खंडवा। 14 सितंबर का दिन राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है, हिन्दी साहित्य में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख भूमिका रही है. उनकी हिन्दी पत्रकारिता इतनी असरदार थी कि अपनी लेखनी से उन्होंने अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. भारत के अधिकांश राज्य में हिन्दी भाषा बोलने और समझने के बाद भी दुर्भाग्य से हिन्दी देश की मातृभाषा नहीं बन पाई है.
हिन्दी भाषा साहित्य की भाषा है, इसमें कई साहित्य रचे गए हैं. अनेकों कवि और कलमकारों ने हिन्दी को शीर्ष पर पहुंचाने में अपना योगदान दिया है. ऐसी ही एक महान शख्सियत थे पंडित माखनलाल चतुर्वेदी.
माखनलाल ने खंडवा में अपने अखबार "कर्मवीर" का संपादन और प्रकाशन किया था. उनकी तेजस्वी लेखनी का ही परिणाम था कि सागर जिले के रतौना में गाय काटने की फैक्ट्री खुलने वाली थी, लेकिन उनके लेख ने प्रदेश में ऐसी अलख जगाई कि देखते ही देखते पूरे देश में अंग्रेजों के इस फैसले के खिलाफ विरोध का माहौल बन गया.
माखनलाल की हिंदी के कायल फिराक गोरखपुरी
खंडवा के माखनलाल चतुर्वेदी शासकीय कन्या महाविद्यालय के प्रोफेसर प्रताप राव कदम ने बताया कि माखनलाल चतुर्वेदी कि हिंदी से लोग काफी प्रभावित थे, फिराक गोरखपुरी हिंदी को पसंद नहीं करते थे लेकिन जब उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी का हिन्दी में भाषण सुना तो वे इतने प्रभावित हो गए, कि उन्हें ये कहना पड़ा कि अगर यही हिन्दी है तो इस हिन्दी के वे समर्थक और पक्षधर हैं.
विडंबना हिंदी रोजगार देने वाली भाषा नही बन पाई
हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हमारी सरकारें बड़े-बड़े दावे करती है लेकिन हिन्दी भाषा रोजगार की भाषा आज भी नहीं बन पाई है.
सामूहिक चेतना पर संकट
आज के दौर में हिन्दी की सामूहिक चेतना पर संकट हैं, कमियों की ओर भी ध्यान देना होगा आज भी न्यायालयीन फैसलों में अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता है. वहीं इस ओर सरकार का भी कोई ध्यान नहीं है. हिन्दी के नाम पर राजनीति तो बहुत होती है, पर अगर हम हिन्दी का सच में विकास चाहते हैं तो सरकारों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे.
खंडवा की स्मृति "कर्मवीर विद्यापीठ"
खंडवा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के अखबार कर्मवीर के नाम पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल का विस्तार परिसर कर्मवीर विद्यापीठ साल 2000 में शुरू हुआ था. जिसमें पत्रकारिता और कम्प्यूटर कोर्स संचालित किए जा रहे हैं.