झाबुआ। दीपावली के दो दिन बाद तक विभिन्न अंचलों में गाय गोहरी का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है. झाबुआ का गाय गोहरी पर्व इसलिए हर साल चर्चा में रहता है क्योंकि यहां मन्नतधारी गोवंश के पैरों के नीचे लेटकर अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं. इस दौरान गायों को मोर पंख के साथ ही सुंदर-आकर्षक रंगों से सजाया-संवारा भी जाता है. जिसके बाद इन गायों से मन्नतधारियों को रौंदवाया जाता है.
झाबुआ में गोवर्धन नाथ मंदिर के सामने गाय गोहरी का पर्व पड़वा यानि नव वर्ष के दिन के रूप में मनाया जाता है. राणापुर क्षेत्र के कन्जावानी, समोई, रूपा खेड़ा, छायन जैसे गांवों में गाय गोहरी का पर्व उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है. सोमवार को गाय गोहरी देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग जमा हुए. इसे आप आस्था कहें या अंधविश्वास, लेकिन सच्चाई ये है कि इस पर्व के दौरान मैदान में लेटे लोगों के ऊपर से गायें दौड़ती हुई निकल जाती हैं, पर उन्हें कुछ नहीं होता. यहां के आदिवासी समाज में ये मान्यता है कि गाय के पैरों के नीचे बैकुंठ होता है.
गाय गोहरी के पूर्व खुले मैदान में भव्य आतिशबाजी भी की जाती है. मन्नतधारी अपनी बीमारी से छुटकारा पाने के लिए, घर में सुख- शांति और समृद्धि के साथ-साथ संतान प्राप्ति के लिए भी ऐसा करते हैं. आदिवासी जिले में मनाए जाने वाले इस पर्व की अपनी विविधता के चलते पूरे देश में आकर्षण का केंद्र भी रहता है.