झाबुआ। बीते करीब तीन महीने से हुए लॉकडाउन के कारण देश में हर वर्ग के लोगों पर आर्थिक असर पर पड़ा है. कोरोना महामारी के लगातार बढ़ते संक्रमित मरीजों की वजह से जहां लोगों में कोरोना का डर समा रहा है, वहीं व्यापार में हो रहे भारी नुकसान के कारण व्यापारी खासे परेशान हैं. यही हाल स्क्रैप कारोबारियों का भी हो रहा है. जनता कर्फ्यू से लेकर हुए लॉकडाउन 3.0 तक बंद रहे व्यवसाय और फिर भाव में हुई भारी गिरावट के चलते स्क्रैप कारोबार ठप सा हो गया है. आलम यह है कि कारखानों में कोई खरीददार नहीं मिल रहा है, वहीं जो भी स्क्रैप कंपनियों में जा रहा है. उसका भी भुगतान व्यापारियों को समय पर नहीं मिल रहा है. ऐसे में गांव-गांव और घर-घर जाकर जो छोटे भंगारी अपनी रोजी-रोटी के लिए स्क्रैप खरीदते थे, उन्हें उनकी मेहनत का मेहनताना भी नहीं मिल रहा.
अभी तक करोड़ों का कारोबार कहा जाने वाला स्कैप कारोबार इन दिनों खरीदार और भाव की कमी के भारी नुकसान के दौर से गुजर रहा है. स्क्रैप कारोबारी खलील भाई बताते हैं, लॉकडाउन से पहले उन्होंने 27 रुपए किलो के भाव से स्क्रैप खरीदा था, जो कंपनी वाले अब उनसे 18 किलो रुपए में मांग रहे हैं. ऐसे में महंगा खरीदा हुआ स्क्रैप भारी नुकसान उठाकर कम दाम पर बेचना पड़ रहा है.
कारोबारियों के लिए जमा किया गया भंगार बेचना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि जितना स्क्रैप उनके पास रखा है. अब उससे ज्यादा रखने की उनके पास ना तो जगह है और ना ही कोई गुंजाइश. इस नुकसान के बाद भी कारखानों में स्क्रैप की डिमांड नहीं है. जो स्क्रैप कारखानों में जाता है, उसका भुगतान भी कई महीनों से नहीं हो रहा है. ऐसे में स्क्रैप की दुकानों पर काम करने वाले मजदूरों को मजदूरी देने में भी स्क्रैप कारोबियों को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
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बता दें, झाबुआ में स्क्रैप का कारोबार बड़े स्तर पर होता है. छोटे भंगारी शहर में थैला-गाड़ी और गांव में अपनी बाइक से भंगार लेकर बड़े व्यापारियों को बेचते हैं. पिछले 40 सालों से ठेला गाड़ी से भंगार इकट्ठा करने वाले लाला भाई बताते हैं कि इन दिनों भंगार से सिर्फ उनका घर का खर्चा चल रहा है. पहले इसी भंगार की खरीदी से ना सिर्फ घर-परिवार का पालन-पोषण बल्कि परिवार-समाज में होने वाले उत्सव-आयोजनों ने लेनदेन का भी जुगाड़ भी आसानी से हो जाता था लेकिन बीते चार महीनों से दिन भर थैला ढोने के बाद भी हाथ में 100 से 150 रुपए ही आ पाते हैं.
जानकारी के मुताबिक इन दिनों गांव से जो भंगार 12 से 15 प्रति किलो की दर से खरीदते हैं, उन्हें उसका महज 16 से 18 रुपए किलो ही मिल रहा है. इससे उनकी बाइक में लगने वाला पेट्रोल खर्च भी नहीं निकल पा रहा है. कालू ने बताया, लॉकडाउन से पहले उन्हें भंगार के अच्छे भाव मिलते थे और अमूमन रोज के 300 से 500 रुपए प्रतिदिन कमा लेते थे, लेकिन इन दिनों मुश्किल से 150 से 200 रुपए के बीच में बचते हैं, ऐसे में उनका और उनके परिवार का गुजारा मुश्किल होता जा रहा है.
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दुनियाभर में फैली कोरोना महामारी ने लोगों को ऐसा झटका दिया कि उससे उभरने में कई साल लग जाएंगे. लॉकडाउन के बाद अनलॉक होने के बावजूद अब भी स्कैप डीलरों की हालात में सुधार नहीं हो पा रहा है.