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हिन्दी दिवस विशेष: पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का हिन्दी साहित्य में रहा अमूल्य योगदान

14 सितंबर को राष्ट्रीय हिंदी दिवस के मौके पर हिंदी साहित्य में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख भूमिका को याद किया गया.

पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का हिंदी साहित्य यात्रा में अमूल्य योगदान
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Published : Sep 14, 2019, 5:24 AM IST

खंडवा। 14 सितंबर का दिन राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है, हिन्दी साहित्य में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख भूमिका रही है. उनकी हिन्दी पत्रकारिता इतनी असरदार थी कि अपनी लेखनी से उन्होंने अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. भारत के अधिकांश राज्य में हिन्दी भाषा बोलने और समझने के बाद भी दुर्भाग्य से हिन्दी देश की मातृभाषा नहीं बन पाई है.

हिन्दी भाषा साहित्य की भाषा है, इसमें कई साहित्य रचे गए हैं. अनेकों कवि और कलमकारों ने हिन्दी को शीर्ष पर पहुंचाने में अपना योगदान दिया है. ऐसी ही एक महान शख्सियत थे पंडित माखनलाल चतुर्वेदी.

माखनलाल ने खंडवा में अपने अखबार "कर्मवीर" का संपादन और प्रकाशन किया था. उनकी तेजस्वी लेखनी का ही परिणाम था कि सागर जिले के रतौना में गाय काटने की फैक्ट्री खुलने वाली थी, लेकिन उनके लेख ने प्रदेश में ऐसी अलख जगाई कि देखते ही देखते पूरे देश में अंग्रेजों के इस फैसले के खिलाफ विरोध का माहौल बन गया.

माखनलाल की हिंदी के कायल फिराक गोरखपुरी

खंडवा के माखनलाल चतुर्वेदी शासकीय कन्या महाविद्यालय के प्रोफेसर प्रताप राव कदम ने बताया कि माखनलाल चतुर्वेदी कि हिंदी से लोग काफी प्रभावित थे, फिराक गोरखपुरी हिंदी को पसंद नहीं करते थे लेकिन जब उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी का हिन्दी में भाषण सुना तो वे इतने प्रभावित हो गए, कि उन्हें ये कहना पड़ा कि अगर यही हिन्दी है तो इस हिन्दी के वे समर्थक और पक्षधर हैं.

हिंदी दिवस विशेष- पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का हिंदी साहित्य यात्रा में अमूल्य योगदान

विडंबना हिंदी रोजगार देने वाली भाषा नही बन पाई

हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हमारी सरकारें बड़े-बड़े दावे करती है लेकिन हिन्दी भाषा रोजगार की भाषा आज भी नहीं बन पाई है.

सामूहिक चेतना पर संकट

आज के दौर में हिन्दी की सामूहिक चेतना पर संकट हैं, कमियों की ओर भी ध्यान देना होगा आज भी न्यायालयीन फैसलों में अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता है. वहीं इस ओर सरकार का भी कोई ध्यान नहीं है. हिन्दी के नाम पर राजनीति तो बहुत होती है, पर अगर हम हिन्दी का सच में विकास चाहते हैं तो सरकारों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे.

खंडवा की स्मृति "कर्मवीर विद्यापीठ"

खंडवा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के अखबार कर्मवीर के नाम पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल का विस्तार परिसर कर्मवीर विद्यापीठ साल 2000 में शुरू हुआ था. जिसमें पत्रकारिता और कम्प्यूटर कोर्स संचालित किए जा रहे हैं.

खंडवा। 14 सितंबर का दिन राष्ट्रीय हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है, हिन्दी साहित्य में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख भूमिका रही है. उनकी हिन्दी पत्रकारिता इतनी असरदार थी कि अपनी लेखनी से उन्होंने अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. भारत के अधिकांश राज्य में हिन्दी भाषा बोलने और समझने के बाद भी दुर्भाग्य से हिन्दी देश की मातृभाषा नहीं बन पाई है.

हिन्दी भाषा साहित्य की भाषा है, इसमें कई साहित्य रचे गए हैं. अनेकों कवि और कलमकारों ने हिन्दी को शीर्ष पर पहुंचाने में अपना योगदान दिया है. ऐसी ही एक महान शख्सियत थे पंडित माखनलाल चतुर्वेदी.

माखनलाल ने खंडवा में अपने अखबार "कर्मवीर" का संपादन और प्रकाशन किया था. उनकी तेजस्वी लेखनी का ही परिणाम था कि सागर जिले के रतौना में गाय काटने की फैक्ट्री खुलने वाली थी, लेकिन उनके लेख ने प्रदेश में ऐसी अलख जगाई कि देखते ही देखते पूरे देश में अंग्रेजों के इस फैसले के खिलाफ विरोध का माहौल बन गया.

माखनलाल की हिंदी के कायल फिराक गोरखपुरी

खंडवा के माखनलाल चतुर्वेदी शासकीय कन्या महाविद्यालय के प्रोफेसर प्रताप राव कदम ने बताया कि माखनलाल चतुर्वेदी कि हिंदी से लोग काफी प्रभावित थे, फिराक गोरखपुरी हिंदी को पसंद नहीं करते थे लेकिन जब उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी का हिन्दी में भाषण सुना तो वे इतने प्रभावित हो गए, कि उन्हें ये कहना पड़ा कि अगर यही हिन्दी है तो इस हिन्दी के वे समर्थक और पक्षधर हैं.

