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जानिए कहां कैद किए गए थे आदिवासियों के रॉबिनहुड टंट्या भील माला (tantya mama), आज उन्हीं के नाम से मशहूर है देश की यह जेल

भारत के 'राबिनहुड' कहे जाने वाले जननायक टंट्या मामा (tantya mama) की यादों से भी भरी पड़ी हैं. जिसके चलते आज जेल का नाम शहीद जननायक टंट्या भील जिला जेल (Tantya Bhil Jail in mp) है. इस जेल में दो बार टंट्या मामा को रखा गया था.

tantya bhil jail
टंट्या भील जेल
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Published : Nov 26, 2021, 5:37 PM IST

Updated : Nov 26, 2021, 6:29 PM IST

खंडवा। जिला जेल का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. यहां स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (mp freedom fighters names) तो रहे ही हैं, साथ ही भारत के 'राबिनहुड' कहे जाने वाले जननायक टंट्या मामा की यादों से भी भरी पड़ी हैं. जिसके चलते आज जेल का नाम शहीद जननायक टंट्या भील जिला जेल है. इस जेल में दो बार टंट्या मामा को रखा गया था. इसमें से एक बार टंट्या मामा जेल की 15 से अधिक फीट उंची दिवारें तक फांद गए थे. उन्हे जिस बैरक में रखा गया था आज भी वहां उनकी तस्वरी लगी हुई है.

खंडवा जेल में दो बार हुए थे बंदी
आदिवासी योद्धा भारत के 'राबिनहुड' कहे जाने वाले टंट्या मामा (tantya mama) को खंडवा जेल में दो बार बंदी बनाकर कर रखा था. बताया जाता है कि भारत के 'राबिनहुड शहीद जननायक टंट्या भील (मामा) ने सन् 1858 में जब भारत का शासन ब्रिटिश के अधीन आ गया था. तब अंग्रेजों के विरुद्ध बिगूल बजा दिया था. ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर मालगुजार और साहूकारों ने भी जनसाधारण का विभिन्न प्रकार से शोषण करना शुरू किया. इस दौरान टंट्या मामा ने वनवासियों और पीड़ितों को एकत्रित कर अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया था.

जेल की दिवार फांद गए थे टंट्या मामा
अंग्रेजों ने 20 नवंबर 1878 को उन्हें धोखे से पकड़कर खंडवा जेल में डाल दिया गया. जेल की दिवारें उन्हे अधिक समय तक कैद नहीं कर पाई. 24 नवंबर 1818 को रात में टंट्या मामा जेल की दीवार फांदकर गए थे. जेल से भागने के बाद उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए बिजानिया भील, दौलिया, मोडिया और हिरिया जैसे साथी मिले और उन्हीं के साथ टंट्या मामा ने अंग्रेजों को सबक सिखाना शुरू कर दिया. ब्रिटिश सरकार से 24 बार संघर्ष किया और विजयी रहे. इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार के खजाने और जमीदारों तथा माल गुजारों को लूटकर धन निर्धन और असहायक लोगों में बांट दिया. गरिबाें के लिए वे भगवान के साथ ही एक जननायक बन गए थे.

धोखे से पकड़े जाने के बाद रखा था खंडवा जेल में
एक बार टंट्या मामा और बिजानिया को गिरफ्तार करके जबलपुर सेंट्रल जेल लाया गया परंतु दोनों यहां से भागने निकले लेकिन बिजानिया, दौलिया मोडिया और हिरिया पकड़े गए. उन्हें फांसी दे दी गई थी. टंट्या मामा अंग्रेजों के हाथ नहीं आए थे. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हे पकड़ने के लिए उनकी मुंह बोली बहन के पति गणपत सिंह की मदद ली.

एमएसपी पर चुप हो गए Minister Narendra Singh Tomar, कहा- लोकसभा में चर्चा के बाद वापस होंगे तीनों कृषि कानून

11 अगस्त 1889 को रक्षा बंधन के दिन सुनियोजित षड्यंत्र के चलते जब राखी बंधवाने के लिए टंट्या मामा अपनी बहन के यहां पहुंचे थे. यहां घात लगाकर बैठे अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद उन्हे खंडवा जेल में लाया गया. अंग्रेजाें को डर था कि वे कहीं यहां से फिर से न भाग जाए. इसके लिए उन्होंने टंट्या मामला को खंडवा जेल से (Tantya Bhil Jail in mp) जबलपुर सेंट्रल जेल (वर्तमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस केन्द्रीय जेल) में स्थानांतरित कर दिया था. हाल ही में पातालपानी रेलवे स्टेशन (Patalpani Railway Station) का नाम बदलकर टंट्या मामा के नाम कर करने का प्रस्ताव रेलवे को एमपी सरकार ने दिया है.

खंडवा। जिला जेल का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है. यहां स्वतंत्रता के लिए अपने जीवन की आहुति देने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी (mp freedom fighters names) तो रहे ही हैं, साथ ही भारत के 'राबिनहुड' कहे जाने वाले जननायक टंट्या मामा की यादों से भी भरी पड़ी हैं. जिसके चलते आज जेल का नाम शहीद जननायक टंट्या भील जिला जेल है. इस जेल में दो बार टंट्या मामा को रखा गया था. इसमें से एक बार टंट्या मामा जेल की 15 से अधिक फीट उंची दिवारें तक फांद गए थे. उन्हे जिस बैरक में रखा गया था आज भी वहां उनकी तस्वरी लगी हुई है.

खंडवा जेल में दो बार हुए थे बंदी
आदिवासी योद्धा भारत के 'राबिनहुड' कहे जाने वाले टंट्या मामा (tantya mama) को खंडवा जेल में दो बार बंदी बनाकर कर रखा था. बताया जाता है कि भारत के 'राबिनहुड शहीद जननायक टंट्या भील (मामा) ने सन् 1858 में जब भारत का शासन ब्रिटिश के अधीन आ गया था. तब अंग्रेजों के विरुद्ध बिगूल बजा दिया था. ब्रिटिश सरकार के साथ मिलकर मालगुजार और साहूकारों ने भी जनसाधारण का विभिन्न प्रकार से शोषण करना शुरू किया. इस दौरान टंट्या मामा ने वनवासियों और पीड़ितों को एकत्रित कर अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता संग्राम छेड़ दिया था.

जेल की दिवार फांद गए थे टंट्या मामा
अंग्रेजों ने 20 नवंबर 1878 को उन्हें धोखे से पकड़कर खंडवा जेल में डाल दिया गया. जेल की दिवारें उन्हे अधिक समय तक कैद नहीं कर पाई. 24 नवंबर 1818 को रात में टंट्या मामा जेल की दीवार फांदकर गए थे. जेल से भागने के बाद उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए बिजानिया भील, दौलिया, मोडिया और हिरिया जैसे साथी मिले और उन्हीं के साथ टंट्या मामा ने अंग्रेजों को सबक सिखाना शुरू कर दिया. ब्रिटिश सरकार से 24 बार संघर्ष किया और विजयी रहे. इसके साथ ही ब्रिटिश सरकार के खजाने और जमीदारों तथा माल गुजारों को लूटकर धन निर्धन और असहायक लोगों में बांट दिया. गरिबाें के लिए वे भगवान के साथ ही एक जननायक बन गए थे.

धोखे से पकड़े जाने के बाद रखा था खंडवा जेल में
एक बार टंट्या मामा और बिजानिया को गिरफ्तार करके जबलपुर सेंट्रल जेल लाया गया परंतु दोनों यहां से भागने निकले लेकिन बिजानिया, दौलिया मोडिया और हिरिया पकड़े गए. उन्हें फांसी दे दी गई थी. टंट्या मामा अंग्रेजों के हाथ नहीं आए थे. इसके बाद ब्रिटिश सरकार ने उन्हे पकड़ने के लिए उनकी मुंह बोली बहन के पति गणपत सिंह की मदद ली.

एमएसपी पर चुप हो गए Minister Narendra Singh Tomar, कहा- लोकसभा में चर्चा के बाद वापस होंगे तीनों कृषि कानून

11 अगस्त 1889 को रक्षा बंधन के दिन सुनियोजित षड्यंत्र के चलते जब राखी बंधवाने के लिए टंट्या मामा अपनी बहन के यहां पहुंचे थे. यहां घात लगाकर बैठे अंग्रेज सैनिकों ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद उन्हे खंडवा जेल में लाया गया. अंग्रेजाें को डर था कि वे कहीं यहां से फिर से न भाग जाए. इसके लिए उन्होंने टंट्या मामला को खंडवा जेल से (Tantya Bhil Jail in mp) जबलपुर सेंट्रल जेल (वर्तमान नेताजी सुभाष चंद्र बोस केन्द्रीय जेल) में स्थानांतरित कर दिया था. हाल ही में पातालपानी रेलवे स्टेशन (Patalpani Railway Station) का नाम बदलकर टंट्या मामा के नाम कर करने का प्रस्ताव रेलवे को एमपी सरकार ने दिया है.

Last Updated : Nov 26, 2021, 6:29 PM IST
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