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मानसून की अगवानी में आदिवासियों ने की ग्राम देवी-देवता की पूजा

झाबुआ में जिले में परंपरा के अनुसार नरवलिया गांव के लोगों ने सालावणी का आयोजन किया. इसमें मानसून के आने पर लगातार दो दिन उसकी अगुवाई में भगवानों की पूजा की जाती है.

jhabua
पूजा करते आदिवासी
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Published : Jun 16, 2020, 3:45 PM IST

झाबुआ। आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिला परंपराओं का जिला माना जाता है, यहां लोग सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपराओं का निर्वहन आज भी बड़ी इमानदारी और शिद्दत से करते हैं. ऐसी ही परंपरा सालावणी का निर्वहन नरवलिया गांव के लोग सालों से करते आ रहे हैं. इन आदिवासियों को प्रकृति पूजक माना जाता है, लिहाजा जैसे ही मानसून दस्तक देता है, वैसे ही उसकी अगवानी के लिए गांव के लोग पूजा शुरु कर देते हैं.

प्रकृति पूजा के तहत ये पूजा 2 दिन तक चलती है, पूजा के पहले दिन रात में महिला पुरुष आदिवासी भीली भाषा में देवी देवताओं की अगवानी के लिए भजन-कीर्तन करते हैं. ग्रामीण अच्छी बारिश के साथ-साथ फसल की अच्छी पैदावार और ग्रामीणों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना भी अपने देवी-देवताओं से करते हैं, इस दौरान ग्रामीण अपने ग्राम देवी-देवता की पूजा करते हैं.

गांव के बड़े बुजुर्गों की मौजूदगी में गांव के पंडित इस पूजा को विधि-विधान से कराते हैं. इस दौरान पशु बलि और शराब भी अर्पित की जाती है. बड़ी संख्या में मौजूद ग्रामीण इस दिन सामूहिक भोज करते हैं और खेती किसानी के काम में जुट जाते हैं.

झाबुआ। आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिला परंपराओं का जिला माना जाता है, यहां लोग सैकड़ों सालों से चली आ रही परंपराओं का निर्वहन आज भी बड़ी इमानदारी और शिद्दत से करते हैं. ऐसी ही परंपरा सालावणी का निर्वहन नरवलिया गांव के लोग सालों से करते आ रहे हैं. इन आदिवासियों को प्रकृति पूजक माना जाता है, लिहाजा जैसे ही मानसून दस्तक देता है, वैसे ही उसकी अगवानी के लिए गांव के लोग पूजा शुरु कर देते हैं.

प्रकृति पूजा के तहत ये पूजा 2 दिन तक चलती है, पूजा के पहले दिन रात में महिला पुरुष आदिवासी भीली भाषा में देवी देवताओं की अगवानी के लिए भजन-कीर्तन करते हैं. ग्रामीण अच्छी बारिश के साथ-साथ फसल की अच्छी पैदावार और ग्रामीणों के अच्छे स्वास्थ्य की कामना भी अपने देवी-देवताओं से करते हैं, इस दौरान ग्रामीण अपने ग्राम देवी-देवता की पूजा करते हैं.

गांव के बड़े बुजुर्गों की मौजूदगी में गांव के पंडित इस पूजा को विधि-विधान से कराते हैं. इस दौरान पशु बलि और शराब भी अर्पित की जाती है. बड़ी संख्या में मौजूद ग्रामीण इस दिन सामूहिक भोज करते हैं और खेती किसानी के काम में जुट जाते हैं.

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