हिंदी दिवस विशेष- पंडित माखनलाल चतुर्वेदी का हिंदी साहित्य यात्रा में अमूल्य योगदान

विडंबना हिंदी रोजगार देने वाली भाषा नही बन पाई

हिन्दी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हमारी सरकारें बड़े-बड़े दावे करती है लेकिन हिन्दी भाषा रोजगार की भाषा आज भी नहीं बन पाई है.

सामूहिक चेतना पर संकट

आज के दौर में हिन्दी की सामूहिक चेतना पर संकट हैं, कमियों की ओर भी ध्यान देना होगा आज भी न्यायालयीन फैसलों में अंग्रेजी का प्रयोग किया जाता है. वहीं इस ओर सरकार का भी कोई ध्यान नहीं है. हिन्दी के नाम पर राजनीति तो बहुत होती है, पर अगर हम हिन्दी का सच में विकास चाहते हैं तो सरकारों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे.

खंडवा की स्मृति "कर्मवीर विद्यापीठ"

खंडवा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के अखबार कर्मवीर के नाम पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल का विस्तार परिसर कर्मवीर विद्यापीठ साल 2000 में शुरू हुआ था. जिसमें पत्रकारिता और कम्प्यूटर कोर्स संचालित किए जा रहे हैं.

Intro:खंडवा - आज 14 सितंबर का दिन राष्ट्रीय हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है. हिंदी साहित्य में पंडित माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख भूमिका रही हैं. उनकी हिंदी पत्रकारिता इतनी असरदार थी कि अपनी लेखनी से उन्होंने अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था. भारत के अधिकांश राज्य हिंदी भाषा बोलने और समझने के बावजूद भी दुर्भाग्य से हिंदी देश की मातृभाषा नही बन पाई.

Body:हिंदी भाषा भारत की मातृभाषा नही बन पाई लेकिन हिंदी को अंग्रेजी भाषा के साथ साथ राजभाषा का दर्जा जरूर प्राप्त है. हिंदी भाषा साहित्य की भाषा हैं. इसमें कई साहित्य रचे गए अनेकों कवि और कलमकारों ने हिंदी को शीर्ष पर पहुंचाने में अपना योगदान दिया हैं. ऐसे ही महान शख्सियत थे पंडित माखनलाल चतुर्वेदी. "मुझे तोड़ लेना वनमाली उस पथ पर देना तुम फेंक जिस पथ पर जाए वीर अनेक" माखनलाल चतुर्वेदी की यह प्रसिद्ध कविता हम सभी ने बचपन में जरूर सुनी हैं.

माखनलाल जी का जन्म यूं तो होशंगाबाद में हुआ लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि खंडवा को बनाया यहीं से उन्होंने अपने अखबार "कर्मवीर" का संपादन और प्रकाशन किया था उनकी तेजस्वी लेखनी का ही परिणाम था कि सागर जिले के रतौना में गाय काटने की फैक्ट्री खुलने वाली थी लेकिन उनके लेख ने प्रदेश में ऐसी अलख जगाई कि देखते ही देखते समूचे देश में अंग्रेजों के इस फैसले के खिलाफ में एक विरोध का माहौल बन गया. जिसके बाद ब्रिटिश प्रशासन को अपना फैसला वापस लेना पड़ा था.

माखनलाल की हिंदी के कायल फ़िराक गोरखपुरी
खंडवा के माखनलाल चतुर्वेदी शासकीय कन्या महाविद्यालय के प्रोफ़ेसर प्रताप राव कदम ने बताया माखनलाल चतुर्वेदी की हिंदी से लोग काफी प्रभावित थे उन्हें सुनने पसंद करते थे. फ़िराक गोरखपुरी हिंदी के पसंद नही करते थे लेकिन जब उन्होंने माखनलाल चतुर्वेदी जी का हिंदी में दिया भाषण सुना तो वे इतने प्रभावित हो गए थे कि उन्हें यह कहना पड़ा कि अगर यही हिंदी हैं तो इस हिंदी का मैं समर्थक और पक्षधर हूँ

विडंबना हिंदी रोजगार देने वाली भाषा नही बन पाई
हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए हमारी सरकारें बड़े बड़े दावे करती हैं लेकिन हिंदी भाषा रोजगार की भाषा आज भी नहीं बन पाई हैं अगर कोई इंजीनियर कोई डॉक्टर या कोई अन्य पेशा हो हिंदी में नही होता .जरूरत है हिंदी को कविताओं से निकालकर आम जनमानस के भविष्य की भाषा बनाया जाए.

सामूहिक चेतना पर संकट
आज के दौर में हिंदी की सामूहिक चेतना पर संकट हैं. हमें कमियों की ओर भी ध्यान देना होगा आज भी न्यायालयीन फैसलों में अंग्रेजी का प्रयोग होता हैं इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए हिंदी के नाम पर राजनीति तो बहुत होती हैं अगर हम हिंदी का सच में विकास चाहते हैं तो सरकारों को इस दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए.

Byte - प्रताप राव कदम , प्रोफेसर, माखनलाल चतुर्वेदी शासकीय कन्या महाविद्यालय खंडवा




Conclusion:खंडवा की स्मृति "कर्मवीर विद्यापीठ"
खंडवा पंडित माखनलाल चतुर्वेदी के अखबार कर्मवीर के नाम पर नाम पर माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय भोपाल का विस्तार परिसर कर्मवीर विद्यापीठ साल 2000 में शुरू हुआ था जिसमें पत्रकारिता और कम्प्यूटर कोर्स संचालित किए जा रहे हैं.

Byte - संदीप भट्ट , प्राचार्य, कर्मवीर विद्यापीठ
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