ETV Bharat / state

कोरोना महामारी ने नगरीय निकायों को किया संक्रमित, पाई-पाई को हो रहे मोहताज

कोरोना का असर निजी क्षेत्र के साथ अब सरकारी क्षेत्र में भी दिखने लगा है, कोविड-19 के असर के चलते प्रदेश भर के नगरीय निकायों की वित्तीय स्थिति गड़बडाने लगी है.

financial condition of urban bodies
नगरीय निकायों की वित्तीय स्थिति गड़बड़ाई
author img

By

Published : Aug 12, 2020, 7:56 PM IST

Updated : Aug 12, 2020, 8:06 PM IST

झाबुआ। एक छोटा सा वायरस पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया है, कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए सरकार ने करीब तीन महीने तक लॉकडाउन किया था, जिसके चलते गरीब व मध्यम वर्ग की कमर टूट गई और लोगों के सामने रोजगार के साथ-साथ आर्थिक संकट भी खड़ा हो गया. कोरोना का असर अब निजी क्षेत्र के साथ-साथ सरकारी क्षेत्रों में भी दिखने लगा है. कोविड-19 के चलते प्रदेश भर के नगरीय निकायों की वित्तीय स्थिति गड़बडाने लगी है.

नगरीय निकायों की वित्तीय स्थिति गड़बड़ाई

नगर निगम और परिषदों की घटी कमाई

आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले में एक नगर पालिका और 4 नगर परिषद हैं, जिनमें बीते चार महीनों से आय के नाम पर कोई आमदनी नहीं हुई है, लेकिन खर्च लाखों का हो गया है, जिन नगरी निकायों के पास सीमित आय के स्रोत हैं, वहां विकास का काम तो दूर परिषद में तैनात कर्मचारियों को वेतन देना भी मुश्किल होता जा रहा है. एक ओर परिषद को आय नहीं हो रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से इन निकायों को मिलने वाली मदद में कटौती की जा रही है. ऐसे में इन परिषदों का संचालन मुश्किल होता जा रहा है. नगर पालिका और नगर परिषद को स्थानीय स्तर पर विभिन्न ठेकों की नीलामी से मिलने वाली आय का सीधा नुकसान कोरोना के कारण झेलना पड़ रहा है.

जिले में एकमात्र नगर पालिका झाबुआ शहर में है, जहां 20 वार्डों की कई समस्याएं विद्यमान हैं, परिषद ने अपनी साधारण बैठक में आय के अनुरूप कुछ जरूरी कामों के लिए तीन करोड़ के प्रस्ताव पारित किए गए हैं, लेकिन राज्य शासन की ओर से मिलने वाली मदद और खुद परिषद की आय पर ही है, विकास काम वार्डों में हो पाएंगे. जिले की मेघनगर नगर परिषद में अध्यक्ष और पार्षदों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, जोकि अब प्रशासक के रूप में SDM को संभालना है.

ठप पड़ी वसूली

नगर परिषद के पास आय का कोई साधन नहीं है. वहीं संपत्ति कर और जलकर की वसूली ठप पड़ी है, जिससे यहां कर्मचारियों को वेतन देना भी मुश्किल होता जा रहा है. यही हालत पेटलावद, थांदला और राणापुर नगर परिषद के भी हैं. इन नगर परिषदों को वित्तीय वर्ष में बाजार बैठक, पशु बाजार, संपत्ति कर के रूप में अच्छी आय होती थी, लेकिन कोरोना के चलते न तो ठेके हो पाए और न ही करों की वसूली हो पा रही है. कोविड-19 के चलते पिछले चार महीनों से परिषदों और नगरीय निकायों में संपत्ति कर की वसूली नहीं हो पा रही है, जो इन नगर परिषदों की आय का प्रमुख स्रोत होता है. परिषद द्वारा स्थानीय स्तर पर अप्रैल महीने में कई ठेकों की नीलामी होती है, जिससे एकमुश्त मिलने वाली लाखों की रकम भी इस साल परिषद को नहीं मिल पाई है. कोरोना संकट का हवाला देकर राज्य सरकार ने (चुंगी) आर्थिक मदद में भी कटौती कर दी है. ऐसे में नगर निकाय क्षेत्रों में विकास काम करना तो दूर परिषद का संचालन करना मुश्किल होता जा रहा है.

करनी पड़ रही बड़ी राशि खर्च

कोविड-19 के संक्रमण से शहर को दूर रखने के लिए नगरीय निकाय को बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ रही है. मानसून सीजन होने के कारण क्षेत्र में नालों की सफाई और निर्माण पर भी खर्च हो रहा है. ऐसे में वित्तीय संकट से जूझ रही परिषदों के सामने आने वाले समय में आर्थिके संकट मुसीबत का सबब बन सकता है. नगरीय निकायों में कर्मचारियों का वेतन सबसे बड़ा खर्च है. वहीं बिजली और जल व्यवस्था में भी बड़ी राशि लगती है. ऐसे में बिना राज्य सरकार की मदद के इस वित्तीय संकट से बाहर निकलना नगरीय निकाय के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा. फिलहाल नगर पालिका और नगर परिषद के पास आय नहीं होने के कारण परिषद अपने खर्चों में कटौती करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती है, जिससे संकट काल में परिषद का संचालन किया जा सके.

