्होंने सागर-रहली मार्ग पर कई मंदिरों का निर्माण कराया था. जिसमें 1727 में रहली के पंढरपुर में बनवाए गए विट्ठल भगवान का मंदिर, बुंदेलखंड के लिए अपने आप में एक अद्भुत सौगात है. मंदिर की वास्तुकला के साथ-साथ मंदिर की भव्यता और महाराष्ट्र के पंढरीनाथ मंदिर से समानता लोगों को आकर्षित करती है. देवउठनी एकादशी पर विठ्ठल भगवान पालकी में बैठकर नगर भ्रमण करते हैं और जलविहार के बाद फिर मंदिर पहुंचते हैं.

इतिहासकार भरत शुक्ला (ETV Bharat)

रानी लक्ष्मीबाई अंबादेवी खेर ने कराया मंदिरों का निर्माण

इतिहासकार भरत शुक्ला से मिली जानकारी के अनुसार, रानी लक्ष्मीबाई खैर काफी धर्मप्रिय थीं. उन्होंने सागर में कई मंदिरों का निर्माण कराया. उन्होंने ढाना में पटनेश्वर मंदिर के नाम से भगवान शिव के मंदिर का निर्माण कराया. बताते हैं कि रानी जब रहली जाती थीं तो, उनका काफिला यहां जरूर रुकता था. इसके अलावा रहली के रानगिर गांव में हरसिद्धि माता के प्रसिद्ध मंदिर और जबलपुर मार्ग पर टिकीटोरिया में सिंहवाहिनी माता मंदिर का भी निर्माण कराया था. उन्होंने रहली कस्बे में पंढरपुर (महाराष्ट्र) की तर्ज पर भगवान विठ्ठल का मंदिर बनवाया था. मंदिर निर्माण के बाद रहली के इस इलाके का नाम ही पंढरपुर रख दिया गया. मंदिर की वास्तुकला और भव्यता अपने आप में निराली है.

Sagar rahali Lord Vitthal Temple
सागर रहली भगवान विट्ठल मंदिर (ETV Bharat)

रहली में स्थित है पंढरपुर जैसा मंदिर

महाराष्ट्र के सोलापुर स्थित पंढरपुर और रहली के पंढरपुर स्थित विट्ठल भगवान के मंदिर में कई मायनों में एकरूपता है. पंढरपुर में विट्ठल भगवान ईंट पर बैठे हैं, तो यहां भी उन्हें ईंट पर बिठाया गया है. महाराष्ट्र के पंढरपुर का मंदिर चंद्रभागा नदी के किनारे बना है. जहां मंदिर बना है, वहां बहाव घुमावदार होने के कारण चंद्रभागा कहा गया है. रहली में भी सुनार और देहार नदी के संगम में घुमावदार जगह पर मंदिर बना है. पंढरपुर और रहली का मंदिर रथ के आकार का बना है. मंदिर में भगवान विष्णु के 12 अवतारों के दर्शन होते हैं. सूर्योदय की पहली किरण भगवान विट्ठल के चरणों पर पड़ती है. मंदिर प्रांगण में दीपमालिका, तुलसी विवाह के लिए तुलसी चबूतरा और भगवान गरुड़ की मूर्ति है.

historical Lord Vitthal Temple
रानी लक्ष्मीबाई अंबादेवी खेर ने कराया था निर्माण (ETV Bharat)

देवउठनी एकादशी पर पालकी में नगर भ्रमण करेंगे विठ्ठल भगवान

मंदिर के पुजारी प्रबंधक अजित सप्रे बताते हैं कि, "यहां पर भी महाराष्ट्र के पंढरपुर मंदिर की तर्ज पर देवउठनी एकादशी का पर्व मनाया जाता है. सबसे पहले विठ्ठल भगवान का पंचामृत अभिषेक होता है. उसके बाद विठ्ठल भगवान नगर भ्रमण पर निकलते हैं. पंढरपुर की तर्ज पर भगवान को पालकी में बिठाकर पूरे रहली नगर का भ्रमण कराया जाता है. नगर भ्रमण के बाद भगवान विठ्ठल को जल विहार कराया जाता है. जलविहार के बाद विठ्ठल भगवान मंदिर में प्रवेश करते हैं. कार्तिक पूर्णिमा के दिन यहां विशाल मेला लगता है और पूजा अर्चना की जाती है."

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