खरगोन। जिले के रहने वाले भावसार क्षत्रिय समाज के माल्लीवाल परिवार में सन 1700 में एक महिला के गर्भ में नौ महीने तक रहकर भगवान सिद्धनाथ ने एक नाग के रूप में जन्म लिया. जिसकी 8वीं पीढ़ी के वंशज और 8 पीढ़ी के ही पुजारी आज भी मौजूद हैं.
आठवीं पीढ़ी के पुजारी हरीश गोस्वामी बताते हैं कि हमारा परिवार सिद्धनाथ महादेव की आठ पीढ़ियों से पूजा करते आ रहे हैं. शिवलिंग जिस स्थान पर है. वहीं भगवान सिद्धनाथ ने अपने प्राण त्यागे थे. इन्होंने नाग रूप में एक महिला के गर्भ से जन्म लिया था. यहां भगवान साक्षात विराजते हैं और उनके साक्षात्कार भक्तों को होते रहे हैं. यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं, जिनकी मनोकामना भगवान पूर्ण करते हैं.
रात को खेलते हैं चौसर
सिद्धनाथ महादेव मंदिर के आठवीं पीढ़ी के पुजारी हरीश बताते हैं कि यहां पर शयन आरती के बाद चौसर बिछाई जाती है. सुबह जब मंदिर खुलता है तो अक्सर चौसर में सलवटे दिखती हैं. जैसे किसी ने चौसर खेली हो. 8वीं पीढ़ी के वंशज गुलाबचंद्र मल्लीवाल ने बताया कि सिद्धनाथ बाबा ने हमारे परिवार में जन्म लिया था. उनके देहान्त के बाद 1708 में बाबा का मंदिर बना था.
नवमी पीढ़ी के वंशज प्रवीण भावसार ने बताया कि हमारे पूर्वज जिनका नाम पिताजी था और माता जिनका नाम जानकी था. बाबा के 3 और भाई थे. हमारे पूर्वज पिताजी का देहावसान हुआ, तो तीन भाइयों ने संपंति का बंटवारा करना चाहा, लेकिन बाबा ने फन से सब एक कर दिया. जब बड़े बुजुर्गों को यह बात बताई तो उन्होंने 4 हिस्से करने को कहा. चार हिस्से होने पर बाबा ने अपनी फन हिला कर सहमति दे दी. उसके बाद उनकी समाधि स्थल पर उनकी संपंति से मन्दिर बना दिया.
नवमी पीढ़ी के वंशज प्रवीण ने बताया कि वर्ष 1972 में भक्तों द्वारा बाबा की पालकी यात्रा शुरू की. जिसमें शुरू में चार पांच लोग पालकी लेकर नगर भ्रमण पर निकलते थे. लेकिन समय के साथ कारवां बढ़ता ही जा रहा है. यह शिव डोला पूरे देश में प्रसिद्ध है. भादो महीने की दूज को निकलने वाले शिवडोले में देश भर से कलाकार आकर अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं. अब मध्यप्रदेश सरकार ने भी अवकाश घोषित कर दिया है. खरगोन के सिद्धनाथ मंदिर की कहानी आज के युग मे अविश्वसनीय लेकिन सत्य है.