झाबुआ। एक छोटा सा वायरस पूरी दुनिया को घुटनों पर ला दिया है, कोरोना महामारी की रोकथाम के लिए सरकार ने करीब तीन महीने तक लॉकडाउन किया था, जिसके चलते गरीब व मध्यम वर्ग की कमर टूट गई और लोगों के सामने रोजगार के साथ-साथ आर्थिक संकट भी खड़ा हो गया. कोरोना का असर अब निजी क्षेत्र के साथ-साथ सरकारी क्षेत्रों में भी दिखने लगा है. कोविड-19 के चलते प्रदेश भर के नगरीय निकायों की वित्तीय स्थिति गड़बडाने लगी है.

नगरीय निकायों की वित्तीय स्थिति गड़बड़ाई

नगर निगम और परिषदों की घटी कमाई

आदिवासी बाहुल्य झाबुआ जिले में एक नगर पालिका और 4 नगर परिषद हैं, जिनमें बीते चार महीनों से आय के नाम पर कोई आमदनी नहीं हुई है, लेकिन खर्च लाखों का हो गया है, जिन नगरी निकायों के पास सीमित आय के स्रोत हैं, वहां विकास का काम तो दूर परिषद में तैनात कर्मचारियों को वेतन देना भी मुश्किल होता जा रहा है. एक ओर परिषद को आय नहीं हो रही है, वहीं दूसरी ओर राज्य सरकार की ओर से इन निकायों को मिलने वाली मदद में कटौती की जा रही है. ऐसे में इन परिषदों का संचालन मुश्किल होता जा रहा है. नगर पालिका और नगर परिषद को स्थानीय स्तर पर विभिन्न ठेकों की नीलामी से मिलने वाली आय का सीधा नुकसान कोरोना के कारण झेलना पड़ रहा है.

जिले में एकमात्र नगर पालिका झाबुआ शहर में है, जहां 20 वार्डों की कई समस्याएं विद्यमान हैं, परिषद ने अपनी साधारण बैठक में आय के अनुरूप कुछ जरूरी कामों के लिए तीन करोड़ के प्रस्ताव पारित किए गए हैं, लेकिन राज्य शासन की ओर से मिलने वाली मदद और खुद परिषद की आय पर ही है, विकास काम वार्डों में हो पाएंगे. जिले की मेघनगर नगर परिषद में अध्यक्ष और पार्षदों का कार्यकाल समाप्त हो चुका है, जोकि अब प्रशासक के रूप में SDM को संभालना है.

ठप पड़ी वसूली

नगर परिषद के पास आय का कोई साधन नहीं है. वहीं संपत्ति कर और जलकर की वसूली ठप पड़ी है, जिससे यहां कर्मचारियों को वेतन देना भी मुश्किल होता जा रहा है. यही हालत पेटलावद, थांदला और राणापुर नगर परिषद के भी हैं. इन नगर परिषदों को वित्तीय वर्ष में बाजार बैठक, पशु बाजार, संपत्ति कर के रूप में अच्छी आय होती थी, लेकिन कोरोना के चलते न तो ठेके हो पाए और न ही करों की वसूली हो पा रही है. कोविड-19 के चलते पिछले चार महीनों से परिषदों और नगरीय निकायों में संपत्ति कर की वसूली नहीं हो पा रही है, जो इन नगर परिषदों की आय का प्रमुख स्रोत होता है. परिषद द्वारा स्थानीय स्तर पर अप्रैल महीने में कई ठेकों की नीलामी होती है, जिससे एकमुश्त मिलने वाली लाखों की रकम भी इस साल परिषद को नहीं मिल पाई है. कोरोना संकट का हवाला देकर राज्य सरकार ने (चुंगी) आर्थिक मदद में भी कटौती कर दी है. ऐसे में नगर निकाय क्षेत्रों में विकास काम करना तो दूर परिषद का संचालन करना मुश्किल होता जा रहा है.

करनी पड़ रही बड़ी राशि खर्च

कोविड-19 के संक्रमण से शहर को दूर रखने के लिए नगरीय निकाय को बड़ी धनराशि खर्च करनी पड़ रही है. मानसून सीजन होने के कारण क्षेत्र में नालों की सफाई और निर्माण पर भी खर्च हो रहा है. ऐसे में वित्तीय संकट से जूझ रही परिषदों के सामने आने वाले समय में आर्थिके संकट मुसीबत का सबब बन सकता है. नगरीय निकायों में कर्मचारियों का वेतन सबसे बड़ा खर्च है. वहीं बिजली और जल व्यवस्था में भी बड़ी राशि लगती है. ऐसे में बिना राज्य सरकार की मदद के इस वित्तीय संकट से बाहर निकलना नगरीय निकाय के लिए टेढ़ी खीर साबित होगा. फिलहाल नगर पालिका और नगर परिषद के पास आय नहीं होने के कारण परिषद अपने खर्चों में कटौती करने के अलावा कुछ नहीं कर सकती है, जिससे संकट काल में परिषद का संचालन किया जा सके.

Last Updated : Aug 12, 2020, 8:06 PM IST
ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.