झाबुआ। मध्यप्रदेश में बीजेपी-कांग्रेस के लिए कयामत वाली रात है. इस रात न नेताओं को नींद आएगी, न सुकून मिलेगा क्योंकि रात बीतने के बाद सुबह से ही आवाम इनके महारथियों की सियासी किस्मत को ईवीएम में कैद करना शुरू कर देगी. वैसे तो ये उपचुनाव अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता वाली कहावत जैसा है, लेकिन ये अकेला चना भरभूंजे की आंख फोड़ने का भी माद्दा रखता है.
सोमवार को सुबह 7 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक झाबुआ के 277599 मतदाता प्रत्याशियों की सियासी किस्मत को ईवीएम में कैद कर देंगे. एक तरफ जहां प्रशासन हर वोटर को बूथ तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है, वहीं सुरक्षा के लिहाज से भी पुख्ता इंतजाम किया है, ताकि शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव संपन्न हो सके, जिसके लिए 3000 जवानों की तैनाती मतदान केंद्रों पर की गयी है.
झाबुआ में कुल 356 मतदान केंद्र बनाए गए हैं, जिसमें से 61 मतदान केंद्र क्रिटिकल हैं, जबकि एक मतदान केंद्र को वेरिएबल घोषित किया गया है. झाबुआ के सीमावर्ती अन्य राज्यों की सीमाओं पर सशस्त्र सीमा सुरक्षा बल के जवान तैनात किए गए हैं. 356 मतदान केंद्रों में से 15 मतदान केंद्रों पर सीसीटीवी और 15 मतदान केंद्रों पर वेबकास्टिंग के जरिए नजर रखी जाएगी.
मतदान प्रक्रिया को संपन्न कराने के लिए कुल 1864 कर्मचारियों की तैनाती की गई है, जबकि 150 से अधिक कर्मचारियों को रिजर्व में रखा गया है. मतदान के समय से डेढ़ घंटे पहले यानि सुबह साढ़े 5 बजे से मॉकपॉल की प्रक्रिया राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों के सामने कराई जाएगी. जहां मुख्य रूप से सत्तारूढ़ कांग्रेस की ओर से कांतिलाल भूरिया और विपक्ष यानि बीजेपी की तरफ से भानू भूरिया मैदान में हैं. कुल मिलाकर इस लड़ाई को भी भूरिया बनाम भूरिया कर दिया गया है.
पिछले विधानसभा चुनाव के वक्त बीजेपी सत्ता में थी, तब विधानसभा क्षेत्र संख्या 193 से चुनाव लड़ रहे कांग्रेस के दिग्गज नेता कांतिलाल भूरिया के बेटे विक्रांत भूरिया को कुल 56161 वोट मिले थे, जबकि बीजेपी के गुमान सिंह डामोर को 66598 वोट मिले थे. इसके अलावा 35462 वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहे जेवियर मेड़ा. आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में लड़ाई भी आदिवासी बनाम आदिवासी होने से अधिक दिलचस्प हो गयी थी. फिर भी दिग्गज आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया अपने बेटे की विधानसभा में प्रवेश कराने से चूक गये. 270283 वोटरों वाले इस क्षेत्र में 6188 मतदाताओं ने गुमनाम प्रत्याशी के पक्ष में वोट किया था.
बेटे की हार का बदला चुकाने के लिए कांतिलाल लोकसभा के चुनावी अखाड़े में खुद ही कूद पड़े, लेकिन इस बार उन्हें भी गुमान सिंह डामोर ने जोरदार पटखनी दे दी. ऐसा करके जीएस डामोर ने कांतिलाल के सामने सियासी संकट खड़ा कर दिया. अब इस उपचुनाव के परिणाम ही कांतिलाल भूरिया की सियासी सूरज के चमकने या अस्त होने का प्रमाण देंगे. हालांकि, ये चुनाव जितना कांतिलाल के लिए महत्वपूर्ण है, उससे कहीं ज्यादा कमलनाथ के लिए है क्योंकि बैशाखी पर टिकी सरकार को दो चार कदम बिना बैशाखी के चलने का दम मिल जाएगा. लिहाजा, सरकार से लेकर कांग्रेस तक इस चुनाव को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है.
बीजेपी भी इस चुनाव को किसी भी कीमत पर जीतना चाहती है, गुमान सिंह ने विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव भी जीता, इसके बाद डामोर ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद से ही दोनों पार्टियां यहां यहां सियासी जमीन को हरी-भरी करने के लिए खाद-पानी देने लगीं. झाबुआ जीतकर किसी को सत्ता नहीं मिलनी है, लेकिन बड़े से बड़े बांध को तोड़ने के लिए एक चीटी की (माद) भी काफी होती है.
पिछले चुनाव में कुल 230 सीटों में से कांग्रेस ने 114 सीटों पर जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी 109 सीटों पर ही सिमट गयी. बसपा महज दो रन ही ले पायी, जबकि सपा एक ही रन पर ऑउट हो गयी.
इसके अलावा चार निर्दलीय प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी, जिनमें से ज्यादातर कांग्रेस के बागी थे, जो बाद में समर्थन देकर कांग्रेस की सरकार बनवा दिये और बीजेपी हाथ मलती रह गयी. हालांकि, मौजूदा हाल में कांग्रेस और मजबूत हो गयी है क्योंकि अब बीजेपी की एक सीट कम हो गयी है. अब ये सीट कांग्रेस जीतती है तो बीजेपी की बार-बार सरकार गिराने के दावों का दम निकल जाएगा और यदि बीजेपी जीती तो भी कांग्रेस को कोई खास फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि इसका दम तो इसके पहले विधानसभा में सरकार बीजेपी को दिखा ही चुकी